गन्ने के बकाया भुगतान के मुद्दे पर तमिलनाडु के गन्ना किसानों ने निजी मिलों के खिलाफ बड़ी कामयाबी हासिल की है। मद्रास हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने निजी मिलों को गन्ना नियंत्रण अधिनियम, 1966 की धारा 5ए के फार्मूले के अनुसार गन्ना किसानों को 220 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया है। यह 2014 से जारी तमिलनाडु गन्ना किसान संघ के लंबे राजनीतिक और कानूनी संघर्ष का परिणाम है।
अदालत के आदेश के अनुसार, ईआईडी परी, शक्ति शुगर्स, राजश्री, धरानी, बन्नारी अम्मन, कोठारी, पोन्नी, थिरामंदाकुडी अरूरन, पेन्नादम अंबिका सहित 16 निजी चीनी मिलों को 2004-05 से 2008-09 के दौरान गन्ना आपूर्ति करने वाले गन्ना किसानों को 220 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। इस फैसले से गन्ने की खेती करने वाले करीब एक लाख से अधिक किसान परिवारों लाभान्वित होंगें।
इस कानूनी लड़ाई की शुरुआत 2015 में तमिलनाडु गन्ना किसान संघ द्वारा दायर की गई 29 रिट याचिकाओं से हुई है, जिसमें किसानों और चीनी मिलों के बीच लाभ साझा करने के फॉर्मूले के अनुसार उनके वैध हिस्से की मांग की गई थी। मद्रास उच्च न्यायालय ने किसानों के पक्ष में निर्णय सुनाया। 13 सहकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की चीनी मिलों ने किसानों को 98 करोड़ रुपये वितरित किए। लेकिन राजनीतिक रूप से शक्तिशाली निजी चीनी मिल मालिकों ने अदालत के आदेश का पालन करने और देय राशि वितरित करने से इनकार कर दिया था।
नतीजतन, तमिलनाडु गन्ना किसान संघ ने मद्रास उच्च न्यायालय की एकल पीठ का दरवाजा खटखटाया। 19 अक्तूबर, 2023 को दिए गए आदेश में साउथ इंडिया शुगर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एसआईएसएमए) की अपील के बावजूद, मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने पिछले आदेश को बरकरार रखा और एसआईएसएमए की याचिका को खारिज करते हुए, कार्यान्वयन का निर्देश दिया।
इस आदेश से गन्ना नियंत्रण अधिनियम, 1966 की चीनी के प्राथमिक उत्पादकों की उचित हिस्सेदारी देने की मंशा को बल मिला है। अखिल भारतीय गन्ना किसान महासंघ, तमिलनाडु ने गन्ना किसान संघ को लगभग एक दशक लंबे राजनीतिक और कानूनी संघर्षों के लिए बधाई दी है। अखिल भारतीय गन्ना किसान महासंघ ने कहा है कि मामले को लंबा खींचकर निजी चीनी मिलों को नियंत्रित करने वाली चीनी मिलों की निंदा की है।
महासंघ ने तमिलनाडु सरकार और राज्य चीनी विभाग से मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को तत्काल लागू करने की मांग की है। महासंघ का कहना है कि यह आदेश देश के अन्य चीनी उत्पादक राज्यों में इसी तरह के मामलों पर भी लागू होता है और इसलिए संबंधित राज्य सरकारों को भी इसे लागू करना चाहिए।