यूरिया की कीमत 1200 डॉलर और फॉस्फोरिक एसिड 2000 डॉलर के पार, बढ़ सकते हैं खाद के दाम
उर्वरक उद्योग के सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों डीएपी की कीमत बढ़ाकर 1,350 रुपये प्रति बैग करने के बाद भी उस पर कंपनियों को नुकसान हो रहा है। वहीं सरकार ने चालू साल के बजट में उर्वरक सब्सिडी में जो कटौती की थी मौजूदा परिस्थितियों में उसे बढ़ाना लगभग तय दिख रहा है
यूक्रेन और रूस युद्ध के चलते उर्वरकों की आपूर्ति पर प्रतिकूल असर पड़ा है। इसके चलते कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और इसका खामियाजा देश के किसानों को अधिक कीमत चुकाने के रूप में भुगतना पड़ सकता है। देश में सबसे अधिक खपत वाले उर्वरक यूरिया की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 1,200 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है। वहीं डीएपी के लिए जरूरी फॉस्फोरिक एसिड की कीमत 2,025 डॉलर प्रति टन तक चली गई हैं। इसके चलते यूरिया और विनियंत्रित उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना बन गई है। भारत में यूरिया की अधिकांश खपत घरेलू उत्पादन से पूरी हो जाती है लेकिन उसके बावजूद सालाना करीब 50 लाख टन यूरिया का आयात करना पड़ता है।
उर्वरक उद्योग के सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों डीएपी की कीमत बढ़ाकर 1,350 रुपये प्रति बैग (50 किलो) करने के बाद भी उस पर कंपनियों को नुकसान हो रहा है। वहीं सरकार ने चालू साल के बजट में उर्वरक सब्सिडी में जो कटौती की थी मौजूदा परिस्थितियों में उसे बढ़ाना लगभग तय दिख रहा है। उर्वरक उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि इस समय आयातित डीएपी की कीमत 80 हजार रुपये प्रति टन आ रही है। सरकार डीएपी पर 33 हजार रुपये प्रति टन की सब्सिडी दे रही है। जो नाकाफी है। कंपनियों द्वारा डीएपी की कीमत 1350 रुपये प्रति बैग करने के बावजूद कंपनियों को भारी घाटा उठाना पड़ सकता है। इसलिए उद्योग की निगाह भी सरकार की ओर है कि वह सब्सिडी में कितनी बढ़ोतरी करती है। सरकार विनियंत्रित उर्वरकों पर न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत सब्सिडी देती है और हर इसके तहत सब्सिडी की दरें घोषित करती हैं चालू साल के लिए अभी तक सब्सिडी दरें घोषित नहीं की गई हैं। यह दरें 1 अप्रैल से घोषित हो जानी चाहिए। नई दरें घोषित नहीं होने के चलते कई कंपनियां बाजार में उर्वरकों और खासतौर से डीएपी की आपूर्ति में ढील बरत रही हैं। इस योजना के तहत डीएपी और दूसरे कॉम्प्लेक्स उर्वरक आते हैं। इनके दाम कंपनियां तय करती हैं।
देश में कुल उर्वरक खपत में 67 फीसदी हिस्सेदारी यूरिया की है। इस समय यूरिया की कीमतें सरकार द्वारा तय की जाती हैं और 50 किलो के यूरिया के बैग की कीमत 268 रुपये 45 किलो के बैग की कीमत 242 रुपये है। वैश्विक बाजार की ताजा कीमतों के आधार पर यूरिया की कीमत 90 हजार रुपये प्रति टन से अधिक बैठती है जबकि सरकार की मौजूदा कीमतों के आधार पर घरेलू किसानों के लिए कीमत केवल 5,360 रुपये प्रति टन आती है। ऐसे में सरकार इन ऊंची कीमतों के चलते सब्सिडी का अगर पूरा बोझ खुद वहन नहीं करती है तो किसानों के लिए यूरिया की कीमत बढ़ सकती है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों सरकार ने काफी कम कीमत पर यूरिया के कुछ सौदे कर लिये थे उस स्टॉक का फायदा मिल सकता है।
पिछले एक साल से उर्वरकों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी के चलते सरकार को सब्सिडी बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा है। पिछले साल कंपनियों ने अप्रैल माह में डीएपी और एनपीके उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी थी। उसके बाद सरकार ने जून में सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी कर डीएपी की कीमत को 1,200 रुपये प्रति बैग की पुरानी कीमत पर लाया था। अक्तूबर में एक बार फिर डीएपी और एनपीके के तहत तीन कॉम्प्लेक्स उर्वरकों पर अतिरिक्त सब्सिडी दी थी। हालांकि इसके बावजूद एनपीके की तीन सब्सिडी बढ़ोतरी वाली श्रेणियों की कीमत भी बढ़कर 1,450 से 1,470 रुपये प्रति बैग हो गई थी, जबकि पहले इसकी कीमत 1,100 रुपये प्रति बैग से कम थी।
वैश्विक बाजार में लगातार कच्चे माल के दाम बढ़ने के चलते करीब सप्ताह भर पहले कंपनियों ने डीएपी के दाम को 1,200 रुपये से बढ़ाकर 1,350 रुपये प्रति बैग कर दिया है। लेकिन अगर सरकार सब्सिडी में इजाफा नहीं करती है तो इसकी कीमत का बढ़ना तय है। सरकार ने कॉम्प्लेक्स उर्वरक एनपीके के जिन तीन वेरिएंट पर डीएपी के साथ अतिरिक्त सब्सिडी दी थी उनको छोड़कर कंपनियों ने कुछ वैरिएंट के दाम बढ़ाकर 1,950 रुपये प्रति बैग कर कर दिये हैं।
सरकार के सामने यूरिया सबसे बड़ी चुनौती के रूप में आ रहा है। इसकी कीमत 2020 में 229 डॉलर प्रति टन थी। करीब छह माह पहले अक्तूबर में इसकी कीमत 695 डॉलर प्रति टन थी जो वैश्विक बाजार मे 23 मार्च, 2022 को बढ़कर 1,200 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई। इसके एक सप्ताह पहले 16 मार्च को यूरिया की कीमत 900 डॉलर प्रति टन पर थी।
फिलहाल यूरिया की खपत का सीजन शुरू नहीं हुआ है, क्योंकि खरीफ के आगामी सीजन की फसल की बुआई जून में शुरू होगी। ऐसे में सरकार के पास मौका है कि वह समय रहते उर्वरकों की जरूरी उपलब्धता सुनिश्चित करे। रबी सीजन की बुआई के समय किसानों को डीएपी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ा था। उस समय चीन द्वारा डीएपी का निर्यात रोकने और बेलारूस पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध के चलते किल्लत पैदा हुई थी। लेकिन पिछले एक माह से अधिक समय चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते उर्वरक के दो बड़े निर्यातकों बेलारूस और रूस से आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई और कीमतों में बढ़ोतरी लगातार जारी है।
आपूर्ति का यह संकट भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका और ब्राजील जैसे दूसरे बड़े कृषि उत्पादक और उर्वरकों की खपत वाले देश भी झेल रहे हैं। घरेलू उद्योग सूत्रों का कहना है कि बढ़ती कीमतों पर सरकार उद्योग का सहयोग करने का भरोसा दे रही है लेकिन अभी तक कोई फैसला एनबीएस सब्सिडी दरों पर नहीं हो सका है क्योंकि विनियंत्रित उर्वरकों की कीमतें एनबीएस दरों पर निर्भर करती है।
जहां तक यूरिया की कीमत की बात है तो इसकी कीमत पर सरकार के नियंत्रण के चलते सब्सिडी का पूरा बोझ सरकार पर ही रहता है। इन परिस्थियों में अगर आने वाले दिनों में उर्वरकों की उपलब्धता प्रभावित होती है तो इस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वहीं उद्योग सूत्रों के मुताबिक अभी कई कंपनियों ने डीएपी जैसे उर्वरक की बाजार में आपूर्ति को सीमित कर रखा है।