हरियाणा इन दिनों गंभीर जल असंतुलन से गुजर रहा है। इसकी वजह से खेती प्रभावित हो रही है। एक तरफ राज्य के कई ग्रामीण इलाकों में भूजल का स्तर गिरकर 100 फुट से नीचे पहुंच चुका है, वहीं कई इलाके ऐसे हैं जहां जल-जमाव की समस्या गंभीर होती जा रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण ने अगले तीन साल में जल असंतुलन को कम करने की योजना बनाई है। पानी की उपलब्धता और पानी की मांग के अंतर को वर्ष 2026 तक 45 फीसदी तक कम करने की योजना बनाई गई है। इसके तहत पानी की बर्बादी रोकने के उपाय किए जाएंगे ताकि भविष्य के संभावित जल संकट से निपटा जा सके।
हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण की एकीकृत जल कार्य योजना 2023-26 के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 में पानी के अंतर को 10 फीसदी तक कम किया जाएगा। हाल ही में जल संरक्षण पर आयोजित एक कार्यक्रम में हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण की चेयरपर्सन केशनी आनंद अरोड़ा ने इस कार्य योजना को पेश किया। इसमें बताया गया है कि वित्त वर्ष 2024-25 में 15 फीसदी और 2025-26 में 20 फीसदी यानी तीन साल में पानी की मांग एवं आपूर्ति का अंतर 45 फीसदी तक कम किया जाएगा। इसके लिए कृषि क्षेत्र में माइक्रो इरिगेशन को बढ़ावा देने के साथ-साथ फसलों के विविधिकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और नहरों एवं पानी के स्रोतों का आधुनिकीकरण किया जाएगा। साथ ही धान की सीधी बुवाई की प्रक्रिया अपनाने और गंदे पानी को साफ कर उसका फिर से इस्तेमाल करने पर जोर दिया जाएगा। धान की सीधी बुवाई के रकबे को मौजूदा 70 हजार हेक्टेयर से बढ़ाकर 2 लाख हेक्टेयर करने की योजना है। धान की खेती में ही सबसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है। सीधी बुवाई से पानी की काफी बचत होती है।
इसके अलावा भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए बारिश के पानी को फिर से जमीन में संरक्षित करने, तालाबों एवं चेक डैम में उन्हें सहेज कर रखने के आधुनिक उपाय किए जाएंगे। यही नहीं मत्स्य पालन में भी पानी का कम से कम इस्तेमाल हो इसकी भी कोशिश की जा रही है। इस कार्य योजना में संरक्षित खेती को भी बढ़ावा देना शामिल है ताकि खेतों में कम पानी का इस्तेमाल हो। इसके मुताबिक अगले तीन साल में 15.06 लाख हेक्टेयर जमीन को संरक्षित खेती के दायरे में लाया जाएगा ताकि फसलों की सिंचाई के लिए पानी की कम जरूरत पड़े। इस योजना में सबसे ज्यादा फोकस (32 फीसदी) इसी पर किया गया है।
इसके बाद फसलों के विविधिकरण पर ध्यान दिया गया है। तीन साल में राज्य की 2.42 लाख हेक्टेयर जमीन को इसके लिए तैयार किया जाएगा और किसानों को अलग-अलग फसल लगाने के लिए प्रेरित किया जाएगा। कार्य योजना में इसकी हिस्सेदारी 17 फीसदी रखी गई है। जबकि तीसरी सबसे बड़ी योजना भूजल के स्तर को बढ़ाने, तालाबों और चेक डैम में बारिश के पानी को संरक्षित रखने की है जिसकी हिस्सेदारी 14 फीसदी है। इसके बाद माइक्रो इरिगेशन को बढ़ावा देने की योजना है जिसकी हिस्सेदारी 10 फीसदी रखी गई है। 2026 तक राज्य के 3.35 लाख हेक्टेयर जमीन को माइक्रो इरिगेशन की सुविधा से लैस करने की प्राधिकरण ने योजना बनाई है।
इस एकीकृत कार्य योजना के तहत सबसे पहले प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर पानी की उपलब्धता, पानी की मांग और पानी के अंतर का आकलन किया जाएगा। साथ ही राज्य में पानी को लेकर मुख्य चुनौतियों की पहचान की जाएगी। इस योजना को गांव और पंचायत के स्तर पर लागू किया जाएगा। इसके जरिये राज्य में बेहतर जल शासन, जल प्रबंधन आदतों को बढ़ाना और पानी के बुनियादी ढांचे एवं तकनीक में निवेश को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई है।
फिलहाल राज्य में कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा पानी (85.96 फीसदी) की मांग है। जबकि बागवानी क्षेत्र में 4.71 फीसदी पानी की जरूरत पड़ती है। घरेलू जरूरतों के लिए 3.47 फीसदी, उद्योगों में 2.99 फीसदी, भंडारण में 0.88 फीसदी और मत्स्य पालन में 0.81 फीसदी पानी का इस्तेमाल किया जाता है। कृषि एवं बागवानी क्षेत्र में पानी की जरूरतों को नहरों एवं चेक डैम के अलावा भूजल से पूरा किया जाता है। इसकी वजह से कई जिलों के गांवों में भूजल का स्तर 100 फुट से नीचे चला गया है जो बहुत ही गंभीर स्थिति है। पिछले 20 साल में स्थिति काफी बदतर हो गई है और ऐसी जमीनों के रकबे में 5 गुना की वृद्धि हुई है जहां भूजल का स्तर सबसे गंभीर अवस्था में पहुंच चुका है।
वर्ष 2000 में राज्य की 2 लाख हेक्टेयर जमीन भूजल स्तर के गंभीर संकट में थी जो वर्ष 2010 में बढ़कर 5.76 लाख हेक्टेयर हो गई। 2020 में गांवों की ऐसी जमीनों का रकबा 10.88 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया। इसी तरह से गांवों में गंभीर रूप से जल-जमाव वाले जमीनों का रकबा वर्ष 2000 के 2,450 हेक्टेयर की तुलना में 2020 में 6 गुना बढ़कर 12,730 हेक्टेयर पर पहुंच चुका है। जबकि संभावित जल जमाव वाले जमीनों का रकबा 1.47 लाख हेक्टेयर से बढ़कर लगभग 2.32 लाख हेक्टेयर हो चुका है।