नरेश नौटियाल, उत्तरकाशी में फलपट्टी के रूप में पहचान रखने वाले नौगांव ब्लॉक में देवलसारी गांव के प्रगतिशील किसान है। उनका खुद का कंडाऊं गांव में 300 पेडों का सेब का बगीचा है, साथ ही नरेश पहाड़ के जैविक कृषि उत्पादों को बड़े शहरों में बाजार मुहैया कराने वाले उद्यमी के रूप में भी पहचान रखते हैं।
नरेश नौटियाल की सेब की फसल अब तैयार है। इस बार रेट भी ठीक मिल रहा है, लेकिन एक समस्या सेब के आकार को लेकर खड़ी हो गई है। नरेश नौटियाल बताते हैं कि इस साल दिसंबर से फरवरी तक बारिश- बर्फबारी नहीं हुई और कूलिंग पीरियड नहीं मिलने के कारण फूल को पनपने का मौका नहीं मिला। उस पर जो फल तैयार हुआ है, उसका भी इस बार साइज छोटा है। इस कारण आढ़ती अच्छा दाम देने से कतरा रहा है।
इसी गांव के कास्तकार अरविंद डोभाल बताते हैं कि बारिश व बर्फबारी न होने से सेब, नाशपाती, आडू, पुलम का उत्पादन 40 से 50 प्रतिशत कम हुआ है। उस पर मार्च अप्रैल में हुई ओलावृष्टि ने रही सही कसर पूरी कर दी। इसी तरह धारी कफनौल के किसान दौलतराम बहुगुणा बताते हैं कि इस बार कम बारिश, बर्फबारी के कारण उनका कुल सेब उत्पादन 100 पेटी का ही हुआ है, पिछली बार पांच सौ पेटी तक होती थी।
इधर, किसानों की इस समस्या को उत्तराखंड सरकार स्वीकार तो कर रही है, लेकिन आपदा के मानकों पर विवाद के कारण सरकार किसानों को मुआवजा नहीं दे पा रही है।
सदन में बोली सरकार, मानक पूरे नहीं
शुक्रवार को गैरसैंण में आयोजित मानसून सत्र के दौरान धनोल्टी से भाजपा विधायक प्रीतम सिंह पंवार ने प्रश्नकाल के दौरान यह सवाल उठाते हुए पूछा कि दिसंबर से फरवरी तक बारिश, बर्फबारी न होने के कारण किसानों की फसल व्यापक तौर पर प्रभावित हुई, सरकार इस नुकसान की भरपाई के लिए क्या किसानों को मुआवजा देगी?
इसके लिखित जवाब में कृषि मंत्री गणेश जोशी ने स्वीकार किया है कि बारिश, बर्फबारी न होने से नकदी फसलों का उत्पादन 25 प्रतिशत तक प्रभावित होने का अनुमान है। मंत्री ने बताया कि कम उत्पादन के बावजूद नुकसान की भरपाई केवल फसल बीमा योजना के तहत आवेदन करने वाले किसानों की ही हो पाएगी।
भाजपा विधायक प्रीतम सिंह पंवार ने दूसरे सवाल के जरिए सरकार से सर्दियों के सीजन में कम बारिश से गेंहू, सरसों, जौ, चना, आलू, मसूर के कम उत्पादन से हुए नुकसान का मुद्दा उठाते हुए पूछा कि सरकार क्या इन सीमांत किसानों को भी मुआवजा देगी ?
इसके जवाब में कृषि मंत्री गणेश जोशी ने मुआवजा देने से साफ इंकार करते हुए कहा कि उक्त नुकसान एसडीआरएफ, एनडीआरएफ के मानक 33 प्रतिशत से कम हुआ है, इसलिए मुआवजा संभव नहीं है।
तो इस तरह सरकार किसानों को हुए नुकसान को स्वीकार करते हुए भी मुआवजा देने को तैयार नहीं है। किसानों को पूरी तरह फसल बीमा योजना के भरोसे छोड़ दिया गया है। जबकि जिन किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत सुरक्षा कवर लिया था, उनको भी मुआवजा लैंड रिकॉर्ड संबंधित विवाद के कारण नहीं मिल पा रहा है, इस पर रूरल वॉयस ने बीते दिनों विस्तृत रिपोर्ट की थी।
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मानकों पर सवाल
कृषि विभाग और बीमा कंपनियों का कहना है कि फसलों को हुए नुकसान का आंकलन मुख्य तौर पर मौसम के आंकड़ों और राजस्व पटवारी की रिपार्ट के आधार पर किया जाता है। लेकिन इस प्रक्रिया पर कई सवाल उठते हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पहाड़ में बारिश, अतिवृष्टि, तूफान जैसे वेदर इवेंट घाटी दर घाटी बदलते जाते हैं। उस पर पहाड़ में मौसम विभाग का नेटवर्क भी बहुत सीमित है। ऐसे में विभाग के आंकड़े ही बहुत पुख्ता नहीं होते हैं, उस पर राजस्व पटवारी की रिपोर्ट भी जमीनी वास्तविकता से दूर हो सकती है। मौसम के आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया और उनकी प्रामाणिकता से किसान अनभिज्ञ रहते हैं।
किसान नरेश नौटियाल के मुताबिक, क्षेत्र में ज्यादातर किसान कम जोत वाले हैं। इस कारण ज्यादातर के पास फसल बीमा का कवर नहीं होता है। ऐसे में उन्हें आपदा मद से ही सहायता की उम्मीद रहती है, लेकिन सरकार हर बार मानक पूरे न होने की बात कहते हुए हाथ खड़े कर देती है। जबकि अब पहाड़ में सर्दियों की बारिश और बर्फबारी का पैर्टन लगातार बदल रहा है। सर्दियों में कम बारिश और बर्फबारी आम हो चुकी है। चरम मौसमीय घटनाएं भी बढ़ रही हैं।