हिमाचल प्रदेश में मानसून की रफ्तार धीमी पड़ गई है। जिससे खेती-बागवानी के कार्य प्रभावित हो रहे हैं। कम बारिश होने से खरीफ की मक्का, धान समेत अन्य फसलों की बुवाई में दोरी हो रही है। साथ ही सेब की पैदावार पर भी असर पड़ा है। हिमाचल में इस बार मानसून की एंट्री भले ही समय पर हुई हो, लेकिन अभी तक प्रदेश में 33 फीसदी कम बारिश हुई है। मौसम विभाग के मुताबिक, हिमाचल में 19 जुलाई तक 146 मीमी बारिश होनी चाहिए थी। लेकिन अब तक प्रदेश में सिर्फ 99 फीसदी बारिश हुई है, जो सामान्य से 33 फीसदी कम है।
हिमाचल के सभी जिलों में अब तक की बारिश सामान्य से कम है। सबसे कम बारिश लाहौल स्पीति जिले में हुई है, जो सामान्य से 88 कम है। इसी तरह, बिलासपुर में 27 फीसदी, चंबा में 38 फीसदी, हमीरपुर में 30 फीसदी, कांगड़ा में 2 फीसदी, किन्नौर में 40 फीसदी, कुल्लू में 37 फीसदी, मंडी में 1 फीसदी, शिमला में 11 फीसदी, सिरमौर में 59 फीसदी, सोलन में 41 फीसदी और ऊना में 44 फीसदी कम बारिश हुई है।
हिमाचल प्रदेश फल, सब्जी एवं फूल उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने रूरल वॉयस को बताया कि हिमाचल प्रदेश की आधे से ज्यादा आबादी कृषि और बागवानी पर निर्भर है। प्रदेश में फल, सब्जियों समेत कई फसलें उगाईं जाती हैं। जिसके लिए किसान बारिश के पानी पर निर्भर रहते हैं। लेकिन, समय पर बारिश नहीं होने से बागवानी और खेती दोनों प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि इस बार हिमाचल में सेब की फसल कम बारिश से प्रभावित हुई है। कम बारिश से सेब के आकार और रंग पर असर पड़ा है। वहीं, प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में खरीफ फसलों की बुवाई में भी देरी हुई है।
मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के निदेशक सुरेंद्र पॉल ने बताया कि बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाओं के कमजोर पड़ने से हिमाचल में कम बारिश हो रही है। अब तक हिमाचल में जितनी भी बारिश हुई है, वह अरब सागर से आने वाली हवाओं के कारण हुई है। उन्होंने कहा कि इस बार पश्चिम विक्षोभ भी ज्यादा सक्रिय नहीं है, जिस वजह से हिमाचल में कमजोर मानसून की स्थिति बनी हुई है। हालांकि, बंगाल की खाड़ी अब सक्रिय हो रही है, जिससे आने वाले दिनों में अच्छी बारिश होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि जुलाई के अंत या फिर अगस्त के पहले हफ्ते तक प्रदेश में बारिश का दौर शुरू हो जाएगा।