पटना, 25 सितंबर,2022
बिहार में इस साल धान की फसल को बाढ़ और सुखाड़ दोनों का सामना करना पड़ा है। राज्य में लगभग 34 लाख हेक्टयर में धान की खेती की जाती है, लेकिन इस जुलाई में हुई कम बारिश से लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र में धान की खेती नहीं हो पाई। बाद में भी कहीं ज्यादा बारिश हुई तो कहीं बहुत कम। विशेषज्ञों के अनुसार इसका असर धान के उत्पादन पर पड़ना तय है। इसमें 15 से 20 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। कम बारिश के कारण झारखंड में भी धान की फसल प्रभावित हुई है।
भारतीय कृषि अनुंसधान परिषद (आईसीएआर, पूर्वी क्षेत्र, पटना) के डायरेक्टर डॉ आशुतोष उपाध्याय ने रूरल वॉयस से बातचीत में कहा कि धान की समय से बुवाई और रोपाई का पैदावार से गहरा संबध है। इसलिए जुलाई-अगस्त में कम बारिश के कारण बिहार में धान की उपज में लगभग 20 प्रतिशत गिरावट आएगी। अभी जो बारिश हो रही है, उससे पहले हो चुके नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है।
डॉ उपाध्याय ने कहा कि बिहार में मानसून 25 जून के आसपास प्रवेश करता है, लेकिन जुलाई में औसत से 87 प्रतिशत कम बारिश हुई। जुलाई में ही किसान धान की रोपाई करते हैं, लेकिन कम बारिश के कारण रोपाई नहीं हो पाई थी। जून से अगस्त तक पूरे बिहार में 60 प्रतिशत बारिश हुई है। लेकिन, राज्य में कई जिले ऐसे हैं, जहां बारिश का औसत सिर्फ 40 फीसदी रहा है। इस काऱण इस साल बिहार में धान के कुल उत्पादन में लगभग 15 से 20 फीसदी गिरावट की आशंका है।
आईसीएआर पूर्वी क्षेत्र पटना के एक्सटेंशन हेड डॉ उज्ज्वल कुमार ने रूरल वॉयस को बताया कि राज्य सरकार ने इस साल 35.12 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती का लक्ष्य रखा था। अगर सामान्य बारिश होती तो जुलाई में कम से कम 40 प्रतिशत एरिया में धान की रोपाई पूरी हो जाती। लेकिन कम बारिश के काऱण केवल 19 प्रतिशत एरिया में धान की रोपाई हो पाई। बचे हुए एरिया में किसानों ने भले देरी से रोपाई की हो, लेकन इससे पैदावार में गिरावट तय है।
डॉ उज्जवल कुमार ने कहा कि बिहार में धान की खेती का एक बड़ा हिस्सा बारिश पर निर्भर है। जुलाई-अगस्त में कम बारिश के चलते उत्पादन में लगभग 15 से 20 प्रतिशत गिरावट आएगी। धान फसल में पानी के अभाव में पौधों में कल्ले नहीं निकलते हैं। उन्होंने कहा कि दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में धान की कम खेती होने का अनुमान है।
डॉ कुमार ने बताया कि झारखंड में जुलाई-अगस्त में कम बारिश की वजह से ऐसा पहली बार हुआ कि 30 फीसदी जमीन पर ही खेती हुई है। पिछले वर्ष इस समय तक 91 प्रतिशत से अधिक भूमि पर धान की खेती हुई थी। 2020 में 90 प्रतिशत भूमि पर, 2019 में 50 प्रतिशत और 2018 में 71 प्रतिशत भूमि पर धान की खेती की गई थी। इस बार कुछ जगहों पर मक्का, दलहन, तिलहन और मोटे अनाज की खेती की गई है। कुल मिलाकर खरीफ की फसल 37.19 प्रतिशत ही हुई है, जो पिछली बार के मुकाबले 46 फीसदी कम है।
आईसीएआर पूर्वी क्षेत्र पटना के पादप प्रजनन के कृषि वैज्ञानिक डॉ संतोष कुमार ने बताया कि जुलाई अगस्त में जब धान में कल्ले फूटने की अवस्था होती है, उस समय पानी नहीं मिला तो जिस पौध में 10 कल्ले फूटने चाहिए उसमें पांच से सात कल्ले ही निकलेंगे और बालियां भी कम बनेंगी। इस तरह शुरू में ही कम बारिश के चलते धान की फसल में लगभग 15 से 20 प्रतिशत का नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि धान की फसल में कुछ अवस्थाओं में पानी का होना बहुत जरूरी है। उस समय पानी की किल्लत हो गई तो उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि इस समय जो बारिश हो रही है, उससे पुराने नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है।