हरियाणा में धान बीज के लिए क्यों मची मारामारी, कालाबाजारी के आरोप

हरियाणा में धान की हाईब्रिड किस्म सवा 7501 और सवा 7301 के बीजों के लिए मारामारी हो रही है। किसान तपती धूप में लंबी लाइनों में लगने को मजबूर हैं फिर भी पर्याप्त बीज नहीं मिल पा रहा है। आखिरी सरकार किसानों को यह बीज आसानी से उपलब्ध क्यों नहीं करवा पा रही है?

किसानों को कभी फसल बेचने के लिए तो कभी खाद-बीज खरीदने के लिए लंबी लाइनों में लगना पड़ता है। अब हरियाणा में धान की हाईब्रिड किस्म सवा 7501 और सवा 7301 के बीजों के लिए मारामारी हो रही है। गेहूं की कटाई के बाद किसान धान बुवाई की तैयारी में जुटे हैं लेकिन धान के बीज के लिए किसानों को भीषण गर्मी में लंबी लाइनों में लगना पड़ रहा है या फिर कई गुना अधिक दाम चुकाने को मजबूर हैं। 

हरियाणा के कैथल जिले के किसान अशोक दनौदा ने रूरल वॉयस को बताया कि धान की जिस 7501 किस्म के बीज के लिए लंबी लाइनें लग रही हैं वो एक प्राइवेट कंपनी का बीज है। इसे किसानों ने पिछले साल आजमाया था। इससे एक हेक्टेअर में करीब 8-10 टन तक पैदावार हुई जो प्रचलित किस्मों के मुकाबले काफी अधिक है। इसलिए इस बार ज्यादा से ज्यादा किसान यह बीज खरीदना चाहते हैं। हालत यह है कि बीज की दुकानों पर सुबह से ही किसानों की लंबी लाइनें लग जाती हैं। 1715 रुपये की तीन किलो बीज की थैली ब्लैक में साढ़े तीन हजार रुपये तक बिकने के आरोप लग रहे हैं।  

आईसीएआर के एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने रूरल वॉयस को बताया कि 7501 किस्म से पहले धान की पूसा 44 वैराएटी भी करीब 10 टन प्रति हेक्टेअर तक पैदावार देती थी। लेकिन लंबी अवधि में पकने और पानी की अधिक खपत के कारण पूसा 44 किस्म को प्रतिबंधित कर दिया गया है। प्रतिबंध के पहले पूसा 44 पंजाब में सबसे अधिक क्षेत्र में बोई जाने वाले धान की किस्म बन गई थी। उनके मुताबिक धान की विभिन्न किस्मों के बीजों का रेट 250 से 350 रुपये प्रति किलोग्राम होता है। यही नहीं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) तो बासमती धान के बीज की कीमत सिर्फ 100 रुपये किलो ही लेता है, जबकि 7501 किस्म का बीज 572 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।    

पूसा 44 पर प्रतिबंध के कारण भी धान की 7501 किस्म के बीज के लिए मारामारी अधिक है। जबकि धान की अन्य किस्में आमतौर पर सात से साढ़े सात टन तक पैदावार देती हैं। ऐसे में अधिक से अधिक किसान 7501 किस्म का बीज खरीदना चाहते हैं। लेकिन मांग के मुकाबले डीलरों के पास सप्लाई कम है। किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने बताया कि धान के बीज को लेकर किसान बेहद परेशान हैं और कई गुना अधिक दाम पर बीज खरीदने को मजबूर हैं। लेकिन सरकार इस बारे में कुछ नहीं कर रही है। 

इनेलो के नेता अभय सिंह चौटाला कैथल में धान के बीज की कालाबाजारी की सूचना मिलने पर किसानों के बीच पहुंचे और समस्या को लेकर अधिकारियों से बात की। उन्होंने कहा कि प्रदेश का किसान यह बात जान चुका है की कौन किसानों का हितैषी है और किसकी गारंटी में दम है।

धान के बीज की किल्लत की समस्या कुरुक्षेत्र, कैथल और यमुनानगर जिलों में सबसे अधिक है। किसानों को आधार कार्ड दिखाने पर तीन किलो बीज की सिर्फ एक थैली ही दी जा रही है जबकि एक थैली से एक एकड़ की पनीरी (पौध) भी तैयार नहीं होती। ऐसे में किसानों को तपती धूप में कई बार लाइनों में लगना पड़ रहा है। दिन भर लाइनों में लगकर बड़ी मुश्किल से बीज मिलता है और वह भी पूरा नहीं मिलता। बीज की कालाबाजारी रोकने के लिए कृषि विभाग ने कुछ ही विक्रेताओं को बीज बेचने के लिए अधिकृत किया है। लेकिन ब्लैक में कई गुना महंगे दामों पर बीज बिकने की बातें सुनने में आ रही हैं। 

कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार किसानों को धान के बीज से वंचित कर रही है। किसान, महिलाएं और युवा भीषण गर्मी में घंटों लाइनों में लगे रहते हैं फिर भी उन्हें धान का बीज नहीं मिल पा रहा है। पुलिस के पहरे के बीच एक किसान को आधार कार्ड दिखाने पर बीज की तीन किलो की एक थैली ही दी जा रही है। यह परेशानी कैथल जिले के किसान पिछले 10 दिनों से झेल रहे हैं। लेकिन भाजपा सरकार को किसानों के हितों से कोई सरोकार नहीं है। 

स्थिति यह है कि सुबह से ही बीज की दुकानों पर किसानों की भीड़ लग जाती है। व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस के जवान तैनात किए गए हैं। साथ ही कृषि विभाग के अधिकारियों की ड्यूटी भी लगाई गई है। लेकिन प्राइवेट कंपनी का बीज होने की वजह से कृषि विभाग के अधिकारी ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। बीज विक्रेता डिमांड ज्यादा और सप्लाई कम होने की बात कह रहे हैं। लेकिन सवाल है कि सरकार किसानों को यह बीज आसानी से उपलब्ध क्यों नहीं करवा पा रही है। असल में यह मुद्दा बीजों पर मोनोपोली और किसानों के बीज अधिकार से भी जुड़ा है। 

किसान अशोक दनौदा का कहना है कि इस संकट के चलते बाजार में नकली बीज की बिक्री की भी आशंका बढ़ गई है। वहीं सवाल यह भी उठता है कि निजी कंपनियों का अगर इस तरह बीज पर अधिक कब्जा हो जाएगा तो वह किसानों के लिए मुश्किल भरे दिन ला सकता है। हालांकि राज्य सरकार के कृषि विभाग के अधिकारी किसानों से अनुरोध कर रहे हैं कि किसी एक किस्म पर अधिक जोर देने की बजाय अन्य किस्मों पर भी विचार करें।