उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों से एक बात स्पष्ट होती है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ किसानों की तथाकथित नाराजगी को विपक्ष जिस तरह मुद्दा उठा बना रहा था, वह दरअसल काफी बढ़ा चढ़ाकर किया गया दावा था। फिर भी योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदेश के किसानों की वास्तविक चिंताओं से वाकिफ लगती है। किसानों के सामने तत्काल सबसे बड़ा मुद्दा आवारा पशुओं का है। ये पशु ना सिर्फ किसानों की खड़ी फसल को बर्बाद करते हैं बल्कि हाईवे और अन्य सड़कों पर यातायात के लिए भी खतरा बनते हैं।
किसानों की इस समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश की चुनावी सभाओं में इसका जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि प्रदेश में भाजपा की सरकार दोबारा बनाने पर वह आवारा पशुओं की समस्या का स्थाई समाधान ढूंढेगी।
अब जब योगी सरकार दोबारा सत्ता में आ रही है तो केसरिया दल के नेताओं ने इस समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए दिन-रात एक कर दिया है। दरअसल लोकसभा चुनाव में अब सिर्फ 2 साल रह गए हैं और भाजपा नहीं चाहती कि यह समस्या तब तक बनी रहे और विपक्ष को सरकार पर आरोप लगाने का मौका मिले। यही नहीं, अगर इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो पार्टी के प्रति लोगों का भरोसा कम हो सकता है।
विधानसभा चुनावों के दौरान विपक्ष, खासकर समाजवादी पार्टी ने आवारा पशुओं से किसानों को हो रही समस्याओं को जोर-शोर से उठाया था। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बार-बार कहा कि किसानों को आवारा पशुओं से अपनी खड़ी फसल बचाने के लिए खेतों की रखवाली करनी पड़ती है।
सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे दूसरे हिंदी भाषी राज्यों में इस समस्या से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का अध्ययन कर रही है। इन राज्यों ने जो कदम उठाए वह काफी सफल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार आवारा पशुओं को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाकर एक टिकाऊ मॉडल विकसित करना चाहती है। इसमें गाय के गोबर, गोमूत्र, ऑर्गेनिक खाद जैसे बायप्रोडक्ट की मार्केटिंग करना भी शामिल है। सरकार व्यक्ति, सोसायटी, कोऑपरेटिव और स्वयं सहायता समूहों की मदद से एक वैल्यू चैन खड़ी करना चाहती है। इससे ग्रामीण इलाकों में न सिर्फ रोजगार के अवसर पैदा होंगे बल्कि आवारा पशु लोगों के लिए एसेट बन जाएंगे।