खाद्य तेलों के भारी आयात से किसानों का बुरा हाल, सरसों एमएसपी से 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल नीचे बिक रहा
एक तरफ सरकार खाद्य तेलों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है और इसके लिए विशेष सरसों अभियान चला रही है ताकि सरसों का बुवाई रकबा और उत्पादन बढ़े, दूसरी तरफ खाद्य तेलों के बेधड़क आयात की छूट दे रखी है। इससे सरसों किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। देशभर की तमाम मंडियों में सरसों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,450 रुपये प्रति क्विंटल से 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल नीचे चल रहे हैं। यही नहीं उत्पादन की तुलना में सरसों की सरकारी खरीद भी इतनी कम हो रही है कि बाजार कीमतों पर उसका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है।
एक तरफ सरकार खाद्य तेलों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है और इसके लिए विशेष सरसों अभियान चला रही है ताकि सरसों का बुवाई रकबा और उत्पादन बढ़े, दूसरी तरफ खाद्य तेलों के बेधड़क आयात की छूट दे रखी है। इससे सरसों किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। देशभर की तमाम मंडियों में सरसों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,450 रुपये प्रति क्विंटल से 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल नीचे चल रहे हैं। यही नहीं उत्पादन की तुलना में सरसों की सरकारी खरीद भी इतनी कम हो रही है कि बाजार कीमतों पर उसका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है।
खाद्य तेलों के उत्पादकों के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2023 में वेजिटेबल ऑयल (खाद् एवं गैर-खाद्य तेल) का आयात 6 फीसदी बढ़कर 11,72,295 टन पर पहुंच गया है जो मार्च 2022 में 11,04,570 लाख टन था। इसमें खाद्य तेलों की हिस्सेदारी 11,35,600 टन और गैर-खाद्य तेलों की 36,693 टन रही है। पिछले पांच महीनों (नवंबर 2022-मार्च 2023) की बात करें तो वेजिटेबल ऑयल के आयात में इससे पिछले वर्ष की इसी अवधि (नवंबर 2021-मार्च 2022) के मुकाबले 22 फीसदी की बड़ी उछाल दर्ज की गई है। 2021-22 की इस अवधि में 57,95,728 लाख टन वेजिटेबल ऑयल का आयात हुआ था जो 2022-23 में बढ़कर 70,60,193 टन पर पहुंच गया। इसमें खाद्य तेलों की हिस्सेदारी 69,80,365 लाख टन और गैर-खाद्य तेलों की 79,828 टन रही है।
दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र और नाबार्ड कृषि निर्यात सुविधा केंद्र, जोधपुर के संस्थापक निदेशक और किसानों के हित के लिए काम करने वाले भगीरथ चौधरी रूरल वॉयस से कहते हैं, “देश में खाद्य तेलों की इतनी बड़ी समस्या है और उस समस्या को कम करने के लिए किसानों ने पिछले साल सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन किया। इस साल भी रिकॉर्ड रकबे में बुवाई हुई और उत्पादन भी नए रिकॉर्ड पर पहुंचने की संभावना है तो फिर पाम ऑयल आयात करने की इजाजत क्यों दी गई। जब पता है कि रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है और किसानों को अच्छा भाव मिल रहा है तो इतना पाम ऑयल देश में लाने की क्या आवश्यकता थी। इससे देश में सरसों की कीमत पर असर पड़ा और भाव एमएसपी से नीचे चला गया। वह भी तब ऐसा किया गया जब सरसों की नई फसल बाजार में आने वाली थी। यह नीति किसी भी तरह से किसानों के हित में नहीं है। इससे किसान हतोत्साहित होंगे।”
आयात में तेज बढ़ोतरी की वजह से सरसों के औसत भाव 4200-4700 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गए हैं। दो साल पहले 2021 के भाव से तुलना करें तो बाजार भाव करीब आधा रह गया है। उस साल किसानों को सरसों का भाव 8000-9000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिला था। जबकि 2022 में औसत भाव 7000 रुपये प्रति क्विंटल रहा था। आयात में बढ़ोतरी तब हो रही है जब सरकार ने खुद अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में सरसों व रेपसीड का उत्पादन रिकॉर्ड 128 लाख टन रहने का अनुमान लगाया है। 2021-22 में 117.46 लाख टन की रिकॉर्ड पैदावार हुई थी। जबकि तिलहन फसलों का कुल उत्पादन 4 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया गया है।
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह ने सरसों की कीमतों के एमएसपी से नीचे आने पर रूरल वॉयस से कहा, “सरकार ने जनवरी से मार्च तक सस्ते खाद्य तेलों की अनुमति जारी रख किसानों का नुकसान किया है। इसके चलते ही जो सरसों 6000 रुपये प्रति क्विटंल बिकनी चाहिए थी उसका दाम 4400 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गया। इस बारे में हमने केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ पिछले दिनों हुई बैठक में भी मांग की थी कि सितंबर-अक्टूबर के बाद सस्ते तेल का आयात बंद करना चाहिए। तिलहन फसलों में सबसे अहम सरसों की सही कीमत किसानों को नहीं मिलेगी तो किसान उत्पादन के लिए प्रोत्साहित कैसे होगा। मौजूदा स्थिति में हम खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर होने की उम्मीद कैसे रख सकते हैं।”
बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत सरकार नैफेड के जरिये सरसों की एमएसपी पर खरीद करती है। मगर 4 मई तक नैफेड ने सिर्फ 4.77 लाख टन सरसों की ही खरीद की है। हरियाणा में सरकारी खरीद बंद की जा चुकी है। नैफेड ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर जो जानकारी दी है उसके मुताबिक, 4 मई 2023 तक हरियाणा में 3,47,105 टन सरसों की खरीद हुई है। जबकि सरसों के सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान में सिर्फ 34,980.18 टन की ही खरीद हो पाई है। मध्य प्रदेश में 71,759.97 टन और गुजरात में 23,058.56 टन सरसों की खरीद नैफेड ने की है। इतनी कम खरीद से बाजार भाव पर कैसे असर पड़ेगा यह समझना मुश्किल नहीं है।
बीकेयू हरियाणा के अध्यक्ष रतन मान सिंह रूरल वॉयस से कहते हैं, “इस साल बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और लंबी चली शीतलहर से सरसों की उत्पादकता प्रभावित हुई है। ऐसे में किसानों को सरकारी खरीद से ही उम्मीद थी कि उन्हें फसल की सही कीमत मिल पाएगी। मगर हरियाणा में समय से पहले खरीद बंद कर दी गई और किसानों को बाजार के हवाले कर दिया गया। सस्ते खाद्य तेलों के आयात के चलते सरसों का बाजार भाव एमएसपी से नीचे चला गया है। ऐसे में औने-पौने दाम पर फसल बेचना किसानों की मजबूरी बन गई है। मौजूदा सरकार की जो नीति है उससे लग रहा है कि आने वाले वर्षों में सरकारी खरीद ही बंद हो जाएगी।”
बुवाई के अंतिम आंकड़ों के मुताबिक, रबी सीजन 2022-23 में 98.02 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई। यह 2020-21 के 91.25 लाख हेक्टेयर की तुलना में 6.77 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। सरसों के रकबे का यह नया रिकॉर्ड है। पिछले सीजन में भी बुवाई ने नया रिकॉर्ड बनाया था जिसकी वजह से रिकॉर्ड पैदावार हुई थी।