बुंदेलखंड का दर्द: तीन पीढ़ियों के सपनों और उम्मीदों का भी पलायन 

"गांव-गांव, पांव-पांव यात्रा" के जरिए अलग बुंदेलखंड राज्य की मांग को मजबूत करने में जुटे बुंदेलखंड विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष राजा बुंदेला ने पलायन, पिछड़ेपन और रोजगार को लेकर उठाए गंभीर सवाल

नसीरपुर, जालौन (बुंदेलखंड)

“हमारे पास अब कुछ बचा नहीं है। हमारा नौजवान पढ़-लिखकर भी बाहर जाकर रोजमर्रा की जिंदगी चलाने के लिए छोटी मोटी नौकरी करता है। यहां अपने बुजुर्ग मां बाप को भगवान भरोसे गांव में छोड़ जाता है। जो उसकी दो तीन एकड़ पुश्तैनी जमीन होती है उसकी भी वो परवाह नहीं करता है। अधिया-बटिया पर देकर चला जाता है। हीनता भावना से ये तय कर दिया गया है कि उसका भविष्य यहां नहीं है। बुंदेलखंड में 67 फीसदी पलायन है। ये युवा जो जा रहा है वह तीन पीढ़ियों का नुकसान कर रहा है। एक पीढ़ी उसके मां- बाप की जो यहां उसके बिना परेशान रहते हैं। एक पीढी वो खुद, उसकी बीवी और तीसरा उसके बच्चे। वो दूसरे शहर में जा रहा है जहां वो बोझ बन जाता है। हर शहर की लोगों को झेलने की क्षमता होती है। पर यहां से हजारों की संख्या में युवा जब किसी शहर में जाते हैं तो वहां मलिन बस्तियां बढ़ती हैं। उस शहर पर भी बोझ़ बढ़ता है। तीसरी पीढ़ी उसके बच्चे जिनको पढ़ना लिखना चाहिए वो भी कुछ नहीं कर पा रहे।"

यह कहना है फिल्म अभिनेता, नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और बुंदेलखंड विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष राजा बुंदेला का जो इन दिनों "गांव-गांव, पांव-पांव" यात्रा के माध्यम से अलग बुंदेलखंड राज्य की मांग उठा रहे हैं। उनसे जालौन जिले के नसीरपुर गांव में मुलाकात हुई। राजा बुंदेला के शब्द बुंदेलखंड के हालात बयां करते हैं। पिछड़ेपन और पलायन की पीड़ा को महसूस कराते हैं।  

राजा बुंदेला कहते हैं कि हमारी सात नदियों का पानी हमें मिल नहीं रहा। हमें सूखा सूखा कहकर केन बेतवा लिंक और हर घर जल, हर नल जल जैसी योजनाओं का मायाजाल बुन दिया जाता है। लगता है अरे वाह, अब हमारी समस्याएं खत्म हुईं। हम बुंदेलखंड में चार जगह बिजली बनाते हैं पर यहां गांव आठ घंटे से ज्यादा अंधेरे में डूबे रहते हैं। आप यहां रुकिये तो आपको पता चलेगा। शिक्षा की व्यवस्था ये है कि महीनों से अध्यापकों को वेतन नहीं मिला। जो होशियार अध्यापक हैं उन्होंने अपनी जगह दो-तीन हजार में यहीं के किसी नौजवान को रख लिया है। उनकी जगह वो पढ़ाता है। अस्पताल का हाल ये है कि मेडिकल कॉलेज रेफरल सेंटर बनकर रह गया है। आजादी के बाद से अब तक हमें कुछ नहीं मिला है। एक आईआईटी नहीं, एक एम्स नहीं। बुंदेलखंड के 14 जिलों में एक ऐसी फैक्टरी नहीं जिसे कहा जा सके कि ये रोजगार दे रही है। हम किस बात का दम भरें। हम उत्तर प्रदेश हैं ही नहीं! 

देश का दिल बुंदेलखंड 
अलग बुंदेलखंड राज्य की अलख जगा रहे राजा बुंदेला कहते हैं कि बुंदेलखंड को हार्ट ऑफ इंडिया कहा जाता है। ये मध्य भारत है। लेकिन हमें उत्तर प्रदेश में फंसा दिया गया है। बिजली वो तय करते हैं। पानी वो तय करते हैं। रोजगार वो तय करते हैं। यूपी के 403 विधायकों में हमारे चंद एमएलए क्या योजनाएं ला पाते हैं। सब गोरखपुर, गाजियाबाद में चला जाता है। ऐसे में किसी को तो आवाज उठानी पड़ेगी। यहां का गरीब गुरबा, पेट की लड़ाई के आगे हार ही गया है। वो क्या लड़ाई लड़े। हमने ऐसे कुछ साथियों को तलाशा है जो थोड़ा बेहतर स्थिति में हैं और अपनी जिंदगी परिवार के लिए जी चुके। हमने अलग बुंदेलखड़ राज्य के लिए आंदोलन छेड़ा है। हमें वो बुंदेलखंड चाहिए जहां दूध, दही की नदियां बहती थीं। 

राजा बुंदेला कहते हैं कि 1956 में खत्म हुआ बुंदेलखंड वापस चाहिए। बुंदेलखंड आजादी के पहले अलग राज्य था। आजादी के बाद 1956 तक बुंदेलखंड का अलग मुख्यमंत्री रहा। वो बुंदेलखंड जो सूरमाओं के लिए जाना जाता था, हमें वो वापस चाहिए। हम अब उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में उपेक्षित नहीं सकते हैं। 

तीन विकल्प और आंदोलन की रणनीति:
राजा बुंदेला के नेतृत्व में चलाए जा रहे अलग बुंदेलखंड राज्य आंदोलन ने सरकार के सामने तीन विकल्प रखे हैं —(1) बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाया जाए, (2) इसे दिल्ली की तरह केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाए, या (3) बोडोलैंड की तर्ज पर गवर्निंग काउंसिल बनाई जाए। 

राजा बुंदेला कहते हैं कि अगर हमें राज्य नहीं बना सकते हैं तो हमें दिल्ली की तरह बना दीजिए। एक लेफ्टिनेंट गवर्नर बना दीजिए। अगर वो भी नहीं कर सकते तो गवर्निंग काउंसिल बना दीजिए। जैसी अभी बोडोलैंड की बनी है। हमारी जनता की चुनी हुई गवर्निंग काउंसिल हमारी प्राथमिकताओं के हिसाब से विकास करेंगी। हमने ये तीन विकल्प दे दिए हैं। अगर इन विकल्पों पर भी सरकार नहीं मानती है तो ये तय मानिए संघर्ष लंबा है। हम कोई तोड़ फोड़ नहीं करेंगे। बसें और रेल नहीं जलाएंगे। न किसी सरकारी कार्यालय को नुकसान पहुंचाएंगे। हम जेल भरेंगे। जेल भरो आंदोलन चलाएंगे। अभी हमारी "गांव-गांव, पांव-पांव यात्रा" के तीन चरण और बाकी हैं। उसके बाद हम दिल्ली में दो दिन डेरा डालेंगे और फिर जेल भरो आंदोलन चलाएंगे। सांकेतिक हड़ताल करेंगे। 

बुंदेलखंड के तीन सवाल: पलायन, प्यास और रोजगार 
बुंदेलखंड के तीन बड़े सवाल हैं। पलायन और भुखमरी का सवाल सबसे पहला है। राजा बुंदेला कहते हैं कि नौजवान जब यहां से जाता है तो वो अकेले ही नहीं जाता। वो यहां से सपने और उम्मीदें ले जाता है। नौजवान यहां रहेगा तो अपने मां बाप की देखभाल करेगा। वो अपनी ढाई एकड़ की खेती किसानी करेगा। उसके बाद छोटे मोटे कारोबार करेगा। जब आदमी यहां रुकेगा तो यहां कारोबार भी बढ़ेगा। अभी यहां नौजवान है ही नहीं तो ऐसे में फैक्टरी चलेगी भी कैसे। दूसरा पानी की समस्या। बुंदेलखंड ताल तलैयों के लिए जाना जाता था। ललितपुर चले जाइए। सबसे ज्यादा पानी वाला जिला था वहां सबसे ज्यादा गरीबी है। टीकमगढ़ झीलों के लिए जाना जाता था। आपने बेला ताल को अतिक्रमणों से तबाह कर दिया है। फिर आप कहते हैं कि बुंदेलखंड में पानी का संकट है। हमारा किसान नदियों से पानी लेता ही नहीं था। वह कुओं पर निर्भर था। आपने ऐसी ऐसी योजनाएं लाकर थोप दी हैं, कभी आस्टेलिया से, कभी अमेरिका से, इंग्लैंड से। हर घर जल, हर घर नल योजना आई। आपने पहले सड़कें बनाई। फिर इस योजना के लिए सड़कें तोड़कर पाइपलाइन बिछाई। ठेकेदार काम बीच में ही छोड़ गए। न सडक ठीक है और न ही पाइपलाइन ठीक से बनी। पानी भी सडक पर ही बहता है। तीसरा है मालिकाना हक। जो आपने हमें दिया ही नहीं। हर नए राज्य को केंद्र पंद्रह साल आर्थिक सहायता देता है और उसे आत्मनिर्भर होने तक धीरे-धीरे कम करता जाता है। उत्तरखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ को भी ऐसे ही मिला। 

अपने पैरों चल सकते हैं बुंदेलखंडी 
मगर बुंदेलखंड को तो इस आर्थिक सहायता की भी जरूरत नहीं। राजा बुंदेला कहते हैं कि हमारे पास अदरक है, मटर है, नींबू है। खनिज में ग्रेनाइट है। बालू है, हीरा है, कोहिनूर है। हमारे पास आयुर्वेद औषधियां हैं। छत्तीसगढ़ और झारखंड के बाद बुंदेलखंड से ही हमदर्द और बाबा रामदेव को सबसे ज्यादा आयुर्वेदिक खनिज जाता है। ये एक बड़ा झूठ है कि बुंदेलखंड अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता। क्यूं नहीं हो सकता, हमें पता है कि रोजगार कहां हो सकता है। दुनिया भर में हमारे जो बुंदेलखंडी भाई काम कर रहे हैं, साइंस में टेक्नोलॉजी में, हमने सबको लिखा है। अपने क्षेत्र में आओ और रोजगार दो। सब तैयार हैं। हमने इसका पूरा तानाबाना बुन लिया है। हम प्रदेश बनने के बाद अगले दस साल किसी मदद पर निर्भर नहीं रहेंगे। हमारी गृहमंत्री अमित शाह जी से मुलाकात हुई। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से भी हम मिले। हमारे दर्द को दोनों ने समझा। लेकिन यूपी सरकार का इसमें ज्यादा रोल नहीं है। हमारी समस्या केंद्र से हल होगी। गृहमंत्री 140 करोड़ भारतवासियों की बात कर रहे हैं। वह कहते हैं कि हमें देश की तमाम समस्याओं का निवारण करना है। हमारी मांग सिर्फ पांच करोड़ बुंदेलखंडियों की जिंदगी से जुड़ी है। हमारा दर्द उनकी जानकारी में है और यूपी का बंटवारा उनके मेनिफेस्टो में है। हमने दो बार शाह जी से बात की। दोनों बार उन्होंने बुंदेलखंड राज्य देने से इनकार नहीं किया। उन्होंने ये जरूर कहा था कि राज्यसभा में बहुमत न होने की वजह से इस प्रस्ताव में अड़चनें हैं। हम फिर नए सिरे से उनके साथ वार्ता करेंगे। महाराष्ट्र और गुजरात एक थे। महाराष्ट्र किसी भी सूरत में गुजरात को छोड़ना नहीं चाहता था। सात जजों की बेंच बैठी तब ये दोनों अलग हुए। छोटे राज्यों की अहमियत को प्रधानमंत्री भी जानते हैं। 

आंदोलन के लिए छोड़ी सुख-सुविधाएं
अलग बुंदेलखंड राज्य के लिए मांग के लिए अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर चुके राजा बुंदेला कहते हैं कि हमारे लिए सबसे ज्यादा जरूरी इस लड़ाई के लिए लोगों का विश्वास जीतना है। हम इसमें कामयाब भी हो रहे हैं। हमारी बात में अगर वजन है तो लोग उसे गुनेंगे भी। मैंने निजी जीवन में भी सारी ऐसी चीजें छोड़ दी हैं जो लोगों का भरोसा जीतने में बाधा थीं। मैं बड़ी कार में घूमूं, नाज नखरे के साथ घूमूं, फिल्म एक्टर बनकर  घूमूं तो कोई गंभीरता से नहीं लेगा। बहुत ज्यादा जरूरी है जिंदगी में कि आप सामने वाले को समझें। आंदोलन में सुबह चाय की समस्या होती थी। मैंने चाय ही छोड़ दी। फिर मेरे सोने की दिक्कत होती थी। मैंने जमीन पर ही बिछौना लगा दिया। गरम रोटी खाने की लालसा छोड़ दी। हर वो आदत बदल डाली जिससे हमारे लोगों को लगे कि ये कहता कुछ है और करता कुछ और है। मैं अब सुखी भी हूं। मेरी जरूरतें अब कम हो गई हैं। निजी तौर पर पहले बहुत लाव लश्कर लेकर चलना पड़ता था। अब इसकी जरूरत ही नहीं। ये सब मैंने गांधीजी को पढ़कर सीखा है। गांधी ने खुद को इतना सहज और सरल कर दिया था कि वह अंदर तक लोगों के दिल में उतर गए। 

बुंदेलखंडियों के लिए संदेश 
राजा बुंदेला बुंदेलखंडवासियों से आह्वान करते हैं, "बुंदेलखंड तुम्हारा अपना है। अब समय आ गया है कि अपने आप को पहचानो, बुंदेलखंड को खुद के पैरों पर खड़ा करो। अकेला राजा बुंदेला कुछ नहीं कर सकता। आप सब खड़े हो जाओगे तो दुनिया की कोई ताकत आपको रोकेगी नहीं। यही जेपी ने कहा था, सिंहासन खाली करो जनता आती है। मैं तो सिर्फ एक आवाज हूं। अकेला राजा बुंदेला कुछ नहीं कर सकता, पर संगठित जनता जरूर कर सकती है। बुंदेलखंडियों अपना खोया हुआ राज्य वापस लो। जय जय बुंदेलखंड।”

(हाल ही में डॉ. रवींद्र प्रताप राणा और पत्रकार राजेश शर्मा ने बुंदेलखंड के पिछड़ेपन और पलायन की समस्या को नजदीक से समझने के लिए एक दौरा किया। यह लेख "गांव-गांव, पांव-पांव यात्रा" में राजा बुंदेला से हुई बातचीत पर आधारित है।)