उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में 5.10 करोड़ रुपये की लागत से कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) बनाया जा रहा है। इसके लिए राज्य सरकार 90 फीसदी सब्सिडी दे रही है। बाकी 10 फीसदी पूंजी शेयरहोल्डर्स लगा रहे हैं। इस सीएफसी में सेमी ऑटोमैटिक गुड़ फैक्ट्री लगाई जा रही है जिसकी क्षमता 450 क्विंटल प्रतिदिन होगी। इसकी खासियत यह है कि यहां कोई भी किसान अपना गन्ना लाकर गुड़ बनवा सकते हैं और उसे बाजार में बेच सकते हैं। गुड़ बनाने के लिए उन्हें अलग से फैक्ट्री लगाने की जरूरत नहीं है।
मुजफ्फरनगर में यह सीएफसी “एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी)” योजना के तहत बनाया जा रहा है। ओडीओपी के तहत मुजफ्फरनगर जिले को गुड़ उत्पादन के लिए चुना गया है। जिले का पहला सीएफसी जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर सैदपुर कलां में बन रहा है, जहां अगले साल जनवरी से गुड़ उत्पादन शुरू होने की संभावना है।
यह सीफएसी बधाई एग्रीबिजनेस प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड बना रही है। यह एक तरह का एफपीओ (किसान उत्पादक संघ) है। इसके चेयरमैन अरविंद मलिक ने रूरल वॉयस को बताया, “मुजफ्फरनगर जिले के बधाई कलां और सैदपुर कलां गांव सहित आसपास के सात गांवों के 125 किसान बधाई एग्रीबिजनेस के सदस्य हैं। इसके 21 शेयरहोल्डर्स हैं। इस सीएफसी में न सिर्फ गुड़ फैक्ट्री लगाई जा रही है, बल्कि यहां पैकेजिंग, ग्रेडिंग और लैब टेस्टिंग की भी सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। सदस्य किसानों के अलावा कोई भी किसान यहां अपना गन्ना लाकर उससे गुड़ बनवा सकता है और उसकी पैकेजिंग करवा कर अपने ब्रांड नाम से उसे बाजार में बेच सकता है। इसके बदले में किसानों को फीस चुकानी होगी। यह फीस बोर्ड मेंबर्स और जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केंद्र के उपायुक्त द्वारा तय की जाएगी।”
उन्होंने बताया, “इस सीएफसी में केमिकल फ्री गुड़ का उत्पादन किया जाएगा। धीरे-धीरे ऑर्गेनिक गुड़ बनाने पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाएगा। जिले में कुछ किसान ऑर्गेनिक गन्ना उगाते हैं। प्लांट की सफाई के बाद पहले ऑर्गेनिक किसानों को प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसान अपने गुड़ की मार्केटिंग और उसका निर्यात करना चाहते हैं तो इसके लिए हमने अलग से बधाई फूड के नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड कराई है। इसके माध्यम से भी वे अपना गुड़ बेच सकते हैं। जिस तरह से लोग स्वास्थ्य के नजरिये से चीनी को छोड़कर गुड़ खाने पर ध्यान दे रहे हैं उसे देखते हुए गुड़ का बाजार बढ़ने और निर्यात की काफी संभावनाएं हैं।”
मलिक ने बताया, “सीएफसी का संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी हमारी ही होगी, लेकिन शुरुआत के साढ़े चार साल तक राज्य सरकार जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केंद्र के जरिये इसकी निगरानी करेगी। उसके बाद इसे हमें सौंप दिया जाएगा। इसके जरिये होने वाली आमदनी में से संचालन और रखरखाव खर्च के बाद जो मुनाफा होगा उसे शेयरधारकों में बांटा जाएगा। किसी भी शेयरधारक को 5 फीसदी से ज्यादा शेयर नहीं दिया गया है।”
“एक जिला एक उत्पाद” योजना के तहत सीएफसी विकसित करने की घोषणा वर्ष 2018 में की गई थी। इसके तहत सीएफसी की स्थापना, संचालन एवं रखरखाव की जिम्मेदारी एस.पी.वी. (स्पेशल परपस व्हीकल) को दी जाती है। स्वयं सहायता समूह, सहकारी संस्थाएं, स्वयं सेवी संस्थाएं, प्रोड्यूसर कंपनी, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, लिमिटेड कंपनी या लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनर एस.पी.वी. हो सकते हैं। एस.पी.वी. की शर्तों के तहत किसी भी संस्था में न्यूनतम 20 सदस्य होने चाहिए और कुल सदस्यों में से न्यूनतम दो-तिहाई सदस्य ओडीओपी उत्पाद से संबंधित होने चाहिए।
संस्था रजिस्टर्ड होनी चाहिए और संस्था के किसी भी सदस्य के पास संस्था के 10 फीसदी से अधिक शेयर नहीं होने चाहिए। सीएफसी की स्थापना के लिए अधिकतम 15 करोड़ रुपये तक की परियोजनाएं लगाई जा सकती हैं। इसमें 90 फीसदी राशि सरकार देती है। 15 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाएं भी लगाई जा सकती है लेकिन ऐसी परियोजनाओं में 12.75 करोड़ रुपये या परियोजना लागत में से जमीन की लागत कम करने के बाद शेष बची लागत में से, जो भी कम हो, वह सरकार देगी। एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत सीएफसी की स्थापना के लिए विस्तृत जानकारी जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केंद्र से हासिल की जा सकती है।