मध्य प्रदेश सहकारिता विभाग ने कृषक उत्पादक सहकारी संगठन (एफपीओ) स्थापित करने लिए जो नियम तय किये हैं उनके तहत राज्य में सहकारी क्षेत्र में एफपीओ स्थापित करना आसान नहीं रह गया है। भूमि के मालिकाना हक की शर्त और महिलाओं की एकतिहाई भागीदारी के साथ यह शर्त पूरा करना मुश्किल हो गया है। सहकारिता विभाग द्वारा दिसंबर और फरवरी में जारी सर्कुलर में इन शर्तों का उल्लेख है। जिसमें सदस्य के पास कम से कम एक एकड़ कृषि भूमि होना अनिवार्य है। इन शर्तों के चलते राज्य में सहकारिता क्षेत्र में एफपीओ गठित करने की व्यवहारिकता पर ही सवाल उठने लगे हैं। देश में और मध्य प्रदेश में महिलाओं के पास कृषि भूमि के मालिकाना हक के स्तर को देखते हुए एकतिहाई महिलाओं के सदस्य होने के नियम को पूरा करना लगभग असंभव है। इसके चलते केंद्र सरकार की किसानों की आय में बढ़ोतरी के लिए एफपीओ स्थापित करने की महत्वाकांक्षी योजना केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अपने गृह राज्य में ही पिछड़ सकती है। केंद्र सरकार ने दस हजार एफपीओ स्थापित करने लक्ष्य रखा है और उसके लिए केंद्रीय बजट में इक्विटी ग्रांट के लिए प्रावधान किया गया है।
राज्य सरकार के सहकारिता विभाग द्वारा 15 दिसंबर, 2020 और 12 फरवरी, 2021 को जारी सर्कुलरों के जरिये यह नियम लागू किये गये हैं। इनके अनुसार अलग-अलग परिवारों के 21 किसानों द्वारा एफपीओ गठित करने प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इसके बाद कलस्टर का अध्ययन सीबीबीओ द्वारा किया जाएगा और सीबीबीओ की नियुक्ति क्रियान्वयन एजेंसियों एजेंसियों नाबार्ड, एसएफएसी और एनसीडीसी द्वारा की जाएगी। इसके आकलन करने के बाद ही एफपीओ का गठन होगा और जिसमें 300 सदस्यों का होना जरूरी है। एफपीओ स्थापित करने वाले एक समूह से जुड़े लोगों ने रुरल वॉयस को बताया कि कुछ नियमों को तो पूरा करना संभव है। लेकिन इसके साथ ही एक मुश्किल शर्त जोड़ी गई है। जिसमें कहा गया है कि एफपीओ में 33 फीसदी महिला सदस्यों के पास कम से कम एक एकड़ भूमि का मालिकाना हक होना चाहिए। इस शर्त को पूरा किये बिना एफपीओ के लिए राज्य के सहकारी विभाग के ऑनलाइन पोर्टल पर एफपीओ का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकता है। देश में महिलाओं के पास भूमि के मालिकाना हक का स्तर काफी कम है। अधिकांश राज्यों में भूमि का मालिकाना हक पुरुषों के पास है।
इसके साथ ही एफपीओ के सदस्यों को एक एकड़ कृषि भूमि के मालिका हक के कागजात पोर्टल पर अपलोड करने हैं। ऐसे में 33 फीसदी ऐसे महिला सदस्य जिनके पास कम से कम एक एकड़ भूमि का मालिकाना हक होने की शर्त के साथ भूमि के मालिकाना हक के पेपर अपलोड करने की शर्त पूरा करना लगभग असंभव है।
इस मुददे पर रुरल वॉयस के साथ बातचीत में मध्य भारत कंसोर्सियम ऑफ एफपीओ लिमिटेड के सीईओ योगेश कुमार द्विवेदी ने कहा कि हमारी सरकार को राय रही है कि एफपीओ की स्थापना में भूमिहीन बंटाईदार किसानों को भी शामिल किया जाए। इसके साथ ही लघु और सीमांत किसानों की भागीदारी का भी हमने सुझाव दिया है। ऐसा करने से एफपीओ का दायरा बढ़ेगा और ग्रामीण आबादी के बड़े हिस्से को प्रतिनिधित्व मिल सकेगी। कृषि जुड़े कई दूसरे कार्यों में मध्य प्रदेश सरकार बटाईदार किसानों को मान्यता दे रखी है। लेकिन जमीन के मालिकाना हक के नियम से महिलाओं की भागीदारी और बटाईदार किसानों की भागीदारी सीधे प्रभावित हो सकती है क्योंकि अधिकांश महिलाओं के पास कृषि भूमि का मालिकाना हक नहीं होता है।
इंडियास्पेंडडॉटकॉम की फरवरी, 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में महिलाओं के पास भूमि के मालिकाना हक का औसत 0.93 हैक्टेयर है जबकि पुरुषों के मामले में यह 1.18 हैक्टेरयर है। वहीं भूमिके मालिकाना हक में देश का औसत 1.15 हैक्टेयर है। जहां तक कुल मालिकाना हक में महिलाओं की हिस्सेदारी का सवाल है तो उसमें दक्षिण के राज्य कुछ बेहतर स्थिति में हैं। सबसे ऊपर 17.2 फीसदी महिलाओं के पास आंध्र प्रदेश में भूमि का मालिकाना हक है। जबकि मध्य प्रदेश में केवल 8.6 फीसदी महिलाओं के पास भूमि का मालिकाना हक है। उत्तर प्रदेश के मामले में यह स्तर 6.1 फीसदी है और राजस्थान के मामले में 7.1 फीसदी महिलाओं के पास भूमि का मालिकाना हक है। वहीं सबसे कम 0.8 फीसदी महिलाओं के साथ पंजाब निचली पायदान पर है।
इन आंकड़ों के मद्देनजर मध्य प्रदेश में एफपीओ के सदस्यों के रूप में एक तिहाई ऐसी महिला सदस्य जिनके पास कम से कम एक एकड़ भूमि है, मिलना मुश्किल होगा। हो सकता है कि कुछ गांवों में यह संभव हो सके लेकिन पूरे प्रदेश में यह शर्त पूरी नहीं हो सकेगी। राज्य के सहकारिता विभाग के यह नियम सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना के रास्ते में बड़ी बाधा बन सकते हैं।