खाद्य भंडारण सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा, डब्लूटीओ में पहले इसका समाधान तलाशना जरूरीः पीयूष गोयल
गोयल ने कहा, सार्वजनिक खाद्य भंडारण के मुद्दे का स्थायी समाधान तलाशा जाना चाहिए, इसमें पहले ही बहुत देर हो चुकी है। डब्लूटीओ के सदस्य अन्य मुद्दों पर चर्चा करें, इससे पहले 12वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि दुनियाभर के लोगों के लिए इससे अधिक महत्वपूर्ण और कुछ नहीं है
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि कोविड-19 महामारी ने एक बार फिर आम लोगों के हित में खाद्य भंडारण की जरूरत को उजागर किया है। सार्वजनिक खाद्य भंडारण के मुद्दे का स्थायी समाधान तलाशा जाना चाहिए, इसमें पहले ही बहुत देर हो चुकी है। डब्लूटीओ के सदस्य अन्य मुद्दों पर चर्चा करें, इससे पहले 12वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि दुनियाभर के लोगों के लिए इससे अधिक महत्वपूर्ण और कुछ नहीं है।
गोयल ने रविवार को जिनेवा में डब्लूटीओ की बैठक शुरू होने से पहले यह बात कही। वे इस 12वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। मंत्रिस्तरीय समूह डब्लूटीओ के फैसले लेने वाली सर्वोच्च बॉडी है। कोविड-19 महामारी और अन्य कारणों से इसकी बैठक चार वर्षों के बाद हो रही है। इस बैठक में भारत के लिहाज से खाद्य भंडारण का मुद्दा काफी अहम है।
फिशरीज सब्सिडी भी एक मुद्दा है, जिस पर गोयल ने कहा कि पारंपरिक मछुआरों की आजीविका के साधन में किसी तरह की कटौती नहीं की जा सकती है। जो लोग भारत से सब्सिडी कटौती की उम्मीद रखते हैं उन्हें मछलियों का स्टॉक घटने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, क्योंकि लंबे समय तक उनकी सब्सिडी के कारण ही ऐसा हुआ है।
डब्लूटीओ प्रमुख के साथ बैठक में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल
मुश्किल भरी है आगे की राहः डब्लूटीओ प्रमुख
डब्लूटीओ के 164 सदस्य देश हैं। इस बैठक में 120 से अधिक देशों के मंत्री आए हैं। बैठक शुरू होने से पहले डब्लूटीओ की महानिदेशक नगोजी ओकोंजो इवीला ने कहा, “आगे की राह ऊबड़-खाबड़ और पथरीली है। हमें उन्हें दूर करना होगा।” डब्लूटीओ प्रमुख ने दावा किया कि विश्व व्यापार ने 100 करोड़ लोगों को गरीबी से निकाला है, लेकिन गरीब देश और अमीर देशों के गरीब लोग इसमें पीछे छूट गए।
यूक्रेन पर रूस के हमले से पैदा हुए वैश्विक खाद्य संकट का मुद्दा भी उन्होंने उठाया। युद्ध के कारण बंदरगाह बंद होने से करीब 2.5 करोड़ टन अनाज का निर्यात नहीं हो सका। बैठक में विभिन्न देशों के मंत्री इस विषय पर भी चर्चा करेंगे कि गेहूं, उर्वरक और अन्य उत्पादों की किल्लत को देखते हुए रूस पर लगे निर्यात प्रतिबंधों में ढील दी जाए या नहीं। संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्लूएफपी) पर भी चर्चा होगी जिससे जरूरतमंद देशों को खाद्य पदार्थों की आपूर्ति हो सके।
भारत चाहता है निर्यात पर प्रतिबंध का अधिकार
भारत इस बात के खिलाफ है कि डब्लूएफपी के तहत खाद्य पदार्थों का निर्यात हर सूरत में जारी रहे। यानी इस पर कभी रोक न लगे। भारत चाहता है कि हर देश को घरेलू खाद्य संकट से निपटने का अधिकार बना रहे। गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पहले तो भारत ने गेहूं निर्यात को बढ़ावा दिया, लेकिन जब इस वर्ष रबी सीजन में गेहूं का उत्पादन घट गया और सरकारी खरीद पिछले साल की आधी रह गई तो सरकार ने निर्यात पर रोक लगा दी। अब दो सरकारों के बीच अनुबंध पर ही गेहूं निर्यात हो सकता है। भारत की पाबंदी के बाद विश्व बाजार में गेहूं की किल्लत और बढ़ गई तथा अनेक देशों के सामने खाद्य संकट आ गया है।
डब्लूटीओ के नियमों के तहत सदस्य देश अपने यहां किल्लत होने पर खाद्य पदार्थ के निर्यात पर अंकुश या पाबंदी लगा सकते हैं। सिंगापुर के नेतृत्व में करीब 75 देश अन्य सदस्यों को इस बात पर राजी करने में लगे हैं कि डब्लूएफपी के तहत अनाज निर्यात पर कोई देश रोक न लगाए। डब्लूटीओ प्रमुख ओकोंजो-इवीला मई में कृषि, ट्रेड और खाद्य सुरक्षा तथा निर्यात पाबंदी पर तीन ड्राफ्ट लेकर आई थीं। भारत ने इसका विरोध किया था।