कोटक महिंद्रा बैंक के ट्रैक्टर फाइनेंस एवं गोल्ड लोन डिवीजन के प्रेसिडेंट श्रीपद जाधव का कहना है कि उनका बैंक ट्रैक्टर की डोर-स्टेप फाइनेंसिंग को कामयाबी से अंजाम दे रहा है। इसके लिए बैंक का मोबाइल ऐप आधारित प्रॉडक्ट काफी कामयाब रहा है। देश के 570 से अधिक जिलों में उपस्थिति के साथ कोटक महेंद्रा बैंक की देश में ट्रैक्टर फाइनेंस में 11 फीसदी हिस्सेदारी है। चालू वित्त वर्ष में भी उसकी ग्रोथ बेहतर है। चालू साल में अल-नीनो के मजबूत होने से मानसून कमजोर है और उसका ट्रैक्टर की बिक्री पर प्रतिकूल असर पड़ा है। कृषि क्षेत्र के लिए ऋण कारोबार, टर्म लोन और फसल ऋण सहित तमाम मुद्दों पर एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने यह बातें कहीं। रूरल वॉयस के एडिटर इन चीफ हरवीर सिंह के साथ श्रीपद जाधव के इंटरव्यू के मुख्य अंशः
मौजूदा समय में ट्रैक्टर या फार्म मशीनरी लोन की मांग और ग्रोथ की स्थिति क्या है? आगे किस तरह की संभावना है?
ट्रैक्टर फाइनेंस में पिछले 8-10 वर्षों में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल काफी बढ़ा है। 20 साल पहले जब हमने ट्रैक्टर लोन देना शुरू किया था तो एक ट्रैक्टर लोन डिस्बर्स करने में 15 दिन लगते थे, आज हम एक दिन में ट्रैक्टर लोन डिस्बर्स कर देते हैं। एक दिन में ग्राहक का लोन मंजूर हो जाता है और डीलर को पेमेंट हो जाता है। यह सब टेक्नोलॉजी की वजह से हुआ है। कोटक महिंद्रा बैंक ने देश में पहली बार मोबाइल ऐप के जरिये ट्रैक्टर लोन का डिस्बर्समेंट के साथ-साथ कलेक्शन की शुरुआत की थी। पिछले 8 साल से हर कस्टमर के लिए यह प्लेटफार्म चल रहा है। देश में फाइनेंस के जरिये होने वाली ट्रैक्टरों की कुल बिक्री में हमारे बैंक की हिस्सेदारी 11 फीसदी है। फाइनेंस के जरिये ट्रैक्टरों की कुल 10 में से एक की बिक्री के लिए कोटक महिंद्रा बैंक फाइनेंस करता है। ट्रैक्टरों की कुल बिक्री में 98 फीसदी बिक्री लोन के माध्यम से होती है। देश के 570 से ज्यादा जिलों में हमारी मौजूदगी है। ट्रैक्टर लोन की पूरी इंडस्ट्री को हम कवर करते हैं और बैंक के 5,000 लोगों की टीम इसे रिप्रेजेंट करती है। पिछले 20 वर्षों का हमारा जो तजुर्बा है उसके आधार पर हमने अलग-अलग मॉडल बनाए हैं। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि कोटक महिंद्रा बैंक के इस प्रॉडक्ट को मैंने ही चालू किया और आज भी मैं इसे चला रहा हूं। ऐसा बहुत कम होता है कि पिछले 20 साल से आपको एक ही प्रॉडक्ट पर काम करने का मौका मिले।
जहां तक ग्राहकों की चुनौतियों की बात है तो पहले ग्राहकों की सबसे बड़ी समस्या सूचनाओं और डीलर की उपलब्धता की थी। पहले ट्रैक्टर फाइनेंस सिर्फ बैंक की शाखा के जरिये ही होता था। आज हम ग्राहक के घर जाकर फाइनेंस करते हैं। कोई ग्राहक अगर डीलर के पास ट्रैक्टर लेने जाता है तो डीलर उसकी जानकारी फाइनेंसर को फोन से देता है और फाइनेंसर का रिप्रेजेंटेटिव उसके घर पर जाकर ही लोन की सारी प्रक्रिया पूरी कर लेता है। हमारा बैंक यह प्रक्रिया मोबाइल ऐप पर करता है जो पूरी तरह से पेपर लेस है। जनधन खाता खुलने की वजह से और आसानी हो गई है। आज हम न्यूनतम 5 घंटे में लोन डिस्बर्स कर सकते हैं लेकिन हमारा औसत समय एक या दो दिन का है। बैंकों के अलावा दूसरे फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन हैं जिनमें एनबीएफसी भी हैं वे भी इन टेक्नोलॉजी को अपना रहे हैं।
पिछले वित्त वर्ष (2022-23) में आपके ट्रैक्टर फाइनेंस का आकार क्या रहा है?
पिछले वित वर्ष में कोटक महिंद्रा बैंक ने एक लाख से ज्यादा ट्रैक्टर फाइनेंस किए हैं।
चालू वित्त वर्ष में अभी तक आपकी ग्रोथ क्या रही है? किस क्षेत्र से ट्रैक्टर लोन की अधिक मांग है।
अभी हमारी ग्रोथ रेट पिछले साल के मुकाबले 15 फीसदी से ज्यादा है। मानसून के असर के कारण पिछले दो-तीन महीने से ट्रैक्टर फाइनेंस इंडस्ट्री की ग्रोथ थोड़ी धीमी हुई है। पिछले साल के मुकाबले ट्रैक्टर फाइनेंस इंडस्ट्री की ग्रोथ एक फीसदी कम है। ट्रैक्टर की सबसे बड़ी इंडस्ट्री उत्तर प्रदेश है। उसके बाद मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और बाकी के राज्य आते हैं। दक्षिण में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु का बाजार भी काफी बड़ा है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में बारिश की कमी का असर ज्यादा है इसलिए इस साल यहां ग्रोथ नहीं है। जो ग्रोथ हो रही है वह गुजरात, तमिलनाडु और बिहार के कुछ इलाकों में थोड़ी ग्रोथ हो रही है। छत्तीसगढ़ में औसत ग्रोथ चल रहा है। उत्तर प्रदेश की स्थिति पिछले साल के जैसी ही है। उत्तर प्रदेश में करीब 1.20 लाख और मध्य प्रदेश में करीब 1 लाख ट्रैक्टरों की सालाना बिक्री होती है।
इंडस्ट्री की ग्रोथ कम होने के बावजूद आपकी ग्रोथ रेट में तेजी की क्या वजह है?
पिछले 20 साल के तजुर्बे के आधार पर मैं कह सकता हूं कि हमने अपने ग्राहकों को जो सेवाएं दी है उसके आधार पर ग्राहक हमें चुनते हैं। हमारे बहुत से ग्राहक ऐसे हैं जिन्होंने पिछले 20 साल में हमसे दो या ट्रैक्टर फाइनेंस करवाया है। वही हमारे ब्रांड एंबेसडर हैं। ग्रमीण इलाकों में एक किसान दूसरे किसान को बहुत इन्फ्लुएंस करता है। इसकी वजह से बहुत से किसानों की तरफ से इन्क्वायरी हमें मिलती है। इसलिए भी अभी हम ग्रोथ कर पा रहे हैं। मानसून की स्थिति अनुकूल नहीं होने से इस साल निश्चित तौर पर ट्रैक्टर की बिक्री पर असर पड़ेगा। बहुत से किसानों ने ट्रैक्टरों की खरीदारी टाल दी है। अगर सितंबर-अक्टूबर की बारिश मानसून को कवर कर लेती है तो ट्रैक्टर की डिमांड फिर से बढ़ेगी।
लोन रीपेमेंट का ट्रेंड किस तरह का है? क्या किसान आपके पेमेंट शेड्यूल के हिसाब से ठीक से रीपेमेंट कर पा रहे हैं?
जबसे हमने ट्रैक्टर फाइनेंस चालू किया है हमारी यूएसपी रही है कि हमने रीपेमेंट प्लान को फसलों की कटाई से जोड़ रखा है। कौन सा किसान किस फसल की खेती करता है उसके हिसाब से हम उसका रीपेमेंट प्लान तय करते हैं। हमारा भी पेमेंट प्लान मंथली (मासिक) से लेकर क्वार्टरली (तीन महीने में) और हाफ इयरली (छमाही) तक है। कोई किसान अगर सब्जियां उगा रहा है तो वह क्वार्टरली प्लान चुनता है। जिनके अन्य दूसरे फसल हैं वह छमाही प्लान चुनता है। करीब 80 फीसदी किसान छमाही भुगतान का विकल्प चुनते हैं। इसकी ज्यादा डिमांड है। कुछ इलाके हैं जैसे दक्षिण भारत के या बिहार के वहां मंथली और क्वार्टरली पेमेंट प्लान चलता है क्योंकि वहां फसलों की कटाई लगातार होती रहती है। इसलिए वे शॉर्ट टर्म पेमेंट प्लान चुनते हैं। कोविड-19 का असर छोटे बाजारों पर ज्यादा पड़ा लेकिन अभी रीपेमेंट पैटर्न कोविड की तुलना में काफी बेहतर है।
ट्रैक्टर के अलावा जो बाकी फार्म मशीनरी हैं उनके लिए ऋण ग्रोथ कैसी है और इस क्षेत्र में किस तरह की संभावनाएं है?
ट्रैक्टर के अलावा हम हार्वेस्टर या अन्य दूसरी मशीनरी के लिए भी फाइनेंस करते हैं। उसमें हमारा मार्केट शेयर काफी ज्यादा है। इस क्षेत्र में हम पिछले 10 साल से फाइनेंस कर रहे हैं। रही बात डिमांड की तो पिछले तीन साल से जब से मजदूरों की कमी हुई है बहुत से किसान हार्वेस्टर खरीद रहे हैं और उसका एक बिजनेस मॉडल बना रहे हैं। हार्वेस्टर के लिए ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ती है। किसानों के पास अब ज्यादा जमीन रही नहीं। तीन-चार किसान मिलकर हार्वेस्टर खरीदते हैं और एक बिजनेस विकसित कर लेते हैं। यह ट्रेंड पहले सिर्फ दक्षिण भारत में, खासतौर से आंध्र प्रदेश में देखा जाता था। अब यह ट्रेंड उत्तर और पश्चिम भारत में भी आ गया है। इसके अलावा भारत में भी कई कंपनियां हार्वेस्टर बनाने लगी हैं जिनसे हमारा टाईअप है। पूरे देश में हर लोकेशन पर हम हार्वेस्टर फाइनेंस कर रहे हैं।
किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से दिए जाने वाले छोटी अवधि के कर्ज की क्या संभावनाएं है? आपका बैंक कितना कर्ज देता है?
मौजूदा समय में हम पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से छोटी अवधि का कर्ज दे रहे हैं। वहां कोविड का असर शुरुआत में काफी ज्यादा था, खासकर कोविड की दूसरी लहर में बहुत से किसानों को परेशानी हुई लेकिन उसका असर अब बहुत कम हुआ है। मैं यह नहीं कहूंगा कि इस क्षेत्र में बहुत जबरदस्त मांग है। मांग में जो सबसे बड़ी समस्या आ रही है वह यह कि कोविड के असर से नया कर्ज लेने के लिए किसान पुराने फाइनेंसर को ही चुन रहे हैं।
ट्रैक्टर फाइनेंस में आप मोबाइल ऐप के जरिये फाइनेंस करते हैं, क्या छोटी अवधि के कर्ज के लिए भी आपका इस तरह का कोई प्रॉडक्ट है?
जी हां, है लेकिन केसीसी रीपेमेंट के लिए ब्रांच जरूरी होता है क्योंकि बहुत सारे ट्रांजैक्शन होते हैं और उसके लिए डोर टू डोर कलेक्शन नहीं होता है। अभी हम इसमें एक नया प्रयोग कर रहे हैं जिसमें सैटेलाइट इमेजिंग के जरिये असेसमेंट और मॉनिटरिंग का एक ऐप विकसित किया जा रहा है। दो-तीन महीने में इसके शुरू होने की उम्मीद है। अभी हम इस पर अंतिम रूप से काम कर रहे हैं। हम महाराष्ट्र और गुजरात में इसे पर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चला रहे हैं।
एग्री-ड्रोन के लिए भी आप फाइनेंस करते हैं क्या?
अभी तक हमने ड्रोन को फाइनेंस नहीं किया है क्योंकि मौजूदा समय में ड्रोन का इस्तेमाल प्रयोग के स्तर पर ही हो रहा है। जो कंपनियां सेवाएं देती हैं वह ड्रोन का इस्तेमाल कर रही हैं और इसके लिए उनके पास वर्किंग कैपिटल होता है। किसान अभी ड्रोन नहीं खरीद रहे हैं।
क्या कोटक बैंक एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत आने वाले प्रोजेक्ट के लिए भी फाइनेंस करता है?
हम लोग उसके प्रोजेक्ट पर भी फाइनेंस करते हैं। हमारा एक डिवीजन है जो वेयरहाउसिंग और कृषि आधारित इन्फ्रास्ट्रक्टर प्रोजेक्ट को फाइनेंस करता है। इसमें हम अग्रणी हैं।
देश के बहुत सारे किसान अभी भी असंगठित क्षेत्र से कर्ज लेते हैं जो बहुत महंगा होता है। संगठित क्षेत्र तक उनकी पहुंच बहुत कम है। एनबीएफसी भी कई बार काफी महंगा कर्ज देते हैं। आपको क्या लगता है कि किसान अब संगठित क्षेत्र की तरफ कर्ज के लिए ज्यादा जा रहा है और निकट भविष्य में उनके लिए संगठित क्षेत्र में संभावनाएं बढ़ रही हैं?
संगठित क्षेत्र की क्रेडिट ग्रोथ में निश्चित तौर पर वृद्धि हुई है। बैंकों के लिए आरबीआई की जो एक शर्त है कि कुल कर्ज में से 25 फीसदी कर्ज का वितरण अर्द्ध शहरी और ग्रामीण इलाकों खासकर टीयर-3 और टीयर-4 से नीचे में करना अनिवार्य होगा उसकी वजह से उन क्षेत्रों तक हर बैंक की मौजूदगी बढ़ी है। इसकी वजह से असंगठित क्षेत्र से कर्ज लेने का ट्रेंड काफी घट गया है और किसान संगठित क्षेत्र की तरफ आए हैं। सरकार की भी कई सारी योजनाएं हैं जिसमें ब्याज अनुदान मिलता है। इसके अलावा 1.60 लाख रुपये तक के कर्ज के लिए किसी कोलेटरल की जरूरत नहीं होती है। इससे संगठित क्षेत्र को फायदा हो रहा है। आने वाले समय में किसानों के लिए मोबाइल पर कई सारे प्रॉडक्ट उपलब्ध होंगे। अब ज्यादातर किसानों के पास स्मार्टफोन है। किसान बहुत सारे नए प्रयोग करते हैं, पैदावार भी बढ़ाते हैं और कई सारी फैसले उगाते हैं। ऐसा नहीं है कि कोई किसान एक ही फसल उगाएगा। इसी तरह उसके लिए मार्केट की उपलब्धता भी स्मार्टफोन की वजह से बढ़ी है। उसे आसानी से पता चल जाता है कि आसपास की किस मंडी में उसकी फसल का ज्यादा दाम मिल रहा है जिससे वह वहां अपनी फसल बेच सकता है। साथ ही जो अंतरराष्ट्रीय स्थिति है जिसमें हमारा कृषि निर्यात ज्यादा नहीं होता था, आने वाले समय में हमारे किसानों को ऐसे बहुत सारे मौके मिलेंगे जहां उसे निर्यात का मौका मिलेगा। यूक्रेन यूरोप और अन्य देशों का बहुत बड़ा सप्लायर है। उसकी कमी को पूरा करने के लिए इतनी बड़ी जमीन बाकी किसी देश के पास नहीं है। देश के किसानों का भविष्य काफी अच्छा है। सरकार भी नेटवर्क और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे रही है। कोल्ड स्टोरेज यूनिट्स, वेयरहाउस आदि जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर से किसानों को मदद मिलेगी। आने वाले समय में खेती एक व्यापार का रूप लेगा।
आपके लिए ज्यादा प्रतिस्पर्धा कहां से आ रही है, कोऑपरेटिव बैंक, सरकारी बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक या एनबीएफसी से?
मौजूदा समय में बैंक काफी आक्रामक हो गए हैं। बैंकों से ही प्रतिस्पर्धा ज्यादा है।