उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों पर इस साल दोहरी मार पड़ी है। एक ओर जहां राज्य में गन्ना उत्पादन में गिरावट के चलते किसानों को करीब तीन हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है वहीं चीनी मिलों पर अभी भी गन्ना किसानों का करीब आठ हजार करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है। खास बात यह है कि चीनी मिलों को किसानों को गन्ना आपूर्ति के 14 के भीतर भुगतान करना होता है और उसके बाद ब्याज का प्रावधान है। लेकिन कानूनी प्रावधान के बावजूद किसान ब्याज के भुगतान का भी इंतजार ही कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग के 26 जुलाई, 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक चालू पेराई सीजन (2020-21) में राज्य की चीनी मिलों ने कुल 10.275 करोड़ टन गन्ने की पेराई की है। इसके लिए गन्ना किसानों को अभी तक 25,056.03 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है जो कुल भुगतान का 75.87 फीसदी है। यानी अभी तक 24.13 फीसदी मूल्य का भुगतान नहीं हुआ है। पूरे साल के भुगतान का आकलन करने पर चालू सीजन में गन्ना मूल्य भुगतान 33,024.95 करोड़ रुपये बनता है। इस आकलन के आधार पर 26 जुलाई तक चीनी मिलों पर किसानों का 7,968.92 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है।
इसके अलावा चीनी मिलों द्वारा देरी से भुगतान करने पर ब्याज की जो देनदारी बनती है उसके बारे में सरकार ने कोई बात नहीं की है। वैसे पिछली सरकार के समय का ही करीब 2500 करोड़ रुपये का ब्याज भुगतान बकाया है। वहीं मौजूदा योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ब्याज के आंकड़ों को लेकर लगभग चुप है। किसान संगठनों का दावा है कि ब्याज जोड़ने की स्थिति में किसानों का बकाया 12 हजार करोड़ रुपये से अधिक बनता है।
अब सवाल है कि केंद्र सरकार द्वारा निर्यात प्रोत्साहन से लेकर एथनॉल उत्पादन करने, उत्पादन के लिए डिस्टीलरी स्थापित करने व एथनॉल की कीमतों में इजाफे जैसे प्रोत्साहनों के बावजूद गन्ना किसानों को समय से भुगतान नहीं हो रहा है। वहीं 14 दिन की अवधि के बाद भुगतान पर ब्याज के प्रावधान पर भी राज्य सरकार ने चुप्पी साधी हुई है।
हालांकि राज्य सरकार लगातार दावा कर रही है कि उसके कार्यकाल में गन्ना मूल्य का रिकार्ड भुगतान हुआ है। लेकिन यह बात बात भी सच है कि राज्य में गन्ना मूल्य भुगतान में देरी एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा है। भाजपा ने सत्ता में आने के पहले 14 दिन में गन्ना मूल्य भुगतान का वादा कियाा था। लेकिन चालू पेराई सत्र के शुरू होने के कई माह बाद तक पिछले सीजन का भुगतान पूरा हुआ था। यह स्थिति सीजन दर सीजन जारी है। आगामी चुनावों में विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश जरूर करेगा। वहीं किसान संगठन भी भुगतान में देरी और पिछले तीन सीजन में गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में बढ़ोतरी नहीं करने को लगातार मुद्दा बना रहे हैं।
इस साल गन्ने की पेराई में कमी को भी किसानों के लिए एक नुकसान के रूप में देखा जा रहा है। शामली जिले के किसान जितेंद्र सिंह हुड्डा ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल कमजोर फसल के चलते पेराई घटी है और जिसका सीधा असर किसानों की कमाई पर पड़ा है। इसके पहले पेराई सीजन (2019-20) में राज्य की चीनी मिलों ने 35,898.85 करोड़ रुपये मूल्य के 11.18 करोड़ टन गन्ने की पेराई की थी। यह राज्य सरकार के आधिकारिक आंकड़े हैं। जो साबित करते हैं कि चालू सीजन में किसानों की कमाई करीब तीन हजार करोड़ रुपये घटी है।
इसके साथ ही एक कड़वी सचाई यह है कि गन्ने की उत्पादन लागत में भारी बढ़ोतरी के बावजूद राज्य सरकार ने चालू पेराई सीजन समेत तीन पेराई सीजन में गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। राज्य सरकार ने अपने पहले साल में पेराई सीजन 2017-18 में गन्ने का एसएपी दस रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया था। इसके बाद 218-19, 2019-20 और 2020-21 पेराई सत्र में इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं कर इसे फ्रीज रखा है। यही नहीं एसएपी की घोषणा में सबसे अधिक देरी का रिकॉर्ड भी मौजूदा सरकार के खाते में ही जाता है। वैसे तो तकनीकी रूप से पेराई सीजन अक्तूबर से सितंबर तक होता है लेकिन उत्तर प्रदेश में अधिकांश चीनी मिलें नवंबर से ही पेराई शुरू करती हैं। लेकिन सरकार ने गन्ने का एसएपी 14 फरवरी, 2021 को घोषित किया था यानी व्यवहारिक रूप से भी पेराई सीजन करीब मध्य तक पहुंच गया था क्योंकि राज्य की लगभग सभी चीनी मिलें मई तक पेराई समाप्त कर देती हैं। अपवाद स्वरूप ही कोई चीनी मिल इसके बाद चलती है।
गन्ना भुगतान के बकाया के मुद्दे पर रूरल वॉयस के साथ बात करते हुए भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि राज्य में भाजपा किसानों को गन्ना आपूर्ति के 14 दिन के भीतर भुगतान का वादा कर सत्ता में आई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरठ समेत राज्य में तीन रैलियों में यह वादा किया था। साथ ही भाजपा ने इस वादे को चुनाव घोषणा पत्र में भी शामिल किया था। लेकिन स्थिति जस की तस है जो चीनी मिल समूह गन्ना मूल्य भुगतान में में पहले देरी करते थे वह अभी भी देर से भुगतान कर रहे है बल्कि कई चीनी मिलें इस श्रेणी में और जुड़ गई हैं। इससे साबित होता है कि राज्य सरकार किसानों की बजाय चीनी मिलों के साथ है। टिकैत का कहना है कि इसके साथ ही उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद राज्य सरकार चीनी मिलों पर गन्ना किसानों के भुगतान में देरी के बाद ब्याज देने के प्रावधान को भी लागू नहीं कर रही है। चीनी मिलों पर किसानों का करीब पांच हजार करोड़ रुपये का ब्याज बकाया है। यह स्थिति बताती कि भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की बजाय चीनी मिलों के साथ खड़ी है। उन्होंने कहा कि भारतीय किसान यूनियन पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में एक बड़ी किसान पंचायत कर रही है। उसके बाद यह पंचायतें मंडल स्तर पर होंगी जो राज्य सरकार की किसान विरोधी नीतियों का विरोध करने के लिए आयोजित होंगी।
अब नया सीजन शुरू होने में करीब दो माह का वक्त बचा है और चीनी मिलों पर करीब आठ हजार करोड़ रुपये का बकाया है। वह भी ऐसे समय में जब कोरोना महामारी में देश में आम आदमी की आर्थिक हालत काफी कमजोर हो गई है। उत्तर प्रदेश में बड़ी तादाद में गन्ना किसान सीमान्त और लघु किसान कि श्रेणी में आते हैं जिनकी जोत का आकार एक हेक्टेयर से भी कम है। देरी से भुगतान की स्थिति में इनकी आर्थिक मुश्किलों को समझा जा सकता है।