प्याज और दूध की कीमतों के बाद अब सोयाबीन के मुद्दे पर महाराष्ट्र की सियासत गरमा रही है। इस साल मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के सोयाबीन उत्पादक किसानों को उपज का सही दाम नहीं मिल रहा है। कीमतें पिछले एक दशक के निम्नतम स्तर पर हैं जिससे विपक्ष को एक नया मुद्दा मिल गया है। आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्षी दल सोयाबीन की कीमतों में गिरावट के मुद्दे को भी भुनाने का प्रयास करेंगे।
महाराष्ट्र की मंडियों में सोयाबीन के दाम 3200 से 3700 रुपये प्रति क्विंटल के बीच बने हुए हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा आगामी खरीफ मार्केटिंग सीजन के लिए निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4892 रुपये प्रति क्विंटल से काफी नीचे हैं। इस गिरावट के चलते किसानों को प्रति क्विंटल 1000 से 1500 रुपये का सीधा नुकसान हो रहा है।
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों में सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इस साल किसानों ने रिकॉर्ड सोयाबीन की बुवाई की है, लेकिन फसल की कटाई से पहले ही कीमतों में आई गिरावट ने उनकी परेशानी बढ़ा दी है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार, सोयाबीन का भाव 10 साल पुराने स्तर पर पहुंच गया है। 2013-14 में सोयाबीन का न्यूनतम भाव लगभग 2,900 रुपये प्रति क्विंटल था, जो मौजूदा समय में लगभग उसी स्तर पर पहुंच गया है।
महाराष्ट्र की मंडियों में जल्दी बोई गई सोयाबीन की आवक भी शुरू हो गई है, लेकिन मौजूदा कीमतों इतनी कम हैं की किसान लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं। अगर जल्द ही स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो यह मुद्दा राज्य में राजनीतिक तनाव का कारण बन सकता है, जिससे सरकार पर फसल की उचित कीमतें सुनिश्चित करने का दबाव बढ़ेगा। राज्य में पहले से ही प्याज और दूध के मुद्दों पर सियासी माहौल गरमाया हुआ है। ऐसे में सोयाबीन की कीमतों में गिरावट और किसानों की नाराजगी आगामी चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकती है।
मध्य प्रदेश में भी सोयाबीन के दाम को लेकर किसान संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शन की तैयारी हो रही है। किसानों की मांग है कि सोयाबीन का भाव 6000 रुपये प्रति क्विटंल पर तय किया जाए। इसके लिए 1 सिंतबंर से मध्य प्रदेश में आंदोलन शुरू होने जा रहा है।