ऐसे समय जब रूस-यूक्रेन युद्ध समेत विभिन्न कारणों से दुनिया भर में उर्वरकों के दाम बढ़ रहे हैं, उत्तर प्रदेश सरकार ने चीनी मिलों से उनके बॉयलर से निकलने वाली राख से पोटाश बनाने को कहा है। उत्तर प्रदेश भारत के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्यों में एक है। यहां लगभग 120 चीनी मिले हैं जो हर साल लगभग 120 लाख टन चीनी का उत्पादन करती हैं।
प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गन्ना विकास और चीनी उद्योग) संजय भूसरेड्डी ने प्रदेश की स्टैंडअलोन और ग्रुप चीनी मिलों को राख से पोटाश बनाने का निर्देश दिया है। भारत पोटाश का बड़ी मात्रा में आयात करता है। इसका इस्तेमाल मिट्टी के पोषण और उर्वरक के तौर पर किया जाता है। सचिव के अनुसार घरेलू उत्पादन से विदेशी मुद्रा बचाने में मदद मिलेगी।
भारत पोटाश के सबसे बड़े आयातकों में एक है। यहां हर साल लगभग 50 लाख टन पोटाश की खपत होती है। इसका बड़ा हिस्सा आयात होता है। लगभग एक तिहाई आयात बेलारूस और रूस से किया जाता है। बेलारूस के पास समुद्र तट ना होने की वजह से वह रूस और लिथुआनिया के बंदरगाहों के रास्ते निर्यात करता है।
भारत चार तरह के उर्वरकों का आयात करता है। यूरिया, डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी), म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) और नाइट्रोजन फॉस्फोरस पोटेशियम (एनपीके)। सरकार पोटाश पर भी सब्सिडी देती है ताकि वह किसानों के लिए सस्ता पड़े।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों के दाम काफी बढ़ गए हैं। दूसरी तरफ, सप्लाई की भी दिक्कत है। इससे आने वाले महीनों में अनाज की कमी की आशंका हो गई है।
चीनी मिलें अगर पोटाश बनाती हैं तो इससे ना केवल पर्यावरण के अनुकूल तरीके से राख का निपटान किया जा सकेगा, बल्कि इससे चीनी उद्योग को अतिरिक्त राजस्व की कमाई भी होगी। इससे मिलों को गन्ना किसानों का भुगतान करने में भी मदद मिलेगी।
बाबा रामदेव का पतंजलि समूह भी उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों से राख की आपूर्ति करने का आग्रह कर चुका है। यह समूह खेती में इसका इस्तेमाल करना चाहता है। सूत्रों के अनुसार पतंजलि ने उत्तर प्रदेश चीनी मिल एसोसिएशन को राख की थोक आपूर्ति करने के लिए पत्र लिखा था। पत्र के मुताबिक समूह पोटाश और अन्य जैव उर्वरक बनाने में इसका इस्तेमाल करना चाहता है। अभी प्रदेश की चीनी मिलें औद्योगिक इनपुट के तौर पर राख का निपटान करती हैं।