महाराष्ट्र में सोयाबीन किसानों की नाराजगी बन सकती है चुनावी मुद्दा

सोयाबीन की गिरती कीमतों के कारण केंद्र सरकार ने सितंबर में प्राइस स्पोर्ट स्कीम के तहत महाराष्ट्र में सोयाबीन खरीद को मंजूरी दी थी। लेकिन सोयाबीन की कटाई पूरी हुए 15 दिन से ज्यादा बीत चुके हैं और अब तक खरीद शुरू नहीं हो पाई है। जिस वजह से किसानों की नाराजगी बढ़ गई है।

महाराष्ट्र में सोयाबीन किसानों की नाराजगी बन सकती है चुनावी मुद्दा

महाराष्ट्र में सोयाबीन की सरकारी खरीद अभी तक शुरू नहीं हो पाई है, जिस वजह से सोयाबीन किसानों की नाराजगी बढ़ गई है। महाराष्ट्र की अनाज मंडियों में सोयाबीन के दाम लगातार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चल रहे हैं। सोयाबीन की गिरती कीमतों के कारण केंद्र सरकार ने सितंबर में प्राइस स्पोर्ट स्कीम के तहत महाराष्ट्र में सोयाबीन खरीद को मंजूरी दी थी। किसानों को उम्मीद थी कि राज्य में जल्दी ही सरकारी खरीद शुरू होगी, जिससे उन्हें कुछ हद तक राहत मिलेगी। लेकिन, सोयाबीन की कटाई पूरी हुए 15 दिन से ज्यादा बीत चुके हैं और अब तक खरीद शुरू नहीं हो पाई है। सोयाबीन की सरकारी खरीद शुरू नहीं होने से किसानों को एमएसपी से कम दाम पर मंडियों में अपनी फसल बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसे में सोयाबीन किसानों की नाराजगी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बन सकती है, जिसका खामियाजा सत्तरूढ़ महायुति गठबंधन को भुगतना पड़ सकता है। 

केंद्रीय कृष‍ि व क‍िसान कल्याण मंत्रालय के एगमार्कनेट पोर्टल के अनुसार, महाराष्ट्र की मंडियों में किसानों को सोयाबीन का औसत दाम 3800 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है जबिक केंद्र सरकार ने खरीफ मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4892 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सोयाबीन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और पश्चिमी विदर्भ क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सोयाबीन की खेती होती है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के वर्ष 2024-25 के लिए खरीफ फसलों के उत्पादन के प्रथम अग्रिम अनुमान के अनुसार, देश में सोयाबीन का उत्पादन 133.60 लाख टन अनुमानित है। वहीं, सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार, महाराष्ट्र में चालू खरीफ सीजन में सोयाबीन उत्पादन बढ़कर 50.16 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल यह 46.91 लाख टन था।

महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के किसान गजानन लांडे ने रूरल वॉयस को बताया कि उन्होंने इस साल दो एकड़ में सोयाबीन की फसल लगाई थी, जिससे उन्हें 10 क्विंटल उत्पादन मिला। उन्होंने अभी तक अपनी फसल नहीं बेची है क्योंकि मंडियों में सोयाबीन का दाम काफी कम है और वह सरकारी खरीद शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। गजानन लांडे ने कहा कि अगर अगले 10-15 दिनों में खरीद शुरू नहीं हुई, तो उन्हें मंडियों में निजी व्यापारियों को ही अपनी फसल बेचनी पड़ेगी, जहां कम दाम मिलने से उन्हें नुकसान होगा।

महाराष्ट्र के किसान नेता और एमएसपी पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सदस्य अनिल घनवट ने रूरल वॉयस को बताया कि महाराष्ट्र में सोयाबीन की सरकारी खरीद की घोषणा के बाद भी खरीद शुरू नहीं हो पाई है, जिससे किसानों में काफी नाराजगी है। उन्होंने कहा कि मंडियो में जो भाव किसानों को मिल रहा है वह बहुत कम है। जिस वजह से किसानों की लागत भी नहीं निकल रही है और उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सोयाबीन का मुद्दा अहम रहने वाला है क्योंकि फसल की कटाई पूरी हो चुकी है और अभी तक खरीद शुरू नहीं हो पाई है।

महाराष्ट्र के किसान संगठन स्वाभिमानी शेतकरी संघठना के प्रमुख और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने रूरल वॉयस को बताया कि महाराष्ट्र के सोयाबीन किसान भारी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं क्योंकि मंडियों में सोयाबीन की कीमतें काफी कम हैं और सोयाबीन की सरकार खरीद भी नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि जिस सोयाबीन की कीमतें एक समय में 9 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थी उसी सोयाबीन को आज किसान 4 हजार रुपये प्रति के भाव पर बेचने को मजबूर हैं।

राजू शेट्टी ने कहा कि सोयाबीन की कम कीमतों के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। सरकार ने बड़े पैमाने पर पाम ऑयल का इंपोर्ट किया और इस पर इंपोर्ट ड्यूटी भी घटाई, जिस वजह से देश में यह हालात बने हैं और सोयाबीन की कीमत में भारी गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि सरकार को अपनी नीतियों में सुधार करने की जरूरत है ताकि किसानों को और बेहतर दाम मिल सके। उन्होंने कहा कि मराठवाड़ा और पश्चिमी विदर्भ क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सोयाबीन की खेती होती है। सोयाबीन की सरकारी खरीद नहीं होने से किसानों में काफी नाराजगी है। किसान कटाई पूरी कर चुके हैं और खरीद शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। अगर जल्द खरीद शुरू नहीं हुई तो विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी दल को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

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