केंद्र सरकार के तीन नये कृषि कानूनों खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के तीसरे महीने में प्रवेश करने के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार ने लगातार तीसरे साल गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। रविवार देर शाम मिली सूचना के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना मूल्य पिछले पेराई सीजन के बराबर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। पेराई सत्र 2020-21 में भी सामान्य प्रजाति के गन्ने का भाव 315 रुपये प्रति क्विंटल, अगेती प्रजाति के गन्ने का भाव 325 रुपये प्रति क्विटंल और अस्वीकृत प्रजाति के गन्ने का भाव 310 रुपये प्रति क्विंटल रहेगा। यह लगातार तीसरा साल है जब गन्ने का एसएपी नहीं बढ़ाया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि चालू सीजन में भी गन्ने का दाम पिछले साल के बराबर रखने का फैसला मंत्रिमंडल ने लिया है, जिसकी अधिसूचना जल्दी ही जारी कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की प्राथमिकता इस समय ज्यादा से ज्यादा गन्ना भुगतान कराने की है। कोरोना संकट के बावजूद हमने चीनी मिलें चलवाई गईं। पहले जहां 18 हजार करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा जाता था, अब करीब 36 हजार करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा जा रहा है। दाम नहीं बढ़ाने पर किसानों की नाराजगी के सवाल पर उक्त सूत्र का कहना है कि किसान भी इस बात को समझते हैं कि कोरोना के काल में चीनी मिलें चलना और गन्ना मूल्य का भुगतान होना अहम है। साथ ही हमने घटतौली पर भी अंकुश लगाया है। उनका कहना है कि चालू सीजन में पिछले साल के एसएपी के आधार पर भुगतान हो रहा है और बकाया ज्यादा नहीं है।
साल 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद भारतीय जनता पार्टी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2017-18 के पेराई सत्र में गन्ने के दाम में 10 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी करते हुए अस्वीकृत, सामान्य और अगेती प्रजाति के गन्ने का दाम 310, 315 और 325 रुपये प्रति क्वविंटल तय किया था। इसे बाद 2018-19, 2019-20 और 2020-21 में गन्ने के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। इसे लेकर गन्ना किसानों में काफी नाराजगी है। पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन के फैलने के पीछे गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी न होना और उसकी घोषणा में देरी एक प्रमुख वजह रही है।
इस बारे में चीनी उद्योग के साथ रुरल वॉयस ने बात की तो राज्य में चीनी मिलों के संगठन यूपीइस्मा के पदाधिकारियों ने केवल यह कहा कि हम सरकार के आधिकारिक आदेश का इंतजार कर रहे हैं। उसके बाद ही हम कोई बयान दे सकते हैं।
गन्ना किसानों में नाराजगी
किसान आंदोलन में जोर पकड़ रहे गन्ना किसानों के मुद्दे को देखते हुए इस साल गन्ना मूल्य मेंबढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन पेराई सत्र शुरू होने के चार महीने बाद घोषित भाव से किसानों को निराशा ही हाथ लगी है। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि यह सरकार की हठधर्मिता और किसान विरोधी रवैये का प्रमाण है कि इतने बड़े आंदोलन के बावजूद गन्ने का दाम नहीं बढ़ा है। इस मुद्दे पर आंदोलन तेज किया जाएगा।
चार महीने देरी से फैसला, नतीजा जीरो
हर साल गन्ना पेराई सीजन की शुरुआत अक्टूबर में होती है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य तय नहीं किया था। जिन पर्चियों के आधार पर किसान चीनी मिलों को गन्ना बेच रहे हैं, उन पर भाव की जगह शून्य लिखा है। यह मुद्दा किसान आंदोलन में भी खूब उठ रहा है। किसान नेता यह सवाल भी उठा रहे हैं कि जब गन्ना मूल्य में कोई इजाफा नहीं करना था तो घोषणा में चार महीने की देरी क्यों की गई। साथ ही गन्ना मूल्य को लेकर फैसला होने में भी देरी का रिकार्ड बन गया है। इसके पहले अखिलेश यादव सरकार में गन्ना का एसएपी जनवरी के तीसरे सप्ताह में घोषित किया गया था जो इस साल के पहले अभी तक का गन्ना एसएपी निर्धारण में सबसे देरी से किया गया फैसला था।
गन्ने दाम बढ़ाने में मायावती का मुकाबला नहीं
माना जा रहा है कि योगी सरकार अगले वर्ष चुनावी साल में गन्ने का दाम बढ़ाएगी। अखिलेश यादव की सरकार में भी पहले और आखिरी साल में गन्ने का दाम बढ़ाया गया था। हालांकि, अखिलेश यादव के समय गन्ना मूल्य में कुल 65 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई थी।
गन्ने का दाम बढ़ाने के मामले में यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का रिकॉर्ड सपा और भाजपा से बेहतर है। मायावती के कार्यकाल में गन्ना मूल्य में कुल 115 रुपये क्विटंल की बढ़ोतरी हुई थी।