विश्व बाजार में जुलाई में अनाज के दाम घटे, लेकिन वनस्पति तेल और चीनी की कीमतों में वृद्धि
एफएओ अनाज मूल्य सूचकांक में जून से 3.8 प्रतिशत की गिरावट आई। लगातार दूसरे महीने सभी प्रमुख अनाजों के वैश्विक निर्यात मूल्यों में कमी देखने को मिली। उत्तरी गोलार्ध में चल रही सर्दियों की फसलों से बढ़ती मौसमी उपलब्धता और कनाडा तथा अमेरिका में अनुकूल परिस्थितियों के कारण वर्ष के अंत में बड़े पैमाने पर गेहूं की फसल की उम्मीद है। इससे गेहूं के भाव में गिरावट आई।
जुलाई में लगातार दूसरे महीने विश्व खाद्य कमोडिटी की कीमतों का मानक कमोबेश अपरिवर्तित रहा। पिछले महीने वनस्पति तेलों, मीट और चीनी की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि हुई, लेकिन इसकी भरपाई अनाज के दामों में जारी गिरावट से हो गई। एफएओ खाद्य मूल्य सूचकांक जुलाई में औसतन 120.8 अंक रहा, जो जून के संशोधित 121.0 अंक से थोड़ा कम है। सूचकांक एक वर्ष पहले की तुलना में 3.1 प्रतिशत कम है।
एफएओ अनाज मूल्य सूचकांक में जून से 3.8 प्रतिशत की गिरावट आई। लगातार दूसरे महीने सभी प्रमुख अनाजों के वैश्विक निर्यात मूल्यों में कमी देखने को मिली। उत्तरी गोलार्ध में चल रही सर्दियों की फसलों से बढ़ती मौसमी उपलब्धता और कनाडा तथा अमेरिका में अनुकूल परिस्थितियों के कारण वर्ष के अंत में बड़े पैमाने पर गेहूं की फसल की उम्मीद है। इससे गेहूं के भाव में गिरावट आई।
मक्का के निर्यात मूल्यों में भी गिरावट आई क्योंकि अर्जेंटीना और ब्राजील में फसल पिछले साल से बेहतर है और अमेरिका में भी फसल की स्थिति अच्छी है। इंडिका और जैपोनिका दोनों किस्मों के लिए आम तौर पर कमजोर मांग के बीच एफएओ के चावल की कीमतों के इंडेक्स में जून से 2.4 प्रतिशत की गिरावट आई।
इसके विपरीत, एफएओ वनस्पति तेल मूल्य सूचकांक जून से 2.4 प्रतिशत बढ़कर डेढ़ साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। जैव ईंधन क्षेत्र से सोया तेल की मजबूत मांग और कई प्रमुख उत्पादक देशों में सूरजमुखी और रेपसीड की फसल बिगड़ने की आशंका के कारण पाम, सोया, सूरजमुखी और रेपसीड तेलों के लिए मांग बढ़ी।
एफएओ चीनी मूल्य सूचकांक जून से 0.7 प्रतिशत बढ़ा है, क्योंकि ब्राजील में उम्मीद से कम उत्पादन होने का अनुमान है। भारत में बेहतर मानसून वर्षा और थाईलैंड में अनुकूल मौसम के प्रभाव पर ब्राजील की परिस्थितियां भारी रहीं। एफएओ डेयरी मूल्य सूचकांक जुलाई में अपरिवर्तित रहा। पिछले महीने दूध पाउडर की मांग तो घटी, लेकिन मक्खन और पनीर की बढ़ गई।