रूरल वॉयस कॉन्क्लेव में बोले धन सिंह रावत- दो साल में पूरी तरह ऑर्गेनिक राज्य हो जाएगा उत्तराखंड

रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव में रावत ने बताया कि उत्तराखंड में 12 लाख किसानों को बिना ब्याज के एक लाख से पांच लाख रुपये तक का कर्ज दिया गया है। लेकिन किसानों का एक भी कर्ज एनपीए नहीं बना है। राज्य में लागू अन्य पहल के बारे में उन्होंने बताया कि उत्तराखंड ने मॉडल साधन सहकारी समिति बनाई थी, अब हर राज्य में इसे लागू किया जा रहा है।

उत्तराखंड राज्य दो साल में पूरी तरह ऑर्गेनिक हो जाएगा। अभी तक राज्य के 95 में से 62 ब्लॉक ऑर्गेनिक हो चुके हैं। इनमें से 47 ब्लॉक को इसके लिए सर्टिफाई किया जा चुका है। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एंड नेकॉफ अवार्ड्स 2024 में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल उत्तराखंड के सहकारिता और शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने अपने संबोधन में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कोऑपरेटिव के क्षेत्र में राज्य में कई पहल हुई हैं जिन्हें दूसरे राज्य अपना रहे हैं।

रावत ने बताया कि उत्तराखंड में 12 लाख किसानों को बिना ब्याज के एक लाख से पांच लाख रुपये तक का कर्ज दिया गया है। लेकिन किसानों का एक भी कर्ज एनपीए नहीं बना है। राज्य में लागू अन्य पहल के बारे में उन्होंने बताया कि उत्तराखंड ने मॉडल साधन सहकारी समिति बनाई थी, अब हर राज्य में इसे लागू किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विकास तभी होगा जब किसान आगे आएगा। एक तरफ कृषि भूमि घटती जा रही है, मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है और दूसरी तरफ देश की आबादी बढ़ रही है। हमें इस बात का ध्यान रखना जरूरी है। 

कॉन्क्लेव में परिचर्चा के चार सत्र आयोजित किए गए। इनके विषय थे ‘अगली पीढ़ी की कृषि के लिए, अगली पीढ़ी की सहकारी संस्था’, ‘निजी क्षेत्र- किसानों की भागीदारी’, ‘किसानों के लिए सार्वजनिक संस्थान, सहकारिता को आगे बढ़ाने के लिए उसका कॉमर्शियल बनाने की जरूरत’। 

पूर्व कृषि एवं खाद्य सचिव टी. नंद कुमार ने कहा कि वैल्यू चेन में सबसे ज्यादा लाभ उसे होता है जो उपभोक्ता के करीब होता है। यह अमूल की सफलता का भी कारण है। ऐसा क्यों हुआ कि कोऑपरेटिव शुरू में सफल, बाद में विफल होने लगे। किसानों को शेयरधारक की तरह मालिकाना समझना होगा। संस्था को ठीक से चलाना, आवाज उठाना भी किसानों की जिम्मेदारी है। कुछ जिम्मेदारी किसानों को भी लेनी पड़ेगी। पूर्व सचिव ने स्वीकार किया कि हर नीति में सरकार का झुकाव उपभोक्ता की तरफ होता है। 

पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने कहा कि बजट में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर पर 11 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की गई, लेकिन कृषि इन्फा का इसमें जिक्र नहीं। कोई एपीएमसी नहीं जिसमें सरकार ने बड़ा निवेश किया हो। वह निजी क्षेत्र पर निर्भर है। कोशिश थी कि एपीएमसी से बाहर सिर्फ पैन से कारोबार हो सके। लेकिन वह नहीं हो सका। जरूरी है कि आने वाले समय में सरकार भी निवेश करे। आरएंडडी में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। 

पूर्व आईएएस और नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल के पूर्व डायरेक्टर जनरल संदीप कुमार नायक ने कहा कि कोऑपरेटिव सेक्टर देश की जीडीपी में 30 से 32 प्रतिशत योगदान करता है। उन्होंने कहा कि शोध पर कोऑपरेटिव सेक्टर की भूमिका को भी हाइलाइट नहीं किया जाता है। प्रोटीन इनटेक बढ़ाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसका समाधान काफी जटिल है। इसके लिए किसानों को पशुपालन, मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों में प्रेरित करना होगा। 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के पूर्व निदेशक डॉ. ए.के. सिंह ने बताया कि पिछले 10 वर्षों में अलग-अलग फसलों की 2900 किस्में विकसित हुई हैं। इनमें 2600 से ज्यादा जलवायु सहिष्णु हैं। अनाज उत्पादन 33-35 करोड़ टन तक पहुंचा है जिसमें चावल 13 करोड़ टन और गेहूं 11 करोड़ टन से अधिक है। इसमें सरकारी संस्थानों का योगदान है। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र को दलहन, तिलहन में नई किस्में विकसित करनी चाहिए। 

कोऑपरेटिव इलेक्शन अथॉरिटी के चेयरमैन देवेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि सहकारिता मंत्रालय के गठन के चार साल में इसके प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा, उन्हें लगा कि इसकी सचमुच जरूरत थी। उन्होंने कहा कि किसान एमएसपी से बाहर निकलें और फसलों का विविधीकरण करें, अनाज से हट कर बागवानी की तरफ जाएं, पास के बजाय दूर की मंडी में जाने की सोचें। किसानों को सोचना चाहिए कि वे कैसे देश और विदेश के बड़े बाजारों में अपनी उपज कैसे बेच सकें। इसके लिए सुधारों की जरूरत है। 

नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने बताया कि हर साल कोऑपरेटिव के जरिए किसानों को 36,000 करोड़ के आसपास दिया जाता है। कोऑपरेटिव मिलिंग और प्रोडक्ट में इनोवेशन कर रहे हैं। इनका मकसद यही है कि किसान के हाथ में ज्यादा पैसा कैसे जाए। उन्होंने कहा कि देश में 13 करोड़ किसान पैक्स से जुड़े हैं। पैक्स को मल्टीपर्पस बनाने की कोशिश की जा रही है। उन्हें एलपीजी वितरण, जन औषधि केंद्र, पीएम किसान समृद्धि केंद्र जैसी जिम्मेदारियां दी गई हैं। 

एनसीईएल के प्रबंध निदेशक अनुपम कौशिक ने संस्थागत आवश्यकता के बारे में कहा कि 14.1 करोड़ हेक्टेयर शुद्ध खेती की जमीन है, जिन पर 14.7 करोड़ कृषक परिवार खेती करते हैं। कुल कृषि उत्पादन करीब 430 अरब डॉलर का है और संबद्ध को मिलाकर कुल उत्पादन 600 अरब डॉलर है। चीन से तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि वहां खेती की जमीन कम है, इसके बावजूद उनका कृषि उत्पादन 1.4 ट्रिलियन डॉलर का है। उन्होंने कहा कि जहां भी संगठनात्मक प्रयास हुए हैं, वहां प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ी है। इसी परिप्रेक्ष्य में संस्थाओं को देखा जाना चाहिए। 

सवन्ना सीड प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ व एमडी अजय राणा ने कहा कि भारत में करीब 40-42 हजार करोड़ का बीज बिकता है। इसमें गन्ना शामिल नहीं है। विश्व में 5 लाख करोड़ रुपये का बीज कारोबार होता है। भारत का हिस्सा 10 प्रतिशत से भी कम है। चीन के पास क्षेत्रफल कम होने के बावजूद हमसे ढाई गुना आमदनी खेती से करता है, क्योंकि वह बेहतर बीज का प्रयोग करता है।

एमएनसी एग्रोकॉर्प इंडिया ट्रेड सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड के सीओओ राजीव यादव ने कहा कि निजी क्षेत्र हमेशा किसानों के साथ काम करता रहा है। इस साल 14 करोड़ टन चावल उत्पादन का अनुमान है। इसमें से 5.2 करोड़ टन एफसीआई खरीदेगा। 2.1 से 2.2 करोड़ टन निर्यात की संभावना जो निजी क्षेत्र करेगा। निजी कंपनियां वेयरहाउस खड़ी कर रही हैं, किसानों को क्रेडिट सुविधा दे रही हैं ताकि किसानों को यह आजादी मिले कि कब उपज बेचना है। बीज में भी निजी क्षेत्र बड़ी भूमिका निभा रहा है। आरएंडडी, ग्लोबल लिंकेज और उत्पादकता बढ़ाने में भी निजी क्षेत्र बड़े स्तर पर योगदान कर रहा है।

मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (एमएसीएक्स) के वाइस प्रेसिडेंड (बिजनेस डेवलपमेंट) संजय गाखर ने कहा, किसानों के लिए सबसे जरूरी है कि उपज कब और किस भाव पर बेचना है। 2003 में एमसीएक्स के आने से पहले किसानों के पास स्पॉट मार्केट का ही विकल्प होता था। कमोडिटी एक्सचेंज में तीन महीने बाद के भाव भी एक्सचेंज पर दिखते हैं। वे भाव देश भर के खरीदार की तरफ से होते हैं। हालांकि अभी ट्रेडिंग के लिए कमोडिटी की संख्या सीमित है। अभी 104 एग्री और नॉन एग्री कमोडिटी में ट्रेडिंग की अनुमति सेबी ने दे रखी है। 

भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ ने कहा, सरकारी संस्थानों का सबसे बड़ा काम निजी संस्थानों से डिलीवर करवाना है। इस काम में सार्वजनिक संस्थान पूरी तरह विफल रहे हैं। एक्सटेंशन सर्विसेज में नाकामी के कारण किसान गलत मात्रा में उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। केवीके के पास अपना काम चलाने का पैसा नहीं होता, वे किसानों की क्या मदद करेंगे। आईसीएआर और कृषि विश्वविद्यालय 30-40 साल से नई किस्में ला रहे हैं, लेकिन उनमें से कितने प्रतिशत किस्में सफल हो रही हैं। 

सहकार भारती के चीफ पैट्रन डॉ. डीएन ठाकुर ने कहा कि कृषि से जुड़ी नीतियों को लेकर कहा कि क्या किसानों के लिए इतनी नीतियों की जरूरत है? उन्होंने यह भी कहा कि जिस तरह से तीन किसान कानून लाए गए, उसकी क्या जरूरत थी? उन्होंने कहा, न्यूनतम समर्थन मूल्य में न्यूनतम शब्द ही अपने आप में गारंटी है। इसलिए हमने एमएसपी की गारंटी का सुझाव दिया लेकिन नहीं हुआ। नीति बनाने से पहले यह सोचना है कि क्या उस पर अमल संभव है। 

इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉ. आरएस सोढ़ी ने कोऑपरेटिव को सामाजिक के साथ कॉमर्शियल संस्थान बनाने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा, सहकारिता को आगे चलना है तो उसका कॉमर्शियल होना जरूरी है। इंडिया विकसित हो रहा है, लेकिन जहां 68 प्रतिशत भारतीय रहते हैं उस भारत को विकसित होने की जरूरत है। सबका विकास सहकारिता से ही संभव है।

कॉन्क्लेव को पूर्व सांसद और बिहार के मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार केसी त्यागी ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह भारत अंग्रेजों का उपनिवेश था, आज किसान शहरों का उपनिवेश बन कर रह गया है। वह शहरों के लिए उत्पादन करता है। देश के 16 करोड़ किसानों पर 21 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। यानी प्रति किसान 1.3 लाख का कर्ज है। उन्होंने कहा कि किसान कानूनों पर किसानों और वैज्ञानिकों से चर्चा की जानी चाहिए थी। 

इस मौके पर कृषि के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले एक किसान, सहकारी संस्था, सामाजिक संस्था और सार्वजनिक संस्था को सम्मानित किया गया। उत्तराखंड के शिक्षा और सहकारिता मंत्री धन सिंह रावत ने अपने कर कमलों से इन्हें पुरस्कृत किया। किसान श्रेणी में उत्तर प्रदेश के शामली जिले के उमेश कुमार, कोऑपरेटिव श्रेणी में उत्तराखंड कोऑपरेटिव रेशम फेडरेशन लिमिटेड, सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान श्रेणी में एनसीडीसी और सामाजिक क्षेत्र के संस्थान श्रेणी में सुलभ इंटरनेशनल स्कूल ऑफ एक्शन सोशियोलॉजी एंड सोशियोलॉजी ऑफ सैनिटेशन (SISASSS) को सम्मानित किया गया।