बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की विद्युत इकाई ने 19 लाख टन कोयला आयात करने की योजना बनाई है। आयात किए जाने वाले इस कोयले की कीमत लगभग 2900 करोड़ रुपए होगी। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम की इकाइयों में कोयले की भारी कमी हो रही है। तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने के कारण बिजली की मांग भी काफी बढ़ गई है। निगम को रोजाना लगभग 87,900 टन कोयले की जरूरत है जबकि इसे आपूर्ति सिर्फ 61,000 टन की हो रही है। यानी जरूरत का सिर्फ 70 फ़ीसदी कोयला इसे मिल रहा है।
इसलिए निगम ने जरूरत का 10 फ़ीसदी यानी 18.95 लाख टन कोयला आयात करने का फैसला किया है। आयातित कोयला महंगा होगा और इस पर करीब 2900 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। इसलिए बिजली उत्पादन की लागत भी 70 पैसे प्रति यूनिट बढ़ जाने की उम्मीद है। निगम के प्रबंध निदेशक पी गुरुप्रसाद ने बताया कि कोयला आयात की कीमत 15341 रुपए प्रति टन आंकी गई है। यह अनुमान एनटीपीसी के विंध्याचल रिहंद थर्मल पावर प्रोजेक्ट की तरफ से कोयला आयात के लिए जारी टेंडर के आधार पर निकाला गया है।
हालांकि कोयला आयात के प्रस्ताव को उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग की मंजूरी की जरूरत है। हाल ही आयोग के सचिव संजय कुमार सिंह ने निगम को नोटिस भेजा था जो कोयला आयात के सिलसिले में था। उत्तर प्रदेश बिजली उपभोक्ता फोरम के प्रेसिडेंट अवध कुमार वर्मा की याचिका पर आयोग के सचिव ने निगम को पत्र भेजा था।
अब वर्मा का दावा है कि यदि कोयला आयात का प्रस्ताव मंजूर किया गया तो निगम को अनुमान की तुलना में काफी ज्यादा रकम, 5000 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे। उन्होंने कहा कि अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में जो भाव चल रहे हैं उसके मुताबिक आयात की कीमत 17000 रुपए प्रति टन के आसपास बैठेगी जबकि निगम ने एनटीपीसी के जनवरी के टेंडर के आधार पर अनुमान निकाला है। उन्होंने कहा कि इससे उत्तर प्रदेश में बिजली उत्पादन की लागत एक रुपए प्रति यूनिट बढ़ जाएगी जिसे अंततः राज्य के उपभोक्ताओं पर ही डाला जाएगा।
इस बीच उत्तर प्रदेश के विद्युत विभाग ने कोयला आयात की जिम्मेदारी निगम पर डाल दी है और कहा है कि केंद्र और विद्युत नियामक आयोग के निर्देशों के आधार पर वह जनहित को देखते हुए फैसला करे। इससे पहले आयोग ने निगम से सवाल किया था कि आयातित कोयला जिसकी ग्रॉस कैलोरीफिक वैल्यू (जीसीवी) अधिक होगी क्या उन्हें राज्य के विद्युत संयंत्रों में इस्तेमाल किया जा सकेगा क्योंकि वह संयंत्र कम जीसीवी के आधार पर बनाए गए हैं।
आयोग ने इस बात पर आश्चर्य जताया था कि जब राज्य की दूसरी विद्युत उत्पादन कंपनियां कोयला आयात नहीं कर रही हैं तो उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत निगम ही आयात क्यों करना चाहता है। आयोग ने उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) को सप्लाई की जाने वाली बिजली के बारे में भी पूछा था और जानना चाहा था कि कोयले की कमी के कारण इसमें कोई बाधा आ रही है या नहीं। उत्तर प्रदेश में बिजली की दैनिक मांग 21,000 मेगा वाट से ऊपर पहुंच चुकी है जबकि सप्लाई 19,000 से 20,000 मेगावाट तक ही है। इससे जगह-जगह बिजली कटौती की जा रही है।