मुख्य धान उत्पादक राज्यों में बारिश की कमी के कारण मौजूदा खरीफ सीजन में धान की बुवाई 13 फीसदी कम होने के आंकड़े आ रहे हैं । पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 36 फीसदी की कमी बारिश कम हुई और वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में बारिश में 43 फीसदी की कमी है। जुलाई माह में पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहुत से जिलों में बारिश नहीं होने के कारण धान की खेती काफी प्रभावित हुई । पिछले साल की अपेक्षा इस साल धान का रकबा घटा है। जिसके चलते किसानों को हो रहे नुकसान को देखते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों के नुकसान को कम करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने आकस्मिक फसल योजना यानि क्रॉप कंटीन्जेंसी प्लान जारी किया है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए फसल कंटीन्जेंसी प्लान के संबंध में आईसीआर के संस्थान एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट कानपुर (अटारी) के डायरेक्टर डॉ यू एस गौतम ने रूरल वॉयस से आकस्मिक फसल योजना के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि जिन क्षेत्रों में बारिश की कमी के कारण खरीफ फसलों की बुवाई नहीं हो पाई है, उन एरिया के किसान कम अवधि या काफी कम अवधि वाली धान की किस्मों का चुनाव करें। 15 अगस्त तक रोपाई का कार्य पूरा कर ले। इसके लिए एनडीआर 118 जैसी छोटी अवधि की किस्मों का उपयोग करें। 21 दिन पुरानी नर्सरी या 12 दिन पुरानी एसआरआई विधि से रोपाई करें वर्षा सिंचित क्षेत्र में पारंपरिक रोपाई पर डाइरेक्ट सीड राइस तकनीक (डीएसआर) से बुवाई करे करें या धान सीधी बुवाई के लिए ड्रम सीडर का उपयोग करें।
धान की जगह किसान वैकल्पिक फसलों की खेती करें
अटारी के डायरेक्टर डॉ. गौतम ने कहा कि धान की जगह वैकल्पिक फसलें, जैसे बाजरा, मक्का, तिल, उड़द की बुवाई जानी चाहिए। खेतो में नमी संरक्षण के उपाय जैसे खेत की मेड़, मेड़ और कुंड, संरक्षण कुंड, चौड़ी क्यारी और कुंड प्रणाली, मल्चिग का किसान इस्तेमाल करें।उन्होंने कहा कि असिंचित क्षेत्रों में, पशुओं के चारा के लिए बाजरा, ग्वार और लोबिया को उगाएं।
सूखे से बचाने के लिए यूरिया के घोल का छिडकाव करें
डॉ. गौतम ने सूखे वाले एरिया के किसानों को सुझाव दिया कि खेतों में लगी फसलों के लिए एक से तीन फीसदी यूरिया 0,5 जिंक सल्फेट के साथ या उसके साथ डीएपी, दो प्रतिशत 13:0:45 या दो प्रतिशत 19:19:19 घोल का पर्णीय छिड़काव रुक-रुक करें। सूखे के दौरान और बारिश के तुरंत बाद फसलों को फिर से जीवंत करने के लिए यह कारगर होगा। खेत में फसलों की नमी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए जैविक खाद का उपयोग करें।फसल के अच्छे विकास के लिए के फसल के क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई की व्यवस्था करें यानि फसलों को बचाने के लिए जीवन रक्षक सिंचाई करें, अगर संभव हो तो स्प्रिंकलर या ड्रिप प्रणाली के माध्यम से सिंचाई करें।
डॉ. गौतम ने कहा कि किसानों को मौसम आधारित बीमा सहित फसल बीमा सुविधा का लाभ उठाना चाहिए जिससे कि क्षति की भरपाई हो सके। उन्होंने कहा कि किसानो को अपने एरिया के क्षेत्र के लिए उपलब्ध कृषि मौसम मौसम परामर्श का पालन करें। उन्होंने कहा कि किसानों को इस परिस्थिति में क्षेत्र के लिए अनुशंसित मध्यम और कम सूखा सहिष्णु किस्मों को बुवाई करनी चाहिए।
किसान अपने एरिया के अनुसार फसल की किस्मों का करे चुनाव
इसके लिए उन्होंने कहा कि किसानों को अपने एरिया के अनुसार धान की प्रजाति पीआर-113, बरनी दीप, सीएसआर-36, सहभागी, आईआर-64, सुशाक सम्राट, नरेंद्र उसर-3, स्वर्ण उप-1,एनडीआर उसर-2008, एनडीआर-97, सरजू-52 का चुनाव करना चाहिए। वहीं ज्वार प्रजाति प्रजाति जेकेएसएच-22, तथा बाजरा की प्रजाति 9444, एमपी-7792, 86एम86, बायो-448, एलकेबीएच-676, जेकेबीएच-26, कावेरी सुपर बॉस और मक्का की प्रजाति डीकेसी-7074, 900 एम गोल्ड, डिकल्व डबल, जेकेएमएच-502, प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए।
वहीं किसानों को दलहनी फसलों के लिए उड़द की प्रजाति पंत-31, पंत-40, शेखर-3, आजाद-3, पीयू-35, प्रसाद, आईपीयू 02-43, टी-9 मूंग की आईपीएम 02-14, आईपीएम 02-3, पंत-5, एचयूएम-1, एचयूएम-12,एचयूएम-16, मेहा, पीडीएम-139, एसएमएल-668, अरहर की प्रजाति बहार, एनडीआर-अरहर-2, एमए-13, एमए-6, यूपीएएस-120, एनडीआर-अरहर-1, यूपीएएस-10, एएल-201, पारस, आईसीपीएल-87 लगानी चाहिए।
तिलहनी फसलों में सोयाबीन की प्रजाति एसएल-525, डीएस 97-12, पीएस 1347, डीएस 98-14, पीएस-1225, एसएल-668, बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए अहिल्या-4, प्रतिष्ठा, जेएस 93-05, मौस-81, जेएस 97-52। वहीं मूंगफली की प्रजाति राज मुंगफली-1, प्रकाश, जीजी-14, जीजी-21, जीजी 37ए, उत्कर्ष, एचएनजी-123, टीपीजी-41, विकास, मल्लिका और तिल की प्रजाति टी-78, शेखर, आरटी-346, जेटीएस-8, तरुण, जवाहर तिल-11, आरटी-346 का चुनाव करना चाहिए। इन फसलों और प्रजातियों की खेती कर के पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित राज्य के अन्य भागों के किसान कम बारिश से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।