भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेदार नहीं, शहरीकरण भी बड़ी वजह
बढ़ते तापमान, अधिक ह्यूमिडिटी और शहरी विस्तार के कारण घातक होता जा रहा है हीटवेव का प्रभाव। शहरों में रात के समय भी गर्मी से निजात नहीं मिल पा रही है।
उत्तर, मध्य और पश्चिमी भारत के इलाके भीषण हीटवेव की चपेट में हैं। खासतौर पर महानगरों में गर्मी का सबसे ज्यादा असर देखा जा रहा है। लेकिन केवल जलवायु परिवर्तन ही भारतीय शहरों को गर्म नहीं बना रहा है, इसमें शहरीकरण का प्रमुख योगदान है। भारत के शहर देश के बाकी हिस्सों की तुलना में लगभग दोगुनी दर से गर्म हो रहे हैं। शहरों के बढ़ते तापमान के लिए शहरीकरण 60 फीसदी जिम्मेदार है। यह तथ्य आईआईटी, भुवनेश्वर के एक अध्ययन में सामने आया है। इसके अलावा एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि भारत के शहर रात में उतने ठंडे नहीं हो रहे हैं जितने वर्ष 2001 से 2010 के दौरान हुआ करते थे।
आईआईटी, भुवनेश्वर के शोधकर्ताओं ने देखा कि पिछले दो दशकों में भारत के 141 शहरों में रात के समय के तापमान में किस हद तक वृद्धि हुई है और इसके लिए शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन किस हद तक जिम्मेदार हैं। इसके लिए उन्होंने 2003 से 2020 के दौरान सैटेलाइट डेटा की मदद से रात के समय भूमि सतह के तापमान का विश्लेषण किया। आईआईटी के शोधकर्ता वी विनोज और सौम्या सत्यकांत सेठी के इस अध्ययन पर हाल ही में जर्नल नेचर सिटीज में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है।
आसपास के गैर-शहरी क्षेत्रों के साथ शहरों में गर्मी के रुझान की तुलना करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन के कारण शहरी क्षेत्रों में कुछ गर्मी बढ़ी है। लेकिन अधिकांश शहरों में गर्मी बढ़ने की दर आसपास के क्षेत्रों के मुकाबले अधिक थी। लगभग सभी शहरों में प्रति दशक 0.53° सेल्सियस की औसत वृद्धि एनएलएसटी में देखी गई। शोध में सामने आया है कि अकेले शहरीकरण के कारण भारतीय शहरों में गर्मी में 60% की वृद्धि हुई है, जिसमें पूर्वी भारत के टियर-2 शहर अग्रणी हैं।
हालाँकि, शहरीकरण के कारण होने वाली गर्मी और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली तापमान वृद्धि के बीच अंतर करना जटिल है। कई अध्ययनों ने क्षेत्रीय या ग्लोबल वार्मिंग तथा शहरीकरण के कारण बढ़ने वाली गर्मी के आकलन का प्रयास किया गया है। इसमें सामने आया कि शहरीकरण का लोकल और रीजनल वार्मिंग बढ़ाने में काफी योगदान है, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग में इसका योगदान न्यूनतम आंका गया है।
आईआईटी, भुवनेश्वर के शोधकर्ताओं ने भारतीय शहरों में रात के समय सतह के तापमान में वृद्धि पर शहरीकरण और क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को अलग-अलग कर मापने का प्रयास किया। इस अध्ययन में, शहरों को स्थानीय स्तर के शहरीकरण और क्षेत्रीय जलवायु-परिवर्तन-संबंधी वार्मिंग के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। इससे पता चलता है कि भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी से निपटने के लिए अलग-अलग पैमाने पर अलग-अलग प्रयासों की आवश्यकता है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के एक नए अध्ययन में सामने आया है कि भारत के महानगरों में रात का तापमान उतना कम नहीं हो रहा है जितना 2001-2010 के दौरान हुआ था। यानी महानगरों में रात के समय भी गर्मी से निजात नहीं मिल रही है। गर्मी की मार का संबंध सिर्फ बढ़ते बढ़ते तापमान से ही नहीं है बल्कि हवा का तापमान, भूमि की सतह का तापमान और सापेक्ष आर्द्रता मिलकर हीट स्ट्रेस यानी गर्मी के प्रभाव को बढ़ाते हैं।
इस अध्ययन में जनवरी 2001 से अप्रैल 2024 की अवधि में छह प्रमुख शहरों - दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई और बेंगलुरु के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि हालांकि कुछ शहरों में हवा का तापमान उतना अधिक नहीं बढ़ा है, लेकिन बढ़ी ह्यूमिडिटी गर्मी के प्रभाव को बढ़ा रही है।