ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार 2027 तक मक्के का उत्पादन दोगुना करने का लक्ष्य बना रही है। अभी इसका उत्पादन 14.7 लाख टन के आसपास है, इसे 27.3 लाख टन तक ले जाने का लक्ष्य है। मक्का को रकबा के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण अनाज माना जाता है। इसे 'अनाज की रानी' भी कहा जाता है। राज्य सरकार किसानों को गैरपारंपरिक फसलों से आय बढ़ाने के लिए मक्के की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है। वहीं, प्रति हेक्टेयर मक्का उत्पादन बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है।
राज्य सरकार के एक अधिकारी के अनुसार मक्का की अधिक खेती से किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है। मक्के का उपयोग भोजन, पोल्ट्री फीड और ईंधन (अनाज आधारित इथेनॉल) के रूप में किया जाता है। इसका इस्तेमाल दवा, कॉस्मेटिक, कपड़ा, कागज और अल्कोहल उद्योगों में भी किया जाता है। मक्के का सेवन मूल्यवर्धित खाद्य पदार्थों जैसे आटा, 'ढोकला', बेबी कॉर्न और पॉपकॉर्न के रूप में किया जाता है। इसके विविध उपयोगों के कारण वैश्विक बाजार में मक्का की मांग लगातार बढ़ रही है।
मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार किसानों को खेती के उन्नत तरीकों के बारे में बताने के अलावा बीज प्रतिस्थापन (सीड रिप्लेसमेंट) दर को भी बढ़ावा देगी। किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए सरकार पहले ही इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में ला चुकी है।
मक्का स्टार्च, फाइबर, प्रोटीन, वसा, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, कैरोटीन और आवश्यक खनिजों जैसे मैक्रोन्यूट्रिएंट्स के कारण भी लोकप्रिय है। इसमें मैग्नीशियम, जस्ता, फास्फोरस, तांबा जैसे खनिज पाए जाते हैं। इसे कुपोषण से लड़ने में एक बेहतर साधन के रूप में भी देखा जाता है।
उत्तर प्रदेश में 2021-22 में 691,000 हेक्टेयर में मक्के की खेती की गई, जबकि उपज लगभग 14.7 लाख टन थी। राज्य में मक्का की प्रति हेक्टेयर पैदावार 21.63 क्विंटल है, जो राष्ट्रीय औसत 26 क्विंटल से काफी कम है। तमिलनाडु में औसत उपज 59.39 क्विंटल है जो भारत में सबसे अधिक है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार प्रति हेक्टेयर औसत उपज 100 क्विंटल तक संभव है। अमेरिका में प्रति हेक्टेयर उत्पादन लगभग 96 क्विंटल है। इससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में मक्के की खेती के लिए काफी संभावनाएं हैं।