मिलेट उत्पादन और खपत बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय मिशन की जरूरतः फिक्की-पीडब्लूसी रिपोर्ट
रिपोर्ट में मिलेट की खेती के फायदे भी बताए गए हैं। इसमें कहा गया है कि इनकी खेती मुख्य रूप से शुष्क और अर्ध शुष्क इलाकों में होती है। अर्थात ये अधिक तापमान और सूखे जैसी परिस्थितियों को भी झेलने में सक्षम होते हैं। मिलेट के लिए सिर्फ 350 मिलीमीटर पानी की जरूरत पड़ती है जबकि धान की फसल को इसका 3.5 गुना, यानी 1250 मिलीमीटर पानी की आवश्यकता होती है।
भारत में मिलेट यानी मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मिशन शुरू करने की जरूरत है। इसके अलावा मिलेट की खेती का रकबा बढ़ाकर, फसलों की वैरायटी में सुधार, उत्पादन से लेकर खपत तक पूरी वैल्यू चेन में इनोवेशन को अपनाकर तथा विभिन्न स्तर पर इन्सेंटिव देकर इनके उत्पादन और खपत में वृद्धि की जा सकती है। उद्योग संगठन फिक्की और कंसल्टेंसी फर्म पीडब्लूसी की तरफ से जारी रिपोर्ट में ये सुझाव दिए गए हैं। इसमें मिलेट उत्पादन बढ़ाने के लिए व्यापक नीतिगत समर्थन की बात भी कही गई है।
रिपोर्ट में मिलेट की खेती के फायदे भी बताए गए हैं। इसमें कहा गया है कि इनकी खेती मुख्य रूप से शुष्क और अर्ध शुष्क इलाकों में होती है। अर्थात ये अधिक तापमान और सूखे जैसी परिस्थितियों को भी झेलने में सक्षम होते हैं। मिलेट के लिए सिर्फ 350 मिलीमीटर पानी की जरूरत पड़ती है जबकि धान की फसल को इसका 3.5 गुना, यानी 1250 मिलीमीटर पानी की आवश्यकता होती है।
इस तरह, चावल की तुलना में मिलेट उत्पादन में 70% कम पानी की जरूरत पड़ती है। गेहूं की तुलना में मिलेट फसलें कम समय में तैयार हो जाती हैं। एक और खासियत यह है कि इनके लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की जरूरत भी कम पड़ती है। इससे किसानों की लागत कम करने के साथ पारिस्थितिकी संतुलन में भी मदद मिलती है। मिलेट की खेती से किसान फसल चक्र को डायवर्सिफाई कर सकते हैं। फसल चक्र में बदलाव एक प्राकृतिक सुरक्षा मेकैनिज्म का काम करता है। इससे मिट्टी का क्षरण रुकता है और कीटों का प्रभाव भी कम होता है। एक फसल बार-बार उगाने से कीटों के हमले ज्यादा होते हैं।
मिलेट का एक और फायदा कार्बन कंटेंट के मामले में है। फसल की कटाई के बाद उनके पौधों को अगर मिट्टी में मिला दिया जाए तो उस मिट्टी में कार्बन का स्तर काफी बढ़ जाता है। यह सस्टेनेबल खेती के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे मिट्टी की सेहत और उर्वरता दोनों बेहतर होती है। इस तरह यह दीर्घकाल में सतत खेती को बढ़ावा देते हैं।
हर थाली तक मिलेट पहुंचाने के चार उपाय
रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्तर पर पांच साल का नेशनल मिलेट मिशन अपनाने की जरूरत बताई गई है। कहा गया है कि मिलेट को निर्धारित समय में मुख्य धारा में लाने के लिए यह आवश्यक है। मिलेट को हर थाली तक पहुंचाने के लिए रिपोर्ट में चार उपाय बताए गए हैं। ये हैं- PAID (पेड)- पी यानी प्रोडक्शन एनहांसमेंट (उत्पादन में वृद्धि), ए यानी अवेयरनेस क्रिएशन (जागरूकता बढ़ाना), आई यानी इनोवेशन और डी यानी डिमांड जेनरेशन (मांग बढ़ाना)।
उत्पादन बढ़ाने के उपायों में फसलों की वैरायटी में सुधार, उत्पादन और प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी में इनोवेशन तथा मिलेट उत्पादन के लिए व्यापक नीतिगत समर्थन शामिल हैं। जागरूकता बढ़ाने के लिए मिलेट को मुख्य धारा में लाने के महत्व के बारे में लोगों को बताने और किसानों, उपभोक्ताओं तथा निवेशकों के हितों को प्राथमिकता देने के सुझाव दिए गए हैं। इनोवेशन के तहत मिलेट की खेती का क्षेत्रफल बढ़ाने और खास तरह के प्रोडक्ट डेवलपमेंट के प्रयास करने की बात कही गई है ताकि उनकी खपत बढ़ सके। यह इनोवेशन प्रोडक्ट, प्रक्रिया और पॉलिसी तीनों स्तर पर जरूरी है। उत्पादकता, क्वालिटी और मार्केटिंग बढ़ाने के लिए नए तरह के प्रयास करने पड़ेंगे। इसके लिए समग्र नजरिया अपनाने की जरूरत है। इनोवेशन वैल्यू एडेड प्रोडक्ट में भी किया जा सकता है। इसमें उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ाना, बाय प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग और नए तरह के व्यंजन शामिल हैं। खेती के तौर-तरीकों और प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों में भी इनोवेशन का सुझाव है। मांग बढ़ाने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) का मॉडल अपनाने और वैश्विक स्तर पर पहल करने का सुझाव है।
हर साल रकबा बढ़ाने का लक्ष्य तय हो
एक सुझाव मिलेट की खेती का रकबा बढ़ाने का है। रिपोर्ट में कहा गया है राज्यों के लिए साल दर साल रकबा बढ़ाना निर्धारित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, जिन राज्यों में पहले ही मिलेट की अधिक खेती होती है वहां हर साल रकबा 5% बढ़ाने की नीति बन सकती है। मध्यम खेती वाले राज्यों में हर साल रकबा 10% बढ़ाने का लक्ष्य रखा जा सकता है। एक और सुझाव सीड रिप्लेसमेंट रेशियो बढ़ाने का है। इससे बेहतर उत्पादकता और रोग प्रतिरोधी क्षमता हासिल करने में मदद मिलेगी। किसानों को इंसेंटिव देने और मिलेट किसानों का एफपीओ बनाने का भी सुझाव दिया गया है।
मिलेट आधारित प्रोडक्ट पर जीएसटी कम हो
मिलेट आधारित प्रोडक्ट का उत्पादन बढ़ाने और उन पर जीएसटी की दर कम रखने का भी सुझाव है ताकि उनकी कीमत कम हो और ज्यादा से ज्यादा लोग उन्हें खरीद सकें। मिलेट प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग और निर्यात को इंसेंटिव देने और क्वालिटी जांचने वाली लैब स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया है। ये लैब मिलेट के दानों की क्वालिटी और पोषकता के बारे में बताएंगी। इससे क्वालिटी मानकों का पालन हो सकेगा।
सेहत के लिए फायदेमंद मिलेट
मिलेट को ‘चमत्कारी फसल’ भी कहा जाता है। इनमें न सिर्फ पोषक तत्व और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। मिलेट हमें आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के साथ डायबिटीज नियंत्रित करने, खाद्य सुरक्षा बढ़ाने और जैव विविधता संरक्षित करने में भी मदद करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि आज जब बदलती जीवन शैली के कारण बच्चों, किशोरों तथा वयस्कों में मेटाबॉलिक सिंड्रोम, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और मोटापे की समस्या पूरे विश्व में चिंता का विषय बन गई है। मिलेट खून में ग्लूकोज और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा घटाकर और इंसुलिन की सेंसिटिविटी सुधार कर हमें कई फायदे दे सकते हैं।
मिलेट प्रोटीन, फाइबर, विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जिंक, पोटेशियम, कॉपर, सेलेनियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। ये खून में ग्लूकोज और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में भी मददगार हैं। ये हमारे शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लोगों को पर्याप्त भोजन न मिलने का स्तर चिंताजनक हो गया है। वर्ष 2021 में लगभग 82.8 करोड़ लोग इससे प्रभावित थे। मार्च 2023 में जारी एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं में कुपोषण बढ़ता जा रहा है। खाद्य और पोषण संकट से सबसे अधिक जूझने वाले दुनिया के 12 देशों में प्रभावित लोगों की संख्या 55 लाख से बढ़कर 2020 में 69 लाख हो गई। यही नहीं, दुनिया में 2 साल से कम उम्र के 5.1 करोड़ बच्चे स्टंटिंग से ग्रस्त हैं। अर्थात कुपोषण की वजह से उनका विकास नहीं हो पा रहा है। विश्व खाद्य संगठन के मुताबिक भारत में 2019 से 2021 के बीच अल्पपोषित लोगों की संख्या 22.43 करोड़ थी। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 में भारत 121 देशों में 107वें स्थान पर था।
दुनिया में 42.02 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं। 30 से 79 वर्ष आयु वर्ग में हाइपरटेंशन से पीड़ित लोगों की संख्या 128 करोड़ पहुंच गई है। इनमें से ज्यादातर कम और मध्य आय वाले देशों में रहते हैं। यही नहीं, दुनिया में करीब 230 करोड़ लोग मोटापे की बीमारी से पीड़ित हैं। इनमें बच्चे और बड़े दोनों शामिल हैं। भारत में मोटापे से पीड़ित लोगों की संख्या 25.4 करोड़ और हाइपरटेंशन वाले 31.5 करोड़ हैं। इस परिदृश्य में मिलेट जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों का सस्ता समाधान हो सकते हैं।