धान की खेती में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए बेयर ने जेनजीरो और शेल इंडिया से मिलाया हाथ, सीधी बुवाई को दे रही बढ़ावा
कुल वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में धान की खेती से लगभग 10 फीसदी मीथेन का उत्सर्जन होता है। यह एक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस है जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 27 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग की क्षमता है। कुल वैश्विक कृषि क्षेत्र के 15 फीसदी हिस्से में धान की खेती होती है जो 15 करोड़ हेक्टेयर से अधिक के बराबर है। धान की कुल वैश्विक खेती में वैश्विक ताजे पानी का लगभग एक तिहाई हिस्सा इस्तेमाल होता है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने और वैश्विक तापमान की वृद्धि को सीमित करने के लिए धान की खेती में मीथेन उत्सर्जन में कटौती को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास की आवश्यकता है।
टेमासेक के स्वामित्व वाली निवेश प्लेटफॉर्म कंपनी जेनजीरो और शेल पीएलसी की सहायक कंपनी एवं प्रकृति-आधारित समाधानों में निवेशक शेल एनर्जी इंडिया के सहयोग से बेयर धान की खेती में मीथेन उत्सर्जन में कमी को मापने के लिए एक मजबूत मॉडल विकसित करने का प्रयास कर रही है। प्रस्तावित मॉडल में रिमोट सेंसिंग तकनीक को शामिल करते हुए मापने, रिपोर्टिंग और सत्यापन (एमआरवी) तंत्र का उपयोग कर छोटे किसानों के लिए प्रशिक्षण, समर्थन और मार्गदर्शन शामिल होगा।
बेयर ने एक बयान में कहा है कि इस परियोजना का लक्ष्य चावल डीकार्बोनाइजेशन क्षेत्र में इस तरह के प्रयासों के लिए एक बेंचमार्क स्थापित करना है। कुल वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में धान की खेती से लगभग 10 फीसदी मीथेन का उत्सर्जन होता है। यह एक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस है जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 27 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग की क्षमता है। कुल वैश्विक कृषि क्षेत्र के 15 फीसदी हिस्से में धान की खेती होती है जो 15 करोड़ हेक्टेयर से अधिक के बराबर है। धान की कुल वैश्विक खेती में वैश्विक ताजे पानी का लगभग एक तिहाई हिस्सा इस्तेमाल होता है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने और वैश्विक तापमान की वृद्धि को सीमित करने के लिए धान की खेती में मीथेन उत्सर्जन में कटौती को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास की आवश्यकता है।
बेयर ने पिछले दो वर्षों में इसके लिए पहले ही आवश्यक जमीनी कार्य कर लिया है और पूरे भारत में चावल की एक पायलट परियोजना शुरू की है। इसके तहत कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लिए धान की रोपाई के मौजूदा पारंपरिक तरीके जिसमें खेतों में पानी भरकर पौध की रोपाई की जाती है, को छोड़कर वैकल्पिक तरीके अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया गया। वैकल्पिक तरीके के तहत धान के पौध की जगह धान के बीजों की ही सीधी रोपाई की जाती है जिसमें पानी की जरूरत बहुत सीमित होती है। इस प्रोजेक्ट के पहले वर्ष में खरीफ सीजन 2023 और रबी सीजन 2023-24 के दौरान धान की खेती को 25,000 हेक्टेयर तक बढ़ाने का लक्ष्य है। पहले वर्ष के दौरान मिली कोई भी सफलता बड़े पैमाने पर टिकाऊ चावल परियोजना के कार्यान्वयन का मार्ग खोलेगी।
इससे ग्रीन हाउस गैस में कटौती के अलावा, पानी की बचत, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और छोटे किसानों के लिए सामुदायिक आजीविका में वृद्धि जैसे अन्य लाभ उत्पन्न होने की उम्मीद है। इसकी वैज्ञानिक सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए विश्व प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) वैज्ञानिक आकलन करने में बहुमूल्य सहायता प्रदान करेगा।
बेयर के क्रॉप साइंस डिवीजन के कंट्री डिवीजनल हेड (भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका) साइमन थॉर्स्टन विबुश ने इस पहल पर कहा, “धान की खेती के लिए बेयर की प्रतिबद्धता दोहरी है। चावल पर फोकस के माध्यम से हम मानवता को प्रभावित करने वाली दो सबसे बड़ी चुनौतियों अर्थात् खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन को हल करना चाहते हैं। इस कार्यक्रम के तहत हमारा लक्ष्य इस बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना है कि कैसे कृषि के वैकल्पिक तरीकों से मीथेन उत्सर्जन में कटौती, जल संरक्षण, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और छोटे किसानों के सतत विकास के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिल सकती है। जेनजेरो, शेल, आईआरआरआई और अन्य संगठनों की विशेषज्ञता और समर्थन मिलने से ऐसे तरीकों को तेजी से अपनाने और पारिस्थितिक तंत्र विकसित करने में काफी मदद मिलेगी।"
जेनजीरो के सीईओ फ्रेडरिक टिओ ने कहा, “चावल मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों में से एक है। भारत वैश्विक स्तर पर चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। इसलिए जलवायु परिवर्तन से लड़ने और खाद्य सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए डीकार्बोनाइजिंग चावल की खेती आवश्यक है। इस कार्यक्रम के तहत हमारा लक्ष्य भारत में छोटे किसानों के लिए धान की सीधी बुवाई के वैकल्पिक तरीकों को अपनाकर धान की खेती के भविष्य को बदलना है।''
शेल पीएलसी के उपाध्यक्ष फ्लोरा जी ने कहा, “प्रकृति आधारित समाधान के तहत चावल की खेती की इस तरह की परियोजना जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और सतत विकास में योगदान देने में एक महत्वपूर्ण समाधान हैं। हम क्षमताओं को और मजबूत करने और बड़े पैमाने पर प्रकृति-आधारित समाधानों के लिए नई प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के लिए इस कार्यक्रम के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं।'' बेयर के इस पहल के बारे में आईआरआरआई के अनुसंधान उप महानिदेशक डॉ. अजय कोहली ने कहा, “सार्वजनिक-निजी भागीदारी खाद्य प्रणालियों को बदलने का एक प्रभावी तरीका है जो सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दोनों क्षेत्रों की ताकत और संसाधनों का लाभ उठाती है। कृषि विज्ञान में ऐसी साझेदारियां अनुसंधान और विकास की दक्षता और प्रभावशीलता में सुधार ला सकती हैं। दोनों क्षेत्रों की शक्तियों और संसाधनों को मिलाकर और ज्ञान एवं क्षमता निर्माण को साझा करके कृषि क्षेत्र की समग्र उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ाया जा सकता है।''