धान की सीधी बुवाई जोर पकड़ रही, मजदूरी और पानी की खपत में आती है कमी
देश के विभिन्न हिस्सों में धान की खेती पर किए गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में धान की सीधी बुआई जोर पकड़ रही है। इसमें न सिर्फ मजदूरी की लागत में कमी आती है, बल्कि पानी की खपत भी कम होती है जिससे किसानों को बचत ज्यादा होती है। इस अध्ययन में देश के सभी प्रमुख धान उत्पादक जिलों के कुल 3,800 किसानों को शामिल किया गया है। इन किसानों के पास औसतन 6 एकड़ जमीन है।
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देश के विभिन्न हिस्सों में धान की खेती पर किए गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में धान की सीधी बुआई जोर पकड़ रही है। इसमें न सिर्फ मजदूरी की लागत में कमी आती है, बल्कि पानी की खपत भी कम होती है जिससे किसानों को बचत ज्यादा होती है। इस अध्ययन में देश के सभी प्रमुख धान उत्पादक जिलों के कुल 3,800 किसानों को शामिल किया गया है। इन किसानों के पास औसतन 6 एकड़ जमीन है।
एग्रीपल्स (क्यू एंड क्यू रिसर्च इनसाइट के सिंडिकेट मार्केट रिसर्च अध्ययन) द्वारा किए गए इस अध्ययन में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना के किसानों को शामिल किया गया। इसमें कहा गया है कि पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ अभ्यास को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए कृषि इनपुट कंपनियों द्वारा खरपतवार प्रबंधन पर ध्यान देने की जरूरत है।
शोध से पता चला कि ब्राउन प्लांट हॉपर (बीपीएच) हरियाणा और पंजाब में खतरा बनता जा रहा है। धान की फसलों में लगने वाला यह प्रमुख कीट खेतों में पूरी तबाही मचाने में सक्षम है। यह कीट परंपरागत रूप से पहले देश के दक्षिणी राज्यों तक ही सीमित था, लेकिन अब यह पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तरी राज्यों में भी फैल रहा है। पंजाब और हरियाणा में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है। यदि पहले से इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो बीपीएच एक रात में ही खड़ी फसल को नष्ट कर सकता है। इसका खतरा इस हद तक है कि खेत में खड़ी फसल 80-100 दिनों में पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी।
अध्ययन से पता चला है कि धान की खेती के लिए मजदूरी में लगातार इजाफा हो रहा है। साथ ही मजदूर मिलने में भी दिक्कत हो रही है। पिछले चार वर्षों में मजदूरी की लागत 25-30 फीसदी बढ़ गई है। कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब और बिहार में मजदूरी की लागत में काफी वृद्धि हुई है। धान किसान ड्रोन जैसी बेहतर तकनीक और प्रभावी कीटनाशकों की तलाश में हैं। रिसर्च के दौरान कुछ किसानों ने कम मजदूरी वाली फसलों की ओर रुख करने की भी बात कही।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लेप्टोक्लोआ चिनेंसिस धान की फसल के लिए एक हानिकारक खरपतवार है जो विशेष रूप से उत्तरी भारत में तेजी से फैल रही है। स्थानीय भाषा में इसे "चीनी घास" कहा जाता है जो किसानों के लिए खतरा है क्योंकि उनके पास अभी तक इसका कोई ठोस समाधान नहीं है। यदि खरपतवार को नियंत्रित नहीं किया गया तो संभावित रूप से किसानों को 20-25 फीसदी का नुकसान होता है। यह खरपतवार धान की सीधी बुवाई वाली फसलों में भी देखा जाता है।
अध्ययन के मुताबिक, खरपतवारनाशी के उपयोग के पैटर्न में बदलाव देखा जा रहा है। पहले जहां खरपतवारनाशी का इस्तेमाल सतर्कता बरतते हुए उनके उगने से पहले ही कर दिया जाता था, वहीं अब इसकी शुरुआत होने या उसके बढ़ जाने पर आपातकालीन स्थिति में खरपतवारनाशी का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, हाइब्रिड धान अपनाने में किसानों में आशाजनक रुझान नहीं दिख रहा है क्योंकि पिछले चार सीजन में उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रमुख इलाकों में हाइब्रिड धान अपनाने में गिरावट या स्थिर रुझान देखा गया है। वर्तमान में यह 7 फीसदी (राष्ट्रीय औसत) है जो कई वर्षों से स्थिर है।
अध्ययन में कहा गया है कि इसका प्रमुख कारण यह है कि मानसून की अनिश्चितता की वजह से किसानों को अपने निवेश और हाइब्रिड धान से सुनिश्चित रिटर्न मिलने को लेकर अनिश्चितता है।