आर्थिक सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र की उत्पादकता बढ़ाने पर जोर, कृषि आय 5.23% सालाना बढ़ने का दावा
सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया है कि कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप कम करने की जरूरत है। इसमें कहा गया है कि भारत दुनिया का प्रमुख अनाज उत्पादक देश है और विश्व उत्पादन में 11.6 प्रतिशत योगदान करता है। लेकिन फसलों की उत्पादकता अनेक देशों की तुलना में बहुत कम है।
भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2025-26 में 6.3-6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। मौजूदा वित्त वर्ष में इसमें 6.4 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से शुक्रवार को संसद में रखे गए आर्थिक सर्वेक्षण का अनुमान दर्शाता है कि अगले वर्ष भी आर्थिक स्थितियां सुस्त रहेंगी। गौरतलब है कि भारत की आर्थिक विकास दर वित्त वर्ष 2023-24 में 8.2 प्रतिशत रही थी। सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि पिछले एक दशक में कृषि आय सालाना 5.23 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। इस दौरान गैर-कृषि आय में हर साल 6.24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया है कि कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप कम करने की जरूरत है। इसमें कहा गया है कि भारत दुनिया का प्रमुख अनाज उत्पादक देश है और विश्व उत्पादन में 11.6 प्रतिशत योगदान करता है। लेकिन फसलों की उत्पादकता अनेक देशों की तुलना में बहुत कम है। वर्ष 2012-13 से 2021-22 के दौरान फसल क्षेत्र में सालाना 2.1 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई है। वह भी मुख्य रूप से फल, सब्जियों और दालों के कारण। खाद्य तेलों में आयात पर निर्भरता होने के बावजूद इसकी वृद्धि दर सिर्फ 1.9 प्रतिशत है जो चिंता की बात है।
बागवानी, मवेशी और मछली पालन जैसे हाई वैल्यू सेक्टर में ज्यादा ग्रोथ रही है। वर्ष 2014-15 से 2022-23 के दौरान (मौजूदा मूल्यों पर) फिशरीज में सालाना औसतन 13.67 प्रतिशत और मवेशी क्षेत्र में 12.99 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है।
कृषि क्षेत्र में वृद्धि
सर्वेक्षण के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि स्थिर रही। दूसरी तिमाही में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछले चार तिमाहियों से अधिक थी। अच्छे खरीफ उत्पादन, सामान्य से अधिक मानसून और पर्याप्त जलाशय स्तर से इस सेक्टर को मदद मिली।
पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार इस वर्ष कुल खरीफ खाद्यान्न उत्पादन 1647.05 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है, जो 2023-24 की तुलना में 5.7 प्रतिशत और पिछले पांच वर्षों के औसत खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 8.2 प्रतिशत अधिक है। यह वृद्धि मुख्य रूप से चावल, मक्का, मोटे अनाज और तिलहन के उत्पादन में वृद्धि के कारण हुई है।
बेहतर दक्षिण-पश्चिम मानसून के चलते जलाशयों में जलस्तर में सुधार हुआ है, जिससे रबी फसलों की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो सका है। 10 जनवरी 2025 तक गेहूं और चने की रबी बुवाई क्रमशः 1.4 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत अधिक थी। बेहतर कृषि संभावनाएं खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने में भी सहायक हो सकती हैं।
फसलों में विविधता
सर्वेक्षण में बताया गया है कि 2011-12 से 2020-21 के बीच विभिन्न राज्यों में फसलों में विविधता भी देखी गई। आंध्र प्रदेश कृषि और संबंधित क्षेत्र (वानिकी और लकड़ी कटाई को छोड़कर) में 8.8 प्रतिशत सालाना की वृद्धि के साथ सबसे आगे रहा। मध्य प्रदेश 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ दूसरे और तमिलनाडु 4.8 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर रहा। इन राज्यों ने उन फसलों की ओर विविधीकरण किया जिनमें उत्पादकता अधिक है। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश ने ज्वार, मध्य प्रदेश ने मूंग और तमिलनाडु ने मक्का की ओर विविधीकरण किया। इसके बावजूद वैश्विक औसत की तुलना में उत्पादकता बढ़ाने और उपज के अंतर को कम करने की काफी संभावनाएं मौजूद हैं।
भविष्य को देखते हुए यह समझना महत्वपूर्ण है कि लोगों की बढ़ती आय के कारण खान-पान की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। यह कृषि क्षेत्र के विकास प्रभावित करेंगी। बागवानी उत्पादों के साथ पशुधन और फिशरीज प्रोडक्ट की खपत बढ़ेगी। इनके उच्च मूल्य वाले उत्पाद नष्ट भी जल्दी होते हैं। इसलिए मजबूत फसल प्रबंधन और मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यक होगी। इस प्रयास में किसान उत्पादक संगठन (FPOs), सहकारी समितियों और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) की सक्रिय भागीदारी महत्वपूर्ण होगी। इसके अलावा छोटे किसानों को सहयोग देने के लिए निजी क्षेत्र से पर्याप्त निवेश भी आवश्यक होगा।
जैसा बोओगे, वैसा काटोगे- यह कहावत बीज की गुणवत्ता और किसानों के लिए उसकी उचित मात्रा में उपलब्धता के महत्व को दर्शाती है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि 2023-24 सीजन में आईसीएआर (ICAR) ने 81 फसलों की 1,798 किस्मों के 1.06 लाख क्विंटल ब्रीडर बीज का उत्पादन किया। मौसम कृषि उत्पादन को प्रभावित करता है, इसलिए जलवायु-प्रतिरोधी बीजों पर अनुसंधान को प्राथमिकता दी जा रही है। 2014 से अब तक जारी की गई 2,593 नई किस्मों में से 2,177 जलवायु प्रतिरोधी ही हैं। ये किस्में आसानी से उपलब्ध कराने के लिए बीज बैंक स्थापित किए गए हैं। उत्तर-पश्चिमी भारत में गर्मी को झेलने वाली गेहूं किस्मों को व्यापक रूप से अपनाया गया है।