पिछले साल तक देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य का तमगा रखने वाला उत्तर प्रदेश इस मामले में बहुत तेजी से महाराष्ट्र से पिछड़ता जा रहा है। 30 सितंबर को समाप्त होने वाले चालू सीजन (अक्तूबर 2021 से सितंबर 2022) में राज्य का चीनी उत्पादन 102.50 लाख टन रह गया है और आगामी सीजन में इसके 90 से 100 लाख टन के बीच रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। वहीं महाराष्ट्र का चीनी उत्पादन चालू सीजन में 137.30 लाख टन रहा जिसके आगामी सीजन में 150 लाख टन को पार कर जाने की उम्मीद है। यही नहीं, कर्नाटक जैसे राज्य में आगामी सीजन में चीनी उत्पादन 75 लाख टन तक पहुंच जाने का अनुमान है। जाहिर है कि उत्तर प्रदेश के पिछड़ने से यहां के किसानों और चीनी उद्योग दोनों को नुकसान हो रहा है।
उत्तर प्रदेश में गन्ना और चीनी उत्पादन में कमी का एक प्रमुख कारण तो यह है कि राज्य में 80 फीसदी से अधिक गन्ने की खेती सीओ-0238 किस्म की हो रही है जिस पर बीमारी का प्रकोप बढ़ रहा है। वहीं उद्योग सूत्रों का कहना है कि निर्यात, एथनॉल और बगास से बनने वाली बिजली की दरों के मामले में यहां के उद्योगों का महाराष्ट्र जैसे राज्य की तुलना में कमजोर स्थिति में होना भी बड़ी वजह हैं।
उत्तर प्रदेश में इस साल कम बारिश के चलते गन्ने के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा है, हालांकि इसका असर मध्य उत्तर प्रदेश में अधिक है। राज्य के जिन हिस्सों में सिंचाई की सुविधा कमजोर है और किसानों के पास सिंचाई के बेहतर संसाधन नहीं हैं वहां कमजोर बारिश का प्रतिकूल असर अधिक है। दूसरी बड़ी वजह गन्ना की फसल में बीमारी का प्रकोप है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक पूरे उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल रेड रॉट बीमारी से प्रभावित है। कुछ हिस्सों में बीमारी का असर कम है तो कुछ हिस्सों में बहुत अधिक है। इसके चलते जहां किसानों को उत्पादन घटने का नुकसान है तो चीनी की रिकवरी में कमी से चीनी मिलों को भी नुकसान है।
दरअसल, गन्ने की सबसे कामयाब मानी जाने वाली किस्म सीओ-0238 बीमारी से बुरी तरह प्रभावित हो गई है। आईसीएआर के कोयंबतूर सेंटर में डॉ. बख्सीराम द्वारा विकसित यह किस्म 2009 में रिलीज की गई थी। इस किस्म ने उत्पादकता और चीनी रिकवरी के नये रिकॉर्ड बनाए। उत्तर प्रदेश में साल 2014-15 में 21 लाख हैक्टेयर गन्ना क्षेत्र में से केवल दो लाख हैक्टेयर, यानी आठ फीसदी में सीओ-0238 किस्म की खेती हुई थी। लेकिन उसके बाद इसका क्षेत्रफल तेजी से बढ़ा और 2020-21 में राज्य के कुल 27 लाख हैक्टेयर गन्ना क्षेत्रफल का 87 फीसदी हिस्सा (24 लाख हैक्टेयर) इस किस्म के तहत आ गया।
इस बीच राज्य में गन्ने की औसत उत्पादकता 65.15 टन से बढ़कर 81.50 टन प्रति हैक्टेयर पर पहुंच गई। वहीं चीनी की रिकवरी भी 9.54 फीसदी से बढ़कर 11.73 फीसदी पर पहुंच गई। लेकिन पिछले साल यह घटकर 11.46 फीसदी पर आ गई। चालू सीजन में भी रिकवरी घटकर 11.15 फीसदी रहने का अनुमान है। यानी दो सीजन से रिकवरी घट रही है।
इसी तरह, चालू सीजन में गन्ने की उत्पादकता भी घटकर 79.50 टन प्रति हैक्टेयर रह गई। इसका संकेत चीनी मिलों में गन्ने की पेराई के आंकड़े भी दे रहे हैं। साल 2019-20 में 11.28 करोड़ टन गन्ने की पेराई हुई थी जो 2020-21 में यह घटकर 10.28 करोड़ टन और चालू सीजन में 10.09 करोड़ टन रह गई। जबकि कुल गन्ना क्षेत्रफल पिछले साल 27 लाख हैक्टेयर और चालू सीजन में 28 लाख हैक्टेयर रहा। हालांकि चालू सीजन में सीओ-0238 के तहत गन्ने का क्षेत्रफल पांच फीसदी घटकर 82 फीसदी रह गया।
इस बारे में रूरल वॉयस ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वरिष्ठ वैज्ञानिकों से बात की तो उन्होंने कहा, राज्य सरकार को यह बात समझनी चाहिए कि किसी भी फसल के कुल क्षेत्रफल में किसी एक किस्म की हिस्सेदारी इतनी अधिक नहीं होनी चाहिए। सिंगल वेरायटी होना भी बीमारी बढ़ने की एक बड़ी वजह है। इस वेरायटी को रिप्लेस करने के लिए पर्याप्त काम भी नहीं हुआ है। वैज्ञानिकों के अनुसार किसी भी किस्म के लिए 12-13 साल का समय बहुत लंबा होता है, इसके विकल्प को तेजी से अपनाने की जरूरत है।
चीनी उद्योग से जुड़े सूत्रों की मानें तो अभी इस किस्म का कोई विकल्प उस तरह नहीं उभरा जिसे किसान तेजी से अपना सकें। इस मामले में राज्य का एक्सटेंशन डिपार्टमेंट नाकाम साबित होता दिख रहा है। मौजूदा परिस्थिति में सीओ-0238 को रिप्लेस करना ही समाधान है, लेकिन यह तभी संभव है जब उत्पादकता और चीनी रिकवरी के मामले में सही विकल्प उपलब्ध हो सके।
उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों का कहना है कि वे निर्यात के मामले में भी महाराष्ट्र से पिछड़ रही हैं। बंदरगाह के करीब होने के चलते अधिकांश निर्यात महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक की चीनी मिलें ही कर रही हैं। कुल 112 लाख टन निर्यात में उत्तर प्रदेश से करीब 10 लाख टन चीनी का ही निर्यात हुआ है, जबकि महाराष्ट्र से 65 लाख टन और कर्नाटक से 35 लाख टन चीनी का निर्यात हुआ।
मिलों का कहना है कि लागत अधिक होने के चलते हमें एथनॉल उत्पादन का दाम भी कम मिलता है। खासतौर से गन्ने के रस से सीधे एथनॉल उत्पादन में हम नुकसान की स्थिति में हैं। इसका नतीजा यह होगा कि राज्य में गन्ने के रस से सीधे एथनॉल उत्पादन बढ़ने की संभावना कमजोर हो जाएगी। बेहतर होगा कि केंद्र सरकार एथनॉल की कीमतें क्षेत्रीय आधार पर तय करे।
एक अन्य मुद्दा चीनी मिलों द्वारा अतिरिक्त बगास से तैयार बिजली की कीमत को लेकर है। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों के सूत्रों का कहना है कि राज्य में चीनी मिलें करीब 1200 मेगावाट बिजली उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) को बेचती हैं, लेकिन रेट अन्य राज्यों की तुलना में कम है। उत्तर प्रदेश बिजली नियामक आयोग (यूपीईआरसी) ने ही बिजली की दर कम तय की है। उद्योग का कहना है कि जब बगास की कीमतें आसमान छू रही हैं तब यूपीईआरसी ने बगास की दर 1010 रुपये प्रति टन तय की है, और इसी आधार पर बिजली की कीमत तय की जाती है।
केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (सीईआरसी) ने उत्तर प्रदेश के लिए बगास की दर 2095 रुपये प्रति टन तय कर रखी है। गुजरात में नियामक ने बगास की कीमत 2075 रुपये प्रति टन और महाराष्ट्र में 2509 रुपये प्रति टन तय कर रखी है। बगास की कीमत को आधार बनाने के कारण उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को बिजली का कम दाम मिल रहा है।
उत्तर प्रदेश में एक बड़ी समस्या किसानों को समय पर गन्ना मूल्य भुगतान नहीं होने की है। राज्य सरकार के तमाम दावों के उलट किसानों को गन्ने के मूल्य का समय से भुगतान नहीं हो रहा है। इस मुद्दे पर हाल ही में शामली जिले में किसानों ने लंबा धरना-प्रदर्शन किया। अमरोहा से लोकसभा सांसद कुंवर दानिश अली को भेजे एक पत्र में केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने बताया कि एक सितंबर, 2022 तक उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर किसानों का 4832.49 करोड़ रुपये का बकाया था। हो सकता है कि इसमें कुछ भुगतान हो गया हो लेकिन राज्य सरकार भुगतान के बकाया के आंकड़े जारी करने को लेकर बहुत उत्साहित नहीं दिखती है। हालांकि उद्योग का कहना है कि अधिकांश चीनी मिलों ने भुगतान कर दिया है, केवल कुछ समूहों और चीनी मिलों पर ही बकाया है। इस समय उद्योग की आय की जो स्थिति है, उसमें किसानों को समय से भुगतान करना मुश्किल नहीं है और कई समूह गन्ना आपूर्ति के 14 दिन में भुगतान कर रहे हैं।