एग्रीकल्चरल एजुकेशन सिस्टम के ट्रांसफोर्मेशन के लिए आईएएजी ने प्रधानमंत्री को भेजी सिफारिशें
इंडिय़ा एग्रीकल्चर एडवांसमेंट ग्रुप इंटरनेशनल (आईएएजी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर देश की कृषि शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव लाने के लिए सुझाव दिये हैं। हाल में गठित आईएएजी में देश और विश्व भर में प्रसिद्ध 60 से अधिक कृषि वैज्ञानिक, प्रोफेशनल, शिक्षा जगत और नीति विशेषज्ञ शामिल हैं। आईएएजी ने प्रधानमंत्री को एनईपी के तहत " रीइंजीनियरिंग इंडियाज एग्रीकल्चर एजुकेशन " शीर्षक के तहत कृषि शिक्षा में बदलाव की सिफारिशें करने के साथ ही इसके लिए जरूरी सहयोग देने की बात कही है
इंडिय़ा एग्रीकल्चर एडवांसमेंट ग्रुप इंटरनेशनल (आईएएजी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर देश की कृषि शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव लाने के लिए सुझाव दिये हैं। हाल में गठित आईएएजी में देश और विश्व भर में प्रसिद्ध 60 से अधिक कृषि वैज्ञानिक, प्रोफेशनल, शिक्षा जगत और नीति संबंधित विशेषज्ञ शामिल हैं। आईएएजी ने प्रधानमंत्री कि लिखे पत्र में कहा है कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी) 2020 से काफी उम्मीदें जगी हैं जो भारत सरकार द्वारा शिक्षा को एक नया आकार देने के लिए उसकी गंभीरता को दर्शाता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति समग्र, समावेशी, लचीली और बहु-विषयक है। आने वाली अगली पीढ़ी को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा और 21वीं सदी की चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए सक्षम बनाएगी। आईएएजी ने प्रधानमंत्री को एनईपी के तहत " रीइंजीनियरिंग इंडियाज एग्रीकल्चर एजुकेशन " शीर्षक के तहत कृषि शिक्षा में बदलाव की सिफारिशें करने के साथ ही इसके लिए जरूरी सहयोग देने की बात कही है। आईएएजी के कंवीनर रमेश देशपांडे द्वारा 27 अगस्त,2021 को प्रधानमंत्री को लिखे इस पत्र में नवगठित आईएएजी का परिचय भी दिया है।
आईएएजी ने 15 जुलाई को आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में भारत की कृषि शिक्षा प्रणाली में सुधार के विषय पर चर्चा के आधार पर यह सिफारिशें तैयार की हैं।
भारत की कृषि शिक्षा प्रणाली की खामियां
भारत की कृषि शिक्षा प्रणाली में इस समय 73 कृषि विश्वविद्यालय, 62 राज्य कृषि विश्वविद्यालय ( एसएयू ), पांच डीम्ड विश्वविद्यालय और दो केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय हैं। इसके साथ ही केंद्रीय कृषि संकाय वाले चार विश्वविद्यालय हैं। इसमें साफ दिखता कि सिस्टम में राज्य कृषि विश्वविद्यालयों का वर्चस्व है। लेकिन अफसोस इस पात है कि राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की स्थिति औसत दर्जे की हो गई गए है। 1990 के दशक की शुरुआत से जब हरित क्रांति का प्रभाव कम होने लगा और कृषि विकास धीमा हो गया तो उसके साथ ही एसएयू प्रणाली को भी कई तरह चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इनमें गवर्नेंस की खामियां जिसमें राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं हस्तक्षेप बढ़ा और कुलपतियों की स्वायत्तता लगभग समाप्त हो गई या केवल नाममात्र की रह गई। शिक्षा में प्रतिभा को महत्व में कमी आना, राष्ट्रीय-राज्य स्तर पर समन्वय का अभाव, रिसर्च, एजुकेशन और एक्सटेंशन के बीच तारतम्य की कमी, अपर्याप्त निवेश और संसाधन आवंटन में असंतुलन, साथ ही सुधारों की कमी जो भी सुधार अपनाए वह या तो धीमे थे और उसके बाद या तो उनका कार्यान्वयन धीमा रहा या फिर बिल्कुल ही नहीं हुआ। पुराने पाठ्यक्रम और बुनियादी ढांचे की कमी के साथ ही लगभग सभी एसएयू में वार्षिक पुरस्कारों और समयबद्ध पदोन्नति में फेकल्टी की प्रदर्शन के प्रति लगभग न के बराबर या शून्य जवाबदेही ने नतीजों को औसत बना दिया।
पत्र में मीटिंग को उद्धृत करते हुए कहा गया कि एक बार जब आप उच्च शिक्षा में उत्कृष्टता के बजाय सामान्यता लाते हैं, तो प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक नवोन्मेश की कमी का पूरे देश को नुकसान होता है।
एनईपी क्या कहती है
आप सोच रहे होगे की नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी) क्या कहती है। वैसे देखा जाए तो एनईपी कृषि शिक्षा के बारे में बहुत कम बात करती है लेकिन शिक्षा की अन्य शाखाओं के लिए प्रणालियों के संयोजन के साथ भारत की कृषि शिक्षा प्रणाली में सुधार और पुनर्संरचना का यह रास्ता दिखाती है। विशेष रूप से एनईपी उच्च गुणवत्ता वाली उच्च शिक्षा और उसमें समानता व समावेश की राह दिखाती है।
एनईपी की अन्य बातों के अलावा इसका विजन उच्च शिक्षा प्रणाली की बड़ा औऱ बढ़ाने की परिकल्पना करना जिसमें कम से कम एक या हर जिले के पास स्थानीय भाषा और भारतीय भाषा वाला विश्वविद्यालय हो। यह फेकल्टी और संस्थागत स्वायत्तता पर भी जोर देती है। यह छात्रों के बेहतर मूल्यांकन और शैक्षिक अनुभव के लिए पाठ्यक्रम को संशोधित करने की सिफारिश करती है। यह योग्यता और शिक्षण, अनुसंधान और सेवा के आधार पर संस्थाओं की लीडरशिप औऱ कैरियर में प्रमोशन की अनुंशसा करती है । एनईपी द्वारा सुझाए गए उपायों में राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना करना शामिल है। जिससे विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सीड रिसर्च और पीयर रिव्यू के लिए बजट दिया जा सके। आइएएजी का मानना है कि उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) को अकादमिक और प्रशासनिक स्वायत्तता वाले उच्च योग्य स्वतंत्र बोर्डों द्वारा शासित और संचालित किया जाना चाहिए। प्रशासनिक बोझ हल्का होना चाहिए लेकिन नियमन बेहतर होना चाहिए जिसमें सिंगल नियामक की व्यवस्था ज्यादा कारगर हो सकती है।
आईएएजी की सिफारिशें
आईएएजी इस बात को लेकर संतुष्ट है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने पहले ही एनईपी, 2020 की कई सिफारिशों पर अमल करना शुरू कर दिया है। एनईपी के प्रावधानों के अनुसार शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा प्रणाली को पुनर्गठित करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। लेकिन आईएएजी का मानना है कि इस महत्वपूर्ण समय में प्रधानमंत्री को भेजी गई आहम सिफारिशों पर तेजी से अमल जरूरी है।
पहली सिफारिश के तहत आईएएजी ने कहा कि एनईपी के तहत शिक्षा के लीड इंस्टीट्यूशन के रूप में आईसीएआर की भूमिका और जिम्मेदारी को साफ तरीके से परिभाषित किया जाना चाहिए। आईसीएआर और डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एजुकेशन एंड रिसर्च (डेअर) सिस्टम मेें एक स्वायत्त नेशनल एग्रीकल्चर एजुकेशन काउंसिल बनायी जानी चाहिए जो मानिटर, कोआर्डिनेशन और कार्यप्रणाली को देखने वाली राष्ट्रीय स्तर की सर्वोच्च संस्था हो। दूसरे मीडिल स्कूलों में कृषि शिक्षा शुरू करने के लिए तुरंत मैकेनिज्म तैयार किया जाना चाहिए। तीसरे एसएयू को उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए पाठ्यक्रम को अधिक प्रासंगिक और लचीला बनाना, संसाधन जुटाने के लिए बाहरी अनुदानों के लिए प्रतिस्पर्धा करना ताकि सरकारी क्षेत्र पर संसाधानों की निर्भरता कम की जा सके साथ ही यह शिक्षकों/रिसर्चर के सालाना प्रदर्शन के आकलन का पैमाना होना चाहिए।
चौथी सिफारिश के रूप में आईएएजी ने कहा है कि आईसीएआर के तहत 1,000 करोड़ रुपये के प्रारंभिक आवंटन के साथ "नेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च और इनोवेशन फंड को बनाने की तत्काल जरूरत है। वहीं पांचवी सिफारिश में कहा है कि नेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च और एक्स्टेंशसन सिस्टम (एनएआरईएस) को विज्ञान सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) के साथ जोड़ देना चाहिए इससे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) को प्रभावी बनाया जा सकेगा। इसे 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने के विभिन्न कृषि-पारिस्थितिकी प्रणालियों में आईसीएआर संस्थानों और एसएयू को एक दूसरे पूरक की तरह काम करने के लिए तैयार करना चाहिए। जिससे लोकल टू वोकल और किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य पूरा किया जा सके। कृषि में युवाओं को प्रेरित और आकर्षित करने के लिए "युवाओं के लिए राष्ट्रीय मिशन" बनाना चाहिए। जिससे वह सफल उद्यमी , टेक्ऩालॉजी एजेंट और प्रसार सेवा कार्यकर्ता बन सके । लैंड ग्रांट यूनिवर्सिटी सिस्टम को विश्व स्तरीय बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान विश्वविद्यालयों (एमईआरयू) में बदलना होगा, जिससे लचीले एंट्री एक्जिट के चलते कृषि में आवश्यक व्यावसायिकता और कौशल विकास के लिए अनौपचारिक व्यावसायिक शिक्षा को भी अपनाना होगा। छठी सिफारिश में कहा गा है कि वर्तमान में विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित नेशनल एग्रीकल्चर हायर एजुकेशन प्रोजक्ट (एनएएचईपी) पर भारत सरकार द्वारा प्राथमिकता के आधार पर बातचीत की जानी चाहिए ताकि वह अपने अगले चरण में प्रवेश कर सके। सातवीं सिफारिश में कहा गा है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों के बजट आवंटन को अगर दोगुना नहीं किया जा सकता तो इसे प्रभावी रूप में बढ़ाने की जरूरत है।
पत्र में कहा गया है कि इन सिफारिशों को लागू करने के लिए आईसीएआर द्वारा एक ठोस कार्य योजना तैयार करने की आवश्यकता है। अगर इस काम में सरकार को सहयोग की जरूरत होगी आईएएजी इस सहयोग के लिए तैयार है।