झारखंड में इंडिया गठबंधन वापसी की ओर, 55 सीटों पर आगे
झारखंड चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरने की अगुवाई में इंडिया गठबंधन की वापसी होती दिख रही है। चुनाव आयोग के अनुसार, शाम 5.00 बजे तक झारखंड मुक्ति मोर्चा 15 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी थी और 19 सीटों पर आगे चल रही है। उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस 6 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है और 10 पर आगे है। राष्ट्रीय जनता दल तीन सीटों पर बढ़त बनाए हुए है और एक जीत चुकी है।
झारखंड चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरने की अगुवाई में इंडिया गठबंधन की वापसी होती दिख रही है। चुनाव आयोग के अनुसार, शाम 5.00 बजे तक झारखंड मुक्ति मोर्चा 15 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी थी और 19 सीटों पर आगे चल रही है। उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस 6 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है और 10 पर आगे है। राष्ट्रीय जनता दल तीन सीटों पर बढ़त बनाए हुए है और एक जीत चुकी है। सत्तारूढ़ गठबंधन को अभी तक 55 सीटें और भाजपा गठबंधन को 24 सीटें मिलती दिख रही हैं। भाजपा 4 सीटें जीत चुकी है और 17 सीटों पर आगे है। राज्य की 81 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 41 सीटें चाहिए।
बरहैत सीट पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के गमलियल हेमब्रोम से करीब 39 हजार वोटों से जीत चुके हैं। हेमंत को 95,612 और हेमब्रोम को 55,821 वोट मिले। गिरिडीह जिले की गांडेय सीट पर कल्पना सोरेन ने भाजपा की मुनिया देवी को 13 हजार से अधिक वोटों से हराया है। सरायकेला में भाजपा के टिकट पर चंपई सोरेन ने झामुमो के गणेश महली को हरा दिया है। बोकारो में कांग्रेस की श्वेता सिंह ने भाजपा के बिरंची नारायण को 7,200 वोटों से हराया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा को सबसे अधिक सीटें मिलने के बावजूद वोट प्रतिशत में भाजपा काफी आगे है। भाजपा को 32.80 प्रतिशत और झामुमो को 23.05 प्रतिशत वोट मिले हैं। कांग्रेस 15.68 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे स्थान पर है। आरजेडी को 3.19 प्रतिशत, सीपीएम (माले) को 2.07 प्रतिशत, जदयू को 0.65 प्रतिशत और लोक जनशक्ति पार्टी (पासवान) को 0.76 प्रतिशत वोट मिले हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को बंटी और बबली बताया था। तथाकथित भूमि घोटाले से जुड़े मनीलॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें 31 जनवरी को गिरफ्तार भी किया था। लेकिन इस जोड़ी ने चुनाव की घोषणा के बाद राज्य में लगभग 200 रैलियां कीं और अपने पक्ष में माहौल बनाने में सफल रहे। यह जीत आदिवासी समुदाय पर सोरेन की पकड़ को भी दर्शाती है।