केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डॉ. संजीव कुमार बालियान ने कहा है कि किसानों को नई तकनीक और फसलों की नई किस्मों का फायदा उठाना चाहिए। मेरी हमेशा हर संभव कोशिश रही है कि किसानों के फायदे के लिए कदम उठाए जा सकें। डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस द्वारा आयोजित रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एंड नेकॉफ अवार्ड्स, 2022 के समापन सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. बालियान ने यह बातें कहीं।
रूरल वॉयस द्वारा अपनी दूसरी वर्षगांठ पर शुक्रवार को नई दिल्ली में आयोजित कॉन्क्लेव के विभिन्न विषयों पर आयोजित चार सत्रों में कृषि से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गई। जिसमें केंद्रीय राज्य मंत्री, नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद और दूसरे अधिकारियों ने किसानों के मसलों का हल करने और उनकी आय मे बढ़ोतरी के लिए सरकार द्वारा जरूरी कदम उठाने का भरोसा दिया।
रूरल वॉयस कॉन्क्लेव के पहले सत्र को संबोधित करते हुए नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) फसलों की कीमतों में स्थायित्व की गारंटी तो दे सकता है लेकिन यह हमेशा एक बेहतर दाम नहीं हो सकता है। बेहतर दाम बाजार प्रतिस्पर्धा से ही सुनिश्चित किया जा सकता है। पहले सत्र का विषय "एमएसपी के कानूनी प्रावधान की तार्किकता और उसके प्रभावः केंद्र व राज्य सरकारों की भूमिका" था।
किसान संगठनों द्वारा एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग पर प्रोफेसर चंद ने कहा कि किसान इसके जरिए अपने उत्पाद की बेहतर कीमत चाहते हैं और इसके जरिये कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव से सुरक्षा भी चाहते हैं।
डॉ. बालियान ने किसान दिवस के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह को श्रद्धांजली देते हुए कहा कि उनके जैसा किसान नेता होना अब संभव नहं है। इसके साथ ही उन्होंने रूरल वॉयस द्वारा कृषि क्षेत्र और किसानों के लिए एक सशक्त समाचार माध्यम के रूप में काम करने की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि जिस तरह से किसान से चौधरी चरण सिंह को अलग नहिं किया जा सकता है उसी तरह किसानों के लिए काम करने वाले डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस को भी किसानों से अलग नहीं किया जा सकता है।
कॉन्क्लेव के पहले सत्र को संबोधित करते हुए नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) फसलों की कीमतों में स्थायित्व की गारंटी तो दे सकता है लेकिन यह हमेशा एक बेहतर दाम नहीं हो सकता है। बेहतर दाम बाजार प्रतिस्पर्धा से ही सुनिश्चित किया जा सकता है।
किसान संगठनों द्वारा एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग पर प्रोफेसर चंद ने कहा कि किसान इसके जरिए अपने उत्पाद की बेहतर कीमत चाहते हैं और इसके जरिये कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव से सुरक्षा भी चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि मेरी राय है कि एमएसपी सबसे बेहतर समाधान नहीं है। यह कीमतों में स्थायित्व तो प्रदान करता है लेकिन बेहतर कीमत प्रतिस्पर्धा से ही मिलती है। अगर किसी उत्पादन की मांग के लिए बाजार में प्रतिस्पर्धा होती है तो उसके जरिये किसान को सबसे बेहतर कीमत मिलना संभव है।
सरकार 22 फसलों के लिए एमएसपी का निर्धारण करती है जिसबसे अधिक खरीद गेहूं और चावल की होती है जिसका वितरण सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत होता है। सरकार दालों और तिलहन की भी खरीद करती है लेकिन इनकी मात्रा बहुत अधिक नहीं होती है।
प्रोफेसर रमेश चंद ने कहगा कि किसानों को केवल एमएसपी के भरोसे नहीं रहना चाहिए। केवल एमएसपी पर निर्भरत से किसानों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि किसानों को बाजार का फयादा उठाकर बेहतर कीमत के विकल्प पर भी विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कृषि और सहयोगी क्षेत्र में सबसे तेज वृद्धि दर उन क्षेत्रों से आ रही है जहां जहां सरकार का कीमतों में कम से कम हस्तक्षेप है। इस बात को प्रमुखता देने के लिए उन्होंने डेयरी, फिशरीज और हार्टिकल्चर क्षेत्र का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हर परिस्थिति मेंं एमएसपी व्यवस्था के जरिये ही सबसे बेहतर कीमत हासिल की जा सकती है और यही सिस्टम सबसे बेहतर विकल्प है।
उन्होंने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि खास परिस्थितियों में एमएसपी की अहम भूमिका होती है लेकिन यह बाजार की गतिविधियों के जरिये बेहतर कीमत हासिल करने की किसानों की आंत्रप्रन्योरशिप स्किल को भी कमजोर करती है।
एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग पर उनहोंने कहा कि इसके कई तरह के परिणाम सामने आ सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एमएसपी, उचित मूल्य और वास्तविक बाजार मूल्य के तीन विकल्पों पर विचार किया जाएगा। अगर उचित मूल्य एमएसएपी से अधिक है तो उस स्थिति में एमएसपी की कानूनी गारंटी की व्यवस्था काम कर सकती है। लेकिन यदि उचित बाजार मूल्य एमएसपी से कम है तो उस स्थिति में बिजनेसमैन बाजार से बाहर हो जाएगा और उसके चलते सरकार को राजकोषीय मुश्किलों को सामना करना पड़ सकता है।
सरकार ने इसी साल जुलाई में एमएसपी पर एक कमेटी गठित की थी। यह कदम किसानों के आंदोलन की समाप्ति के बाद उठाया गया था। कमेटी एमएसपी, सीएसीपी की स्वायत्ता जैसे तमाम मुद्दों पर विचार कर रही है।
पहले सत्र का विषय "एमएसपी के कानूनी प्रावधान की तार्किकता और उसके प्रभावः केंद्र व राज्य सरकारों की भूमिका" था। जिसमें प्रोफेसर रमेश चंद के अलावा नेशनल प्रॉडक्टिविटी काउंसिल (एनपीसी) के महानिदेशक संदीप कुमार नायक, पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव सिराज हुसैन और इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ के प्रोफेसर सीएसपी शेखर ने हिस्सा लिया। प्रोफेसर शेखर एमएसपी कमेटी के सदस्य भी हैं।
कॉन्क्लेव में कृषि क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए रूरल वॉय नेकॉफ अवार्ड से सम्मानित किया गया। केंद्रीय राज्य मंत्री संजीव बालियान ने पुरस्कार प्रदान किये। कार्यक्रम के इस सत्र में इफको के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने भी मौजूद थे और उन्होंने इस सत्र को संबोधित करते हुए कृषि में तकनीक के फायदे बताते हुए नैनो यूरिया का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह से नैनो यूरिया किसानों और फसलों के लिए तो बेहतर है ही यह पर्यावरण संरक्षण के लिए भी एक बेहतर विकल्प बन कर सामने आया है।