सरकार ने गेहूं निर्यात पर लगाया प्रतिबंध, बढ़ती कीमतों को रोकने की कवायद

वाणिज्य मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशालय की तरफ से शुक्रवार को इसकी अधिसूचना जारी की गई। अधिसूचना के मुताबिक निर्यात पर प्रतिबंध तत्काल प्रभावी हो गया है। हालांकि इसमें यह भी कहा गया है कि अधिसूचना की तारीख से पहले जिन कंपनियों ने सौदे कर लिए हैं उन्हें निर्यात की इजाजत होगी

सरकार ने गेहूं निर्यात पर लगाया प्रतिबंध, बढ़ती कीमतों को रोकने की कवायद

सरकार ने गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। वाणिज्य मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशालय की तरफ से शुक्रवार को इसकी अधिसूचना जारी की गई। अधिसूचना के मुताबिक सभी किस्मों के गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध तत्काल प्रभावी हो गया है। माना जा रहा है कि लगातार बढ़ती महंगाई के बीच गेहूं की कीमतों में वृद्धि को देखते हुए यह निर्णय लिया गया। इस बार गेहूं उत्पादन में भी गिरावट आई है। अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि इसके जारी होने की तारीख से पहले जिन कंपनियों ने सौदे कर लिए हैं उन्हें निर्यात की इजाजत होगी। एक अन्य अधिसूचना के जरिए सरकार ने प्याज के बीज के निर्यात की अनुमति दे दी है। यह फैसला भी तत्काल प्रभावी हो गया है।

मध्य भारत कंसोर्सियम ऑफ फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी के सीईओ योगेश द्विवेदी ने रूरल वॉयस को बताया कि जिन गेहूं निर्यात सौदों के लिए भुगतान लिया जा चुका है, सिर्फ उन्हें निर्यात की अनुमति होगी। फैसले का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि पहली बार छोटे किसानों को भी एमएसपी से बेहतर कीमत मिल रही थी। कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी कंपनियों ने ही पुराने सौदे किए हैं। उन्होंने कांडला बंदरगाह तक गेहूं ले जाने के लिए रेल रैक बुक किए थे। हालांकि जब रेलवे ने रैक की दरें बढ़ा दीं तो उसे भी निर्यात को हतोत्साहित करने वाला कदम माना गया था।

लेकिन दूसरी तरफ सरकार की तरफ से निर्यात बढ़ाने की भी कोशिशें जारी थीं। अधिसूचना से एक दिन पहले ही वाणिज्य मंत्रालय ने कहा था कि गेहूं निर्यात बढ़ाने के लिए मोरक्को, ट्यूनीशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड समेत नौ देशों को प्रतिनिधि भेजे जाएंगे। मंत्रालय ने गेहूं निर्यात पर एक टास्क फोर्स बनाने और पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे प्रमुख के उत्पादक राज्यों में निर्यात के लिए बैठकें आयोजित करने की भी बात कही थी। मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ इन्सेंटिव देने की भी घोषणा की थी।

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अब माना जा रहा है कि महंगाई के दबाव में निर्यात पर प्रतिबंध का फैसला लिया गया है। खुदरा महंगाई अप्रैल में आठ साल की रिकॉर्ड उंचाई 7.79 फीसदी पर पहुंच गई। इसमें भी खाद्य महंगाई 8.32 फीसदी तक चली गई है। बाजार में गेहूं महंगा होने के कारण अभी से आटा महंगा होने लगा है। खुल बाजार में कीमतें नियंत्रित रखने के लिए सरकार हर साल 50 से 60 लाख टन गेहूं ओपन मार्केट स्कीम के तहत मिलों को बेचती है। लेकिन इस बार सरकार के पास स्टॉक न होने के कारण यह मुश्किल लग रहा है।

खुले बाजार में एमएसपी से ज्यादा कीमत मिलने के कारण इस बार बहुत कम किसान सरकारी मंडियों में गेहूं खरीदने पहुंच रहे थे। उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में सरकारी खरीद केंद्रों में रजिस्ट्रेशन कराने वाले किसानों की तुलना में बहुत कम किसान वहां अपनी उपज बेचने के लिए आ रहे थे। इस फैसले से उन किसानों को नुकसान होगा जिन्होंने बेहतर कीमत की उम्मीद में अभी तक अपनी उपज नहीं बेची थी। उन्हें अब घरेलू बाजार में ही इसकी बिक्री करनी पड़ेगी। रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2015 रुपये प्रति क्विटंल है, जबकि बाजार में किसानों को 2300 रुपये प्रति क्विटंल तक की कीमत मिली है।

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इस वर्ष मार्च और अप्रैल में मौसम का तापमान अचानक बढ़ने के कारण कई राज्यों में गेहूं के उत्पादन में गिरावट आई है। सरकार को अपनी खरीद का लक्ष्य भी आधे से कम करना पड़ा है। पहले सरकार ने 444 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था लेकिन बाद में उसे घटाकर 195 लाख टन कर दिया। सेंट्रल फूडग्रेन्स प्रोक्योरमेंट पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार अभी तक 179.89 लाख टन गेहूं खरीदा गया है। मंडियों में किसानों के न पहुंचने के कारण इस संशोधित लक्ष्य को हासिल करना भी मुश्किल लग रहा था। विशेषज्ञों का कहना है कि निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले के बाद किसान फिर मंडियों का रुख कर सकते हैं। खरीद आम तौर पर 15 जून तक चलती है।

घरेलू बाजार में उपलब्धता की आशंका को देखते हुए सरकार ने भले गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगा दी हो, लेकिन अभी तक उत्पादन को लेकर उसने स्थिति स्पष्ट नहीं की है। मार्च और अप्रैल में अचानक तापमान बढ़ने से खासकर उत्तरी राज्यों में गेहूं के दाने सिकुड़ गए। देश के अधिकांश हिस्सों के किसानों का कहना है कि उनका उत्पादन 15 से 25 फीसदी तक गिर गया। हालांकि सरकार ने गेहूं उत्पादन के अनुमान में सिर्फ 5.7 फीसदी कटौती की है। पहले 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान था, जिसे घटाकर 10.5 करोड़ टन किया गया है। 2020-21 में 10.96 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था।

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सरकारी खरीद कम होने के चलते केंद्रीय पूल में पहली बार नए सीजन की खरीद के मुकाबले एक अप्रैल 2022 को बकाया स्टॉक अधिक रहने की स्थिति बन गई। उक्त तिथि को केंद्रीय पूल में 189.90 लाख टन गेहूं था, जबकि अभी तक सिर्फ 179.89 लाख टन गेहूं खरीदा गया है। अगर सरकार संशोधित लक्ष्य के मुताबिक 195 लाख टन गेहूं खरीदने में सफल होती है तो वह 2010-11 के बाद सबसे कम रहेगा। 2010-11 के रबी मार्केटिंग सीजन में 225.13 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी।

इस वर्ष सरकारी खरीद के संशोधित लक्ष्य को पाना भी इसलिए मुश्किल लग रहा था कि सेंट्रल पूल में सबसे अधिक योगदान करने वाला पंजाब 5 मई से गेहूं खरीद चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की घोषणा कर चुका है। वहां 132 लाख टन के लक्ष्य मुकाबले अभी तक सिर्फ 95.5 लाख टन गेहूं खरीदा गया है। ऐसे में आने वाले दिनों में गेहूं की उपलब्धता का संकट मंडराने लगा था।

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सरकार को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत वितरण के लिए हर साल करीब 260 लाख टन गेहूं की जरूरत पड़ती है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत हर माह पांच किलो मुफ्त खाद्यान्न देने के लिए चालू साल के छह माह के लिए 109.28 लाख टन गेहूं का आवंटन किया गया है। वहीं बफर मानकों के तहत एक अप्रैल को केंद्रीय पूल में 75 लाख टन गेहूं का स्टॉक होना चाहिए। इन तीनों मद में कुल मिलाकर 445 लाख टन गेहूं की जरूरत पड़ेगी। जबकि पुराना स्टॉक और नई खरीद के संशोधित लक्ष्य को मिलाकर सरकार के पास 385 लाख टन गेहूं ही होगा।

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