डीएमएच-11 किस्म के जीएम सरसों के ट्रायल में उत्पादकता हाइब्रिड किस्मों के बराबर, तेल की मात्रा बेहतर
जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सरसों की किस्म डीएमएच-11 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इसी सप्ताह सुनवाई है। उम्मीद है कि इसकी मंजूरी को लेकर कोई अहम फैसला आ सकता है। उच्चपदस्थ सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया, फील्ड ट्रायल में पता चला कि उत्पादकता का स्तर निजी कंपनियों की सरसों की हाइब्रिड किस्मों के बराबर है जबकि इसके बीज में तेल का स्तर बेहतर है।
देश में जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सरसों की किस्म डीएमएच-11 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इसी सप्ताह सुनवाई है। उम्मीद है कि इसकी मंजूरी को लेकर कोई अहम फैसला आ सकता है। पिछले साल 18 अक्टूबर को जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (जीईएसी) ने डीएमएच-11 के फील्ड ट्रायल की अनुमति दी थी और इसका जिम्मा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार ने यथास्थिति रखने का आश्वासन दिया था, लेकिन उससे पहले आईसीएआर (ICAR) ने छह स्थानों पर इस किस्म के ट्रायल के लिए बुवाई कर दी थी, जिसके आंकड़े आईसीएआर के पास हैं। उच्चपदस्थ सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया, फील्ड ट्रायल में पता चला कि उत्पादकता का स्तर निजी कंपनियों की सरसों की हाइब्रिड किस्मों के बराबर है जबकि इसके बीज में तेल का स्तर बेहतर है।
उक्त सूत्रों ने बताया कि जीएम (GM) किस्म डीएमच-11 की उत्पादकता का स्तर पायनियर कंपनी की हाइब्रिड किस्म के बराबर है। वहीं तेल की मात्रा के मामले में यह उससे बेहतर है। आईसीएआर ने दिल्ली, भरतपुर, लुधियाना, बनारस और कोटा समेत छह स्थानों पर इसका ट्रायल किया है। इस जीएम किस्म को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. दीपक पेंटल की टीम के पास डीएमएच-11 (DMH-11) किस्म का करीब 500 किलो बीज उपलब्ध होने की बात भी उक्त सूत्र ने बताई।
सुप्रीम कोर्ट में 10 अक्टूबर की सुनवाई में अगर सरसों की इस किस्म के पक्ष में फैसला आता है तो चालू रबी सीजन में इसके देश भर में बड़े ट्रायल के लिए पर्याप्त बीज उपलब्ध होगा। आईसीएआर के ट्रायल उत्पादन का उपयोग बीज के रूप में किया जा सकेगा। सरसों के लिए प्रति हेक्टेयर एक किलो बीज की जरूरत होती है।
आईसीएआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि सरसों के लिए बारनेस (Barnase) और बारस्टार (Barstar) जीन का उपयोग करने वाली टेक्नोलॉजी को मंजूरी मिल जाती है, तो उसका फायदा यह होगा कि डीएमएच-11 किस्म के अलावा इसका उपयोग कर सरसों की बेहतर उत्पादकता वाली हाइब्रिड किस्में तैयार की जा सकती हैं। हाइब्रिड किस्मों के लिए एवाईआर और एवाईबी प्रक्रिया के जरिये पेरेंटल लाइन से हाइब्रिड बीज का उत्पादन किया जा सकेगा।
उक्त वैज्ञानिक का कहना है कि जीएम कॉटन की मंजूरी के समय इसकी हाइब्रिड किस्मों का उत्पादन स्तर बहुत अच्छा नहीं था। बाद में बेहतर उत्पादकता वाली हाइब्रिड किस्मों में बीटी टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया। बीटी कॉटन की हाइब्रिड किस्मों के रूप में देश में 1500 किस्में नोटिफाई हो चुकी हैं। ऐसे में डीएमएच-11 की मंजूरी की तुलना में इसके लिए उपयोग की गई टेक्नोलॉजी को मंजूरी मिलना अधिक महत्वपूर्ण है।
देश में खाद्य तेलों की आपूर्ति में सरसों की अहम भूमिका है। लेकिन सरसों की उत्पादकता बढ़ाने में हम लगातार नाकाम रहे हैं। इसलिए वैज्ञानिक तर्क दे रहे हैं कि जीएम सरसों के उत्पादन को मंजूरी देना उत्पादकता बढ़ाने का एक प्रमुख उपाय है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर डॉ. दीपक पेंटल ने जीएम सरसों की किस्म धारा मस्टर्ड हाइब्रिड-11 (डीएमएच-11) विकसित की थी, जिसके कमर्शियल रिलीज की अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। इसी किस्म के कमर्शियल रिलीज की मंजूरी के पक्ष में सब-कमेटी ने अपनी सिफारिशें दी थीं।
डॉ. पेंटल ने इस जीएम किस्म के लिए बारनेस-बारस्टार (Barnase-barstar) तकनीक को अपनाया है। इसमें बारनेस के जरिये मेल को स्टेराइल (निष्प्रभावी) किया जाता है। वहीं बारस्टार के जरिये दूसरी लाइन में मेल को एक्टिवेट किया जाता है। इस प्रक्रिया में उपयोग जीन को बीए जीन नाम से जाना जाता है। इस जीएम इवेंट पर 1991 में अमेरिका में पेटेंट लिया गया था। डॉ. पेंटल ने इसमें बदलाव किया है जिसे वैज्ञानिक ‘ट्विक करना’ कहते हैं। उन्होंने भी इसका पेटेंट अमेरिका से हासिल कर रखा है। इस जीएम वैरायटी के लिए सरसों की वरुणा प्रजाति का उपयोग किया गया है।
जीएम सरसों की इस किस्म को जीईएसी द्वारा मंजूरी देने के पहले गठित सब कमेटी के एक सदस्य ने रूरल वॉयस को बताया कि सरसों का उत्पादन बढ़ाने के लिए बेहतर गुणवत्ता वाली हाइब्रिड किस्मों की जरूरत है। कई निजी कंपनियों की हाइब्रिड किस्में बाजार में बिक रही हैं। लेकिन उत्पादकता का उच्च स्तर जीएम किस्म की मंजूरी से ही हासिल किया जा सकता है। परंपरागत तरीके से सरसों की हाइब्रिड किस्में तैयार करना काफी लंबा और मुश्किल काम है। जीएम तकनीक के जरिये इसकी प्रक्रिया को छोटा किया जाना संभव है।
भारत खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता का चक्र नहीं तोड़ पा रहा है। ऐसे में जीएम सरसों की मंजूरी के बाद बेहतर जीएम किस्में तेल उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी कर सकती हैं। कॉटन के मामले में भी यही हुआ। जीएम कॉटन के जरिए आयात पर निर्भरता खत्म हुई ही, भारत एक बड़ा कॉटन निर्यातक देश भी बन गया था। हालांकि किसी नई टेक्नोलॉजी को मंजूरी नहीं मिलने से पुरानी टेक्नोलॉजी का फायदा लगभग खत्म हो गया है और कपास के उत्पादन में गिरावट आने लगी है।