खाद्य महंगाई पर टमाटर, प्याज और आलू क्यों डालते हैं ज्यादा असर
आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, खाद्य पदार्थों की महंगाई के बास्केट में टमाटर, प्याज और आलू का अनुपात अधिक नहीं होता लेकिन महंगाई दर में जो तेजी से उतार-चढ़ाव आते हैं उसमें इन तीनों का योगदान बहुत अधिक होता है। यह उतार-चढ़ाव कई कारणों से हो सकता है। एक तो ये जल्दी नष्ट होते हैं। दूसरा, इन पर मौसम का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। तीसरा, भारतीय घरों में इनकी सबसे अधिक खपत होने के कारण इनकी डिमांड भी लगातार बनी रहती है।
बीते दो हफ्ते में सामान्य किस्म के टमाटर के दाम कम से कम चार गुना बढ़ चुके हैं। प्याज की कीमत एक सप्ताह में 50 प्रतिशत बढ़ चुकी है और आलू के दामों में भी तेजी का माहौल है। ये तीनों सब्जियां खाद्य महंगाई को काफी हद तक प्रभावित करती हैं। रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट में भी यह बात कही गई है।
‘एनाटमी ऑफ प्राइस वोलेटिलिटी ट्रांसमिशन इन इंडियन वेजिटेबल्स मार्केट’ नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया है, “खाद्य पदार्थों की महंगाई के बास्केट में टमाटर, प्याज और आलू का अनुपात अधिक नहीं होता लेकिन महंगाई दर में जो तेजी से उतार-चढ़ाव आते हैं उसमें इन तीनों का योगदान बहुत अधिक होता है। यह उतार-चढ़ाव कई कारणों से हो सकता है। एक तो ये जल्दी नष्ट होते हैं। दूसरा, इन पर मौसम का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। तीसरा, भारतीय घरों में इनकी सबसे अधिक खपत होने के कारण इनकी डिमांड भी लगातार बनी रहती है। इसके अलावा सप्लाई की दिक्कतें भी आती हैं।” यह रिपोर्ट पूजा पधी, हिमानी शेखर और आकांक्षा हांडा ने तैयार की है।
इन तीनों फसलों के लिए सरकार नवंबर 2018 में एक स्कीम लेकर आई थी। टमाटर, प्याज और आलू (टॉप) वैल्यू चेन स्कीम के दो मुख्य उद्देश्य थे। पहला, दीर्घकालिक हस्तक्षेप के जरिए इंटीग्रेटेड वैल्यू चेन का विकास और दूसरा, अल्पावधि में हस्तक्षेप। लेकिन जिस तरह से इन तीनों सब्जियों के दामों में उतार-चढ़ाव का माहौल बना रहता है, उससे पता चलता है कि इस स्कीम का बहुत लाभ नहीं मिल रहा। कोविड के दौरान अल्पावधि में हस्तक्षेप का दायरा सभी फल-सब्जियों के लिए बढ़ा दिया गया था। वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में दीर्घकालिक हस्तक्षेप का दायरा भी ‘टॉप’ से बढ़ाकर जल्दी नष्ट होने वाली 22 फसलों को शामिल किया गया था।
आरबीआई की स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है, खाद्य पदार्थों की महंगाई में इनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव का बड़ा महत्व होता है। बाजार के फंडामेंटल या फसल के समय के अनुसार दाम में उतार-चढ़ाव आते हैं तो वह बड़ी चिंता का विषय नहीं होता, लेकिन बिना किसी स्पष्ट कारण के जब दाम काफी बढ़ या घट जाते हैं तो किसान, ट्रेडर, उपभोक्ता और सरकार सबके लिए अनिश्चितता की स्थिति बन जाती है। इसका सबसे अधिक असर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पर होता है क्योंकि यह वर्ग अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा खाने-पीने पर ही खर्च करता है।
एक के दाम बढ़ने का असर बाकी पर भी
अध्ययन में तीन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश की गई। पहला, प्रमुख केंद्रों में इन तीनों सब्जियों की कीमतों में उतार-चढ़ाव किस तरह होता है। दूसरा, क्या इनकी कीमतों में हॉरिजॉन्टल ट्रांसमिशन होता है अर्थात एक का दाम बढ़ने का असर बाकी दोनों पर पड़ता है। तीसरा, वर्टिकल ट्रांसमिशन अर्थात थोक से रिटेल तक सप्लाई चेन में कीमतों का देश के स्तर पर क्या असर होता है। इस स्टडी में उपभोक्ता मामले विभाग के 3 जनवरी 2011 से 31 मार्च 2021 तक के आंकड़े लिए गए हैं।
स्टडी में पता चला कि इन तीनों सब्जियों में रिटेल और थोक दोनों स्तर पर हॉरिजॉन्टल ट्रांसमिशन होता है, अर्थात किसी एक का दाम बढ़ा तो बाकी दोनों के दाम भी बढ़ने लगते हैं। दाम बढ़ने के कारण तीनों में एक समान होते हैं। जैसे सप्लाई चेन की दिक्कत, एक्सट्रीम वेदर, तूफान, बारिश की कमी, बेमौसम की बारिश, सूखा, हीटवेव इत्यादि। जमाखोरी, कीटों का हमला, हार्वेस्टिंग के बाद होने वाला नुकसान, किसानों का धरना प्रदर्शन और इनपुट महंगा होना भी दाम बढ़ने के कारणों में शामिल हैं।
इन तीनों सब्जियों में वर्टिकल ट्रांसमिशन यानी थोक से रिटेल तक दाम में वृद्धि का भी ट्रेंड रहता है। लेकिन यहां रोचक बात यह है कि आलू में यह ट्रांसमिशन दोतरफा होता है। यानी थोक में दाम बढ़ने पर रिटेल में भी बढ़ने लगते हैं, रिटेल में कीमत बढ़ी तो थोक में भी बढ़ने लगती है। लेकिन टमाटर और प्याज के मामले में ऐसा नहीं होता। इनके थोक दाम बढ़ने पर खुदरा कीमतों पर असर होता है, लेकिन खुदरा बाजार में दाम बढ़ने का थोक कीमतों पर असर नहीं होता है। आलू के मामले में स्थिति अलग होने का एक कारण यह है कि टमाटर या प्याज की तुलना में इसकी स्टोरेज ज्यादा समय तक की जा सकती है। इसलिए जब खुदरा बाजार में आलू महंगा होता है तो स्टोरेज में रखे आलू के भी दाम बढ़ने लगते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार रिटेल और थोक, दोनों में टमाटर के दाम में उतार-चढ़ाव का असर प्याज और आलू के दामों पर पड़ता है। प्याज पर असर ज्यादा होता है क्योंकि आलू की तुलना में यह जल्दी खराब होने वाली सब्जी है। आलू और प्याज के दामों का भी एक-दूसरे पर असर होता है। कीमतों में उतार-चढ़ाव का असर एक बाजार से दूसरे बाजार पर हो सकता है, एक कमोडिटी से दूसरी कमोडिटी पर और यहां तक की पूरी सप्लाई चेन पर हो सकता है।
सबसे अधिक असर प्याज के दाम पर
प्याज का कोई विकल्प ना होने के कारण सबसे अधिक उतार-चढ़ाव इसी के दाम में आते हैं। सब्जियों के खुदरा मूल्य सूचकांक में जो उतार-चढ़ाव आता है उसकी तुलना में सिर्फ टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों में उतार-चढ़ाव 4 गुना होता है। उदाहरण के लिए जनवरी 2015 से मार्च 2021 के दौरान इन तीनों की महंगाई दर 132 प्रतिशत थी। इसमें प्याज की 327 प्रतिशत, आलू की 107 प्रतिशत और टमाटर की 118 प्रतिशत थी। सभी सब्जियों की महंगाई 60.5 प्रतिशत रही इसमें से और टमाटर, आलू और प्याज को हटा दें तो महंगाई सिर्फ 22.4% थी। इसी तरह खाद्य और पेय पदार्थों की महंगाई इस दौरान 12.2 प्रतिशत रही। इसमें से टमाटर, आलू और प्याज को शामिल ना करने पर महंगाई 7.9 दर्ज हुई।
इन तीनों सब्जियों के फसल चक्र का भी दाम पर असर होता है। उदाहरण के लिए टमाटर के दाम जून-जुलाई में सबसे अधिक होते हैं जबकि इसका उत्पादन लगभग पूरे साल होता है। प्याज की फसल के तीन मौसम होते हैं- रबी, खरीफ और लेट खरीफ। आलू मुख्य रूप से रबी की फसल है। देर से या अत्यधिक बारिश, बाढ़, तूफान, बीमारी, कीटों के हमले आदि के कारण उत्पादन प्रभावित होता है तो भी इनके दाम बढ़ जाते हैं।
मार्च 2020 में उत्तर प्रदेश में बेमौसम की बारिश और मई 2020 में पश्चिम बंगाल में चक्रवाती तूफान के कारण 2020-21 के दौरान आलू की फसल को काफी नुकसान हुआ था। इसका सीधा असर इसकी कीमतों पर पड़ा। नवंबर 2019 में आलू की खुदरा महंगाई 2.3% थी जो नवंबर 2020 में 107% पर जा पहुंची। इसी तरह सितंबर-अक्टूबर 2019 में बेमौसम की बारिश के चलते दिसंबर 2019 में प्याज की खुदरा महंगाई 327.4% पर पहुंच गई। उस बारिश में प्याज की खरीफ और लेट खरीफ फसल को नुकसान हुआ था।
उतार चढ़ाव के मुख्य कारण
खाद्य पदार्थों की कीमतों में वोलैटिलिटी मुख्य रूप से तीन कारणों से आती है। पहला है मौसम की कठिन परिस्थितियां, दूसरा है डिमांड और सप्लाई में अंतर जिससे थोड़े समय के लिए दाम बढ़ जाते हैं और तीसरा, दाम बढ़ने के बाद सप्लाई काफी देर से पहुंचती है। सप्लाई पर कई बातों का प्रभाव होता है जैसे खराब मौसम और स्टाफ की कमी। आबादी और लोगों की आमदनी में में वृद्धि, खाने-पीने की आदतों में बदलाव का भी खाद्य पदार्थों की कीमतों पर प्रभाव पड़ता है।
खुदरा मूल्य सूचकांक के बास्केट में खाद्य पदार्थ और ईंधन सबसे अधिक वोलैटाइल कंपोनेंट होते हैं। खाने-पीने की चीजों का प्राइस इंडेक्स में लगभग 46% हिस्सा होता है। इसका सीधा मतलब है कि खाद्य महंगाई में जो भी होगा उसका खुदरा महंगाई दर पर प्रभाव दिखेगा। 2019-20 और 2020-21 में खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थों की खुदरा महंगाई तेजी से बढ़ गई थी। इसका प्रमुख कारण खराब मौसम के कारण सप्लाई के दिक्कतें और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कुछ कमोडिटी के दामों में वृद्धि था। इससे सब्जियों, दालों और खाद्य तेलों के दाम तेजी से बढ़ गए थे।
रिपोर्ट में कहा गया है, खाद्य महंगाई में सब्जियों की महंगाई का बड़ा असर होता है क्योंकि इनका वेटेज अधिक है। सब्जियों में भी टमाटर, प्याज और आलू सबसे ज्यादा वोलैटाइल होते हैं, अर्थात इनकी कीमतों में सबसे अधिक उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इसका प्रमुख कारण सप्लाई की दिक्कत है। यह दिक्कत मौसम के कारण आती है।
खुदरा महंगाई दर पर ‘टॉप’ का असर
खुदरा महंगाई दर पर खाद्य वस्तुओं की तुलना में सब्जियों की कीमतों का प्रभाव अधिक पड़ता है क्योंकि इनका फसल चक्र छोटा होता है, ये जल्दी नष्ट हो जाते हैं, इनके भंडारण की पर्याप्त क्षमता नहीं है और फसल तैयार होने के बाद उसका नुकसान भी काफी होता है। सब्जियां हर जगह उगाई भी नहीं जाती हैं इससे समस्या बढ़ जाती है। खराब मौसम का असर होता तो है लेकिन वह लंबे समय तक नहीं रहता।
खुदरा मूल्य सूचकांक के बास्केट में टमाटर, प्याज और आलू का हिस्सा अधिक नहीं है लेकिन इनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव का खुदरा महंगाई पर काफी असर होता है। खुदरा खाद्य महंगाई में सब्जियों के दामों का काफी असर होता है और सब्जियां जल्दी नष्ट हो जाती हैं। टमाटर, प्याज और आलू भारत में रोज खाने वाली सब्जियों में शामिल हैं। इनका उत्पादन खपत की तुलना में अधिक होता है लेकिन जब भी मांग और सप्लाई में असंतुलन बनता है, इनकी कीमतें बढ़ने लगती हैं। इसका असर खुदरा महंगाई पर दिखता है।
2018-19 के बाद बदला ट्रेंड
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में खाद्य महंगाई दर आमतौर पर 2018-19 तक कम रही। इसका प्रमुख कारण अनाज और फल सब्जियों का उत्पादन बढ़ना था। लेकिन उसके बाद के वर्षों में खाद्य महंगाई में वृद्धि हुई है। इसका प्रमुख कारण सब्जियों के दाम में तेजी है। जब-तब होने वाली भीषण बारिश से टमाटर, प्याज और आलू के दाम बढ़े हैं।
खुदरा महंगाई के खाद्य पदार्थों के बास्केट में सब्जियों का वेटेज 13.2% है। खाद्य महंगाई को बढ़ाने या घटाने में उनका बड़ा योगदान रहता है। सब्जियों के खुदरा महंगाई बास्केट में टमाटर, प्याज और आलू का हिस्सा 36.5% है और देश में पूरे साल इनकी खपत होती है। इन तीनों पर सप्लाई की दिक्कतों का भी बड़ा प्रभाव पड़ता है। सब्जियों की महंगाई मुख्य रूप से इन्हीं तीनों पर निर्भर करती है। सप्लाई की दिक्कत प्राकृतिक हो सकती है। जैसे, अधिक बारिश, तूफान, सूखा। यह दिक्कत मानव निर्मित भी हो सकती है। जैसे, धरना-प्रदर्शन, जमाखोरी, सट्टेबाजी।
पुराने अध्ययन और राहत के उपाय
टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों में वोलैटिलिटी पर पहले भी अध्ययन हुए हैं (गुलाटी एवं अन्य, 2022a; बिरथल एवं अन्य, 2019; आरिफ एवं अन्य, 2020 तथा रक्षित एवं अन्य, 2021) इनमें यह बात सामने आई कि सब्जियों के दाम में उतार-चढ़ाव अक्षम वैल्यू चेन और पारंपरिक मार्केटिंग चैनल पर अधिक निर्भरता के कारण आती है। गुलाटी ने अपने अध्ययन में बताया कि टमाटर के दाम में वृद्धि सप्लाई की दिक्कतों के कारण अधिक होती है। बिरथल के अध्ययन में पाया गया कि बाजार में पहुंच की अनिश्चितता, पूरे साल डिमांड बने रहना और जमाखोरी जैसे कारणों से प्याज की कीमतों में उतार-चढ़ाव आते हैं।
जल्दी नष्ट होने, इनका कोई और विकल्प न होने तथा सप्लाई चेन की दिक्कतों के कारण ऐतिहासिक रूप से इन सब्जियों के दाम में काफी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इसका असर खुदरा महंगाई दर पर पड़ता है। सप्लाई चेन मजबूत करके, ट्रेडर्स, थोक और खुदरा विक्रेताओं के लिए स्टॉकहोल्डिंग सीमा लगाकर, कोल्ड स्टोरेज का निर्माण करके, फसल के बाद का नुकसान कम करके तथा सभी भागीदारों को वैल्यू चेन में जोड़कर कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव को कम किया जा सकता है। इससे इनकी उपलब्धता बढ़ेगी और कीमतों में भी स्थिरता आएगी।