पराली जलाने वाले किसानों के मुकदमे न लड़ना असंवैधानिक: भारतीय किसान संघ

भारतीय किसान संघ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की पैरवी न करने के निर्णय की कड़ी निंदा की है। संघ का कहना है कि जो लोग किसानों का विरोध कर रहे हैं, उन्हें किसानों द्वारा उगाए गए अन्न को भी खाना बंद कर देना चाहिए।

भारतीय किसान संघ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की पैरवी न करने के निर्णय की कड़ी निंदा की है। भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने इसे अत्यंत दुखद, एकपक्षीय और निंदनीय बताया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय न्याय और मानवता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

भारतीय किसान संघ की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, मिश्र ने कहा कि भारत की संवैधानिक न्याय व्यवस्था में आतंकवादियों तक को न्याय पाने का अधिकार दिया गया है और उनके मुकदमों के लिए वकील उपलब्ध कराए जाते हैं लेकिन देश के किसानों को न्याय पाने के अधिकार से वंचित करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने बार एसोसिएशन के निर्णय को असंवेदनशील और अमानवीय करार दिया है।

मिश्र ने कहा कि जो लोग किसानों का विरोध कर रहे हैं, उन्हें किसानों द्वारा उगाए गए अन्न को भी खाना बंद कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह निर्णय किसानों को प्रताड़ित करने और उन्हें आंदोलन की ओर धकेलने का प्रयास है, जिससे देश के अन्न उत्पादन और स्थिरता पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।  

थर्मल पावर प्लांट से हो रहा सबसे ज्यादा प्रदूषण  

भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख राघवेंद्र सिंह पटेल ने कहा कि देश में सबसे अधिक प्रदूषण औद्योगिक स्रोतों से होता है, जो लगभग 51 फीसदी है। इसके बाद वाहनों से 27 फीसदी, फसल अवशेष जलाने से 17 फीसदी और अन्य स्रोतों से 5 फीसदी प्रदूषण होता है। उन्होंने कहा कि सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की रिपोर्ट के अनुसार, थर्मल पावर प्लांट पराली जलाने की तुलना में 16 गुना अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। दिल्ली-एनसीआर में थर्मल पावर प्लांट्स 89 लाख टन पराली जलाने से निकलने वाले 17.8 किलोटन प्रदूषण की तुलना में 281 किलोटन सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। भारत वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जक है, जो वैश्विक मानवजनित उत्सर्जन का 20 फीसदी से अधिक है। यह समस्या मुख्य रूप से देश के कोयला-आधारित ऊर्जा क्षेत्र के कारण है।  

पराली जलाने पर जुर्माना, थर्मल प्लांट पर पाबंदी नहीं

राघवेंद्र सिंह पटेल ने कहा कि रिपोर्ट में बताया गया है कि पराली जलाने से प्रदूषण में मौसमी बढ़ोतरी होती है जबकि थर्मल पावर प्लांट पूरे साल प्रदूषण का स्थायी स्रोत बने रहते हैं। इसके बावजूद थर्मल पावर प्लांट्स को नियमों में ढील दी जाती है जबकि पराली जलाने पर भारी जुर्माना लगाया जाता है। 

भारतीय किसान संघ का कहना है कि पिछले 50 वर्षों से कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विभागों ने प्रचारित किया कि फसल अवशेष जलाना आवश्यक है, क्योंकि इसमें छिपे कीट और खरपतवार अगली फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यदि इस प्रथा में बदलाव किया गया है, तो किसानों को प्रशिक्षित करना, संसाधन उपलब्ध कराना और पराली निस्तारण के लिए यंत्र प्रदान करना सरकार और शोध संस्थानों की जिम्मेदारी है। इसके लिए किसानों को दोषी ठहराना पूरी तरह से अनुचित है।