उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध आम रटौल को जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री ने प्रतिष्ठित जियोग्राफिकल इन्डिकेशन (जीआई) प्रमाण पत्र दे दिया है। रटौल आम का नाम बागपत जिले के रटौल गांव से पड़ा है, जहां से इसकी उत्पत्ति मानी जाती है। उत्तर प्रदेश के दशहरी आम के लिए इसके पहले जीआई टैग मिल चुका है। अब रटौल आम भी इस समूह में शामिल हो गया है। देश में चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इन्डिकेशन रजिस्ट्री द्वारा जीआई सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। जीआई पंजीकरण किसी खास जियोग्राफी में उत्पादित होने वाले उत्पाद की खासियत के लिए दिया जाता है और उसके नाम से दूसरे स्थान के उत्पाद को मार्केट नहीं किया जा सकता है।
लखनऊ जिले में विशेष रूप से मलिहाबाद और काकोरी बेल्ट में पैदा होने वाले दशहरी आम को पहले ही जीआई टैग मिल चुका है। जीआई टैग के लिए रटौल मैंगो प्रोड्यूसर एसोसिएशन पिछले 10 साल से भी अधिक समय से प्रयास कर रही थी । मगर इसकी सर्टिफेशन की प्रक्रिया ने साल 2020 से गति पकड़ी जब सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर (सीआईएसएच), लखनऊ ने एक सूत्रधार के रूप में काम किया। रटौल आम अपनी बेहतरीन सुगंध और स्वाद के लिए जाना जाता है।
इस रटौल आम पर पाकिस्तान भी अपने ब्रांड का मलिकाना हक का दावा करता है क्योंकि 1947 में विभाजन के दौरान कुछ प्रवासी इस किस्म को अपने साथ लेकर चल गये थे और पाकिस्तान में इसकी बागवानी करने लगे थे। इसके बाद इस आम की किस्म को पाकिस्तान से खाड़ी देशों में अनवर रटौल के नाम से निर्यात किया जाने लगा ।
इस बात की उम्मीद जताई जा रही है कि जीआई टैग मिलने से रटौल आम को बडे स्तर पर आम प्रेमियों और आम के शौकिन लोगों के वर्ग तक पहुंचने में मदद मिलगी। इसके अलावा निर्यात और बढ़ती मांग का सटीक अंदाजा लगेगा क्योंकि अनवर रटौल पहले से ही खाड़ी में भारतीय आम के शिपमेंट को कड़ी टक्कर दे रहा है।
सीआईएसएच के निदेशक शैलेंद्र राजन के अनुसार, यूपी के चौसा और गौरजीत आम के भी जीआई पंजीकरण के लिए भी आवेदन जमा किया गया हैं। इन दो किस्मों का जीआई पंजीकरण होने की बाद उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल के बराबर आ जाएगा। वर्तमान में पश्चिम बंगाल में 3 जीआई टैग वाली किस्में फाजली, हिमसागर और लखन भोग हैं। उन्होंने बताया की इसके अलावा, बनारसी लंगड़ा के लिए जीआई पंजीकरण प्रक्रिया भी चल रही है।