चालू गन्ना पेराई सत्र 2024-25 की शुरुआत हुए तीन महीने से ज्यादा गुजर चुके हैं। आमतौर पर चीनी मिलें अक्टूबर-नवंबर से मार्च-अप्रैल तक चलती हैं। लेकिन चालू पेराई सीजन आधे से अधिक बीतने के बाद भी देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों को उनकी उपज का भाव मालूम नहीं है। अभी तक राज्य सरकार ने गन्ना के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में बढ़ोतरी तो दूर, उसकी घोषणा तक नहीं की है। राज्य के किसान तीन महीने से अपनी उपज का भाव जाने बगैर ही चीनी मिलों को गन्ना बेचने को मजबूर हैं। फिर भी यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।
यह स्थिति इस बात का संकेत है कि राज्य सरकार इस बार गन्ने के रेट में कोई बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला भी ले सकती है। यूपी में पिछले सात साल में केवल तीन बार गन्ने का एसएपी 10, 25 और 20 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा और चार बार इसे फ्रीज रखा गया। इस तरह सात वर्षों में गन्ने मूल्य कुल 55 रुपये बढ़ाया गया। आमतौर पर जिस साल चुनाव नहीं होते, उस साल गन्ने का रेट नहीं बढ़ता।
यूपी में पिछले 8 वर्षो में गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) (रुपये/क्विंटल) |
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पेराई सत्र | गन्ना मूल्य |
2016-17 | 315 |
2017-18 | 325 |
2018-19 | 325 |
2019-20 | 325 |
2020-21 | 325 |
2021-22 | 350 |
2022-23 | 350 |
2023-24 | 370 |
गन्ने की अगैती किस्मों के लिए |
एक ओर जहां हरियाणा-पंजाब बॉर्डर पर किसान फसलों के न्यनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी समेत कई मांगों का लेकर पिछले दस महीनों से आंदोलन कर रहे हैं। वहीं, गन्ना बेल्ट के नाम से मशहूर पश्चिमी यूपी में किसानों को गन्ने का रेट भी मालूम नहीं है। जबकि पड़ोसी हरियाणा में राज्य सरकार ने पिछले साल ही इस साल के लिए गन्ना मूल्य बढ़ाकर 400 रुपये प्रति क्विंटल करने का ऐलान कर दिया था। पिछले साल हरियाणा में गन्ने का रेट 386 रुपये प्रति क्विंटल था। इसी तरह, पंजाब सरकार ने इस साल गन्ने का रेट 391 से बढ़ाकर 401 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है जो देश में सर्वाधिक है। लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी तक गन्ने के दाम का कुछ अता-पता नहीं है। इस स्थिति का फायदा उठाकर क्रैशर और कोल्हू भी किसानों से कम दाम पर गन्ना खरीद रहे हैं।
किसान राजनीति का गढ़ रहे पश्चिमी यूपी में गन्ने के मुद्दे पर यह उदासीनता सूबे के बदले सियासी माहौल और किसान यूनियनों के बिखराव का परिणाम है। किसानों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाने वाला राष्ट्रीय लोकदल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला चुका है और अब केंद्र व यूपी सरकार में भागीदार है। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि मीरापुर उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी ने बयान दिया था कि गन्ने का भाव 400 पार होना चाहिए। फिलहाल पार्टी इसी स्टैंड पर कायम है। जाहिर है कि रालोद गन्ने का भाव बढ़ाने को लेकर भाजपा सरकार पर दबाव बनाने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है। न ही इस मुद्दे पर पार्टी की तरफ से कोई खास हलचल दिख रही है।
विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने भी गन्ना किसानों के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाने में खास रुचि नहीं दिखाई। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर हुए किसान आंदोलन के बाद किसान यूनियनों में ऐसा बिखराव हुआ कि गन्ने का रेट न बढ़ना भी कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया। अलग-अलग किसान नेता और संगठन गन्ना का रेट बढ़ाने की मांग तो जरूर कर रहे हैं लेकिन इस मांग को लेकर सरकार पर असर डालने की स्थिति में नहीं है।
गन्ना किसानों के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के नेता सरदार वीएम सिंह का कहना है कि किसानों को जाति-धर्म से ऊपर उठकर सरकार बनानी होगी। तभी गन्ने का दाम 500 रुपये प्रति क्विंटल मिलेगा। इस तरह वह किसानों से एकजुट होकर अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने का आह्वान करते हैं। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत सवाल उठाते हैं कि हरियाणा, पंजाब में 400 से ऊपर गन्ने का रेट है तो यूपी में फर्क क्यों है? बाकी किसान नेता भी अपने बयानों में गन्ने का दाम बढ़ाने की मांग कर रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर खास सक्रियता नहीं है। जबकि पश्चिमी यूपी में गन्ना किसानों के मुद्दे पर बड़े आंदोलन होते रहे हैं, जिनकी गूंज दिल्ली तक सुनाई देती थी। लेकिन इस बार हालात एकदम अलग हैं।
लखीमपुरी खीरी कांड से सुर्खियों में आए किसान नेता तजिंदर सिंह विर्क मानते हैं कि किसानों को अपनी एकजुटता बढ़ानी होगी, तभी सरकार और सियासी दल उनकी आवाज को अनसुना नहीं कर पाएंगे। इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा के बिखरे घटकों को साथ लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। यूपी के मुजफ्फरनगर के जिले के किसान संदीप चौधरी का मानना है कि सूबे की राजनीति में सांप्रदायिक मुद्दों का प्रभाव बढ़ा है। साथ ही रालोद के भाजपा से हाथ मिलाने के बाद गठबंधन की सियासी मजबूरी समझी जा सकती है। जबकि किसानों यूनियनों में आपसी टकराव और गुटबाजी हावी है। मंसूरपुर गन्ना सहकारी समिति के पूर्व चेयरमैन श्यामपाल डबास ने बताया कि इस बार सरकार ने अभी तक गन्ने का रेट घोषित नहीं किया है। रेट बढ़ने को लेकर भी अनिश्चितता है।
श्यामपाल बताते हैं कि इस साल पश्चिमी यूपी में गन्ने की फसल पर रेड रॉट व अन्य रोगों का काफी प्रकोप है। रोगग्रस्त किस्म Co 0238 का विकल्प किसानों तक नहीं पहुंचने के कारण गन्ने की पैदावार प्रभावित हुई है। ऐसे में अगर दाम न बढ़ा तो यह गन्ना किसानों पर दोहरी मार होगी।