बेहतर दाम की उम्मीद में रबी सीजन में तिलहन फसलों का रकबा बढ़ा
तिलहन के मामले में इस सीजन में पिछले सीजन की तुलना में 22 फीसदी से ज्यादा क्षेत्रफल में बुवाई की गई है।अब तक 88.50 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी है,जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 72.13 लाख हेक्टेयर थी। खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों से किसानों को आशा है कि अगले साल भी तिलहनी फसलों के उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा
चालू रबी सीजन में 10 दिसंबर, 2021 तक कुल फसल बुवाई का क्षेत्रफल 1.91 फीसदी बढ़कर 513.25 लाख हेक्टेयर हो गया है। एक साल पहले इसी अवधि में यह बोया गया क्षेत्र 503 लाख हेक्टेयर था। इस वृद्धि में तिलहन फसलों के बुवाई क्षेत्र में अधिक बढ़ोतरी के कारण हुई है। इस सीजन में पिछले सीजन की तुलना में तिलहन फसलों की बुवाई 22 फीसदी ज्यादा क्षेत्रफल में की गई है।अब तक 88.50 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 72.13 लाख हेक्टेयर थी। रबी की मुख्य फसल गेहूं के क्षेत्रफल 2 .37 फीसदी की गिरावट आई है। गेहूं के मामले में 10 दिसंबर तक 248.67 लाख हेक्टेयर में बुवाई की गई है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 254.70 लाख हेक्टेयर रही थी।
तिलहनी फसलों के बढ़े क्षेत्रफल पीछे मुख्य कारण छह महीनों में देश में खाद्य तेलों की कीमतों में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि है। सरकार द्वारा उठाए गए सभी कदम इस मूल्य वृद्धि को रोकने में कारगर साबित नहीं हो पा रही थी । इसके चलते सरकार को खाद्य तेलों पर स्टॉक घोषणा और स्टॉक सीमा लागू करने जैसे कदमों का पालन करते हुए खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क कम कर दिया था। खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों से किसानों को आशा है कि अगले साल भी तिलहनी फसलों की उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा ।
आईएआरआई पूसा के सस्य विज्ञान के प्रिसंपल साइंटिस्ट डॉ. राजीव कुमार सिहं ने रूरल वाॉयस को बताया कि बीते कुछ महीनों से खाद्य तेल की कीमतों में काफी उछाल आया था। इससे किसान को आगे सीजन में भी तिलहनी उपज से लाभ मिलने की आशा में सरसों की खेती ज्यादा जोर दे रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने बाताया कि सरकार खाद्य तेलों के उत्पादन बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है। सरकार की तरफ से तिलहनी फसलों खेती की करने जोर दिया जा रहा है जिससे बाहर के देशों आयात किए जाने खाद्य तेलों पर निर्भरता को कम किया जा सके। डॉ. राजीव का कहना है कि पिछले साल सरसों की खेती करने वाले किसानों को काफी फायदा हुआ है। सरसों की कीमत साल भर के 4650 रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी अधिक रही। सरसों का बाजार मूल्य 9000 हजार प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था जिससे किसानों को काफी फायदा हुआ है। इस वजह सेअगले साल भी तिलहनी फसलों के उपज का बेहतर मूल्य मिलने की आशा में किसान सरसों की खेती तरफ ज्यादा रूचि देखी जा रही है।
डॉ. राजीव का कहना है कि खरीफ सीजन में ज्यादा बारिश के चलते खरीफ की फसले खराब हो गई । उंची स्थान वाली जमीनों पर जहां पानी जल्दी निकल गया वहां पर खरीफ फसलों को खेतों से निकाल कर अधिक लाभ मिलने की आशा में किसानों ने सरसों की फसल लगाई है। जबकि गेहूं की बुवाई अक्टूबर में ज्यादा बारिश के चलते देरी हुई क्योंकि नीचे वाले खेतों में जहां गेहूं की खेती अधिक होती है। इन खेतों में अधिक नमी के कारण धान की फसल में कटाई में देऱी हुई और समय से गेहूं के लिए खेत तैयार नही हो पाये। इससे गेहूं की बुवाई में देरी हो रही जिससे काऱण यह गिरावट देखी जा रही है।