सरसों का भाव एमएसपी से 900 रुपये तक गिरा, किसानों को सरकारी खरीद का इंतजार
पिछले साल भी किसानों को सरसों की बिक्री एमएसपी से नीचे करनी पड़ी थी। यह स्थिति तब है जब खाद्य तेलों के मामले में देश की कुल जरूरत का आधे से ज्यादा आयात से पूरा होता है।
देश के प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों में सरसों की कीमत 5650 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 900 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर चुकी हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और असम की मंडियों में सरसों की कीमतें 4700 रुपये से 4800 रुपये प्रति क्विंटल के बीच हैं। कुछ जगह तो भाव 4200 रुपये तक गिर गया है। सरसों का भाव एमएसपी से नीचे गिरने के बावजूद सरकारी खरीद शुरू ना होने से किसानों की परेशानी बढ़ती जा रही है।
सरसों की फसल फरवरी में बाजार में आनी शुरू हो गई थी। एमएसपी से नीचे चल रही कीमतों से किसानों को राहत देने के लिए प्राइस सपोर्ट स्कीम (पीएसएस) के तहत सरसों की खरीद अभी प्रभावी स्तर पर नहीं चल रही है। सरकार में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, अभी केवल गुजरात में खरीद शुरू हुई है और राजस्थान के कोटा संभाग में खरीद शुरू हुई है। अधिकांश राज्यों में होली के बाद ही सरकारी खरीद में तेजी आएगी। पीएसएस के तहत सरसों की खरीद नेफेड के जरिये की जाती है। चालू सीजन में सरकार ने 27.85 लाख टन सरसों की सरकारी खरीद का लक्ष्य रखा है।
हरियाणा में सरसों खरीद में देरी से किसानों में नाराजगी है और विपक्षी दल इसे मुद्दा बना रहे हैं। हरियाणा के जींद जिले की नरवाना तहसील के किसान अशोक दनौदा का कहना है कि हरियाणा सरकार सबसे ज्यादा फसलों की एमएसपी पर खरीद का दावा करती है लेकिन सरसों की खरीद अब तक शुरू नहीं की है जबकि किसान औने-पौने दाम पर सरसों बेचने को मजबूर हैं।
राजस्थान में ग्रामीण किसान-मजदूर समिति (जीकेएस) के नेता संतवीर सिंह मोहनपुरा ने रूरल वॉयस को बताया कि सरसों की खरीद के लिए शुक्रवार से रजिस्ट्रेशन शुरू होंगे। लेकिन सरकार ने प्रति किसान परिवार 25 क्विंटल खरीद की लिमिट तय कर दी है। यह लिमिट बढ़ाकर 40 क्विंटल करनी चाहिए और हर किसान से खरीद होनी चाहिए। इसके अलावा रजिस्ट्रेशन कराने में संयुक्त जोत वाले किसानों को कई दिक्कतें आ रही हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है। टॉप क्वालिटी की सरसों का दाम भी एमएसपी से लगभग 500 रुपये कम है। इससे किसानों के नुकसान का अंदाजा लगा सकते हैं।
सस्ते आयात की मार
पिछले साल भी बड़े स्तर पर किसानों को सरसों की बिक्री एमएसपी से नीचे करनी पड़ी थी। यह स्थिति तब है जबकि देश में खाद्य तेलों की कुल जरूरत का करीब 57 फीसदी हिस्सा आयात से पूरा होता है। सरसों की कीमतों में गिरावट की एक बड़ी वजह खाद्य तेलों का सस्ता आयात भी है। देश में खाद्य तेलों की सालाना खपत करीब 240 से 250 लाख टन है। इसमें करीब 110 लाख टन की पूर्ति घरेलू उत्पादन से होती है जबकि बाकी जरूरत को आयातित खाद्य तेलों से पूरा किया जाता है। इसके लिए सालाना 140 से 150 लाख टन तक खाद्य तेलों का आयात होता है।
सरकार ने खाद्य तेलों के सस्ते आयात के लिए शून्य व रियायती आयात शुल्क पर 31 मार्च, 2025 तक आयात की छूट दे रखी है। जाहिर है ऐसे में पॉम ऑयल, सनफ्लावर ऑयल, सोयाबीन तेल और कैनोला तेल का आयात बढ़ेगा। वैश्विक बाजार में इन तेलों की कम कीमत के चलते सरसों किसानों को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक सरकार लोक सभा चुनावों के मद्देनजर खाद्य तेलों कीमतों के मामले में कोई भी जोखिम नहीं लेना चाहती है। ऐसे में फैसले उपभोक्ता हितों को देखकर ही लिए जा रहे हैं। वहीं एक्सपर्ट्स का कहना है कि आत्मनिर्भरता की वकालत करने वाली सरकार किसानों के हितों की अनदेखी कर खाद्य तेलों में देश को आत्मनिर्भर कैसे बना सकती है।
बेहतर दाम के बाद किसानों को नुकसान
दो साल पहले रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते खाद्य तेलों की वैश्विक कीमतें आसमान छूने लगी थी। उस साल सरसों की कीमत 8000 रुपये प्रति क्विंटल को पार कर गई थी। बेहतर कीमत की उम्मीद में पिछले साल सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन करने वाले किसानों को मायूसी हाथ लगी थी।
पिछले साल सरकारी एजेंसियों ने अप्रैल में सरसों की खरीद शुरू की थी। उसमें भी पीएसएस स्कीम के तहत कुल उत्पादन की 20 फीसदी खरीद की सीमा तय है। राज्य सरकारें अपनी खरीद की मात्रा केंद्र को भेजती हैं। जिसके आधार पर नेफेड खरीद करती है।
इस साल के लिए अभी राज्य सरकारें अपनी मांग केंद्र को भेज रही हैं। वहीं सरसों की फसल फरवरी में बाजार में आने शुरू हो जाती है। जबकि सरकारी खरीद अप्रैल में जाकर शुरू होती है। इस बीच, बड़े पैमाने पर किसानों को एमएसपी से नीचे सरसों बेचनी पड़ती है। इस साल भी अधिकांश राज्यों में यही हो रहा है।
तिलहन उत्पादन में गिरावट का अनुमान
तिलहन उत्पादन बढ़ाकर खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता लाने सरकार के दावों के बावजूद चालू वर्ष 2023-24 के खरीफ सीजन में देश का कुल तिलहन उत्पादन करीब 33 लाख टन घटकर 228.42 लाख टन रह सकता है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, चालू रबी सीजन में तिलहन उत्पादन पिछले साल से करीब चार लाख टन घटकर 137.56 लाख टन रहने की संभावना है। पिछले साल के मुकाबले इस रबी सीजन में सरसों की बुवाई का क्षेत्र 3.32 लाख हेक्टअर घटकर 85.20 लाख हेक्टेअर रहा है जबकि सरसों उत्पादन पिछले साल के लगभग बराबर 126.96 लाख टन रहने का अनुमान है।
देश में साल 2021-22 में 107.19 लाख टन खाद्य तेलों का उत्पादन हुआ था जिसमें 38.19 लाख टन उत्पादन के साथ सरसों तेल सबसे ऊपर रहा। वहीं 2022-23 में कुल 113.48 लाख टन खाद्य तेल उत्पादन में सरसों की हिस्सेदारी 39.8 लाख टन रही। देश में खाद्य तेल उत्पादन में सरसों पहले स्थान पर है। इसके बाद सोयाबीन तेल, उसके बाद कॉटन सीड ऑयल और फिर राइस ब्रान ऑयल आता है। सरसों का एमएसपी निर्धारित होने के बावजूद अधिकांश सरसों उत्पादक राज्यों में किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर सरसों बेचनी पड़ रही है।