इंडियन डेयरी एसोसिएशन (आईडीए) के प्रेसीडेंट और अमूल के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. आरएस सोढ़ी ने कहा है कि अकेले डेयरी सेक्टर में अगले 7-8 साल में 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा। इससे इस सेक्टर में 72 लाख नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इसके अलावा, फिशरीज, पॉल्ट्री और लाइवस्टॉक के क्षेत्र में भी निवेश बढ़ेगा। ये क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे हैं। वर्ष 2030 तक खाने के सामान का बाजार तीन गुना से ज्यादा बढ़कर 170 लाख करोड़ रुपये का हो जाएगा। अभी यह बाजार 50 लाख करोड़ रुपये का है। इसलिए किसानों को उन्हीं के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिनकी मांग भविष्य में बढ़ने वाली है।
नई दिल्ली में रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव को संबोधित करते हुए अमूल के पूर्व एमडी ने कहा कि अगले 7-8 वर्षों के दौरान डेयरी सेक्टर में एक लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा। इससे संगठित क्षेत्र में दूध की रोजाना प्रोसेसिंग बढ़कर 24 करोड़ लीटर हो जाएगी। अभी संगठित क्षेत्र में रोजाना 12 करोड़ लीटर दूध की प्रोसेसिंग होती है। जहां तक नौकरियों की बात है तो संगठित क्षेत्र में जब एक लाख लीटर दूध की प्रोसेसिंग होती है, तो उससे 6000 लोगों को रोजगार मिलता है। ऐसे में 12 करोड़ लीटर दूध की प्रोसेसिंग बढ़ेगी तो 72 लाख नौकरियां निकलेंगी।
उन्होंने कहा कि आज दूध का उत्पादन 10 गुना, पॉल्ट्री का 23 गुना, फिशरीज का 12 गुना और फल-सब्जी का 5.5 गुना उत्पादन बढ़ चुका है। 50 साल पहले देश में 2.4 करोड़ टन दूध का उत्पादन होता था, आज यह 23.1 करोड़ टन पर पहुंच गया है। 2047 तक इसके 62.8 करोड़ टन तक पहुंच जाने का अनुमान है। अभी प्रति व्यक्ति दूध की खपत 460 ग्राम है। इसके 2047 में 850 ग्राम तक पहुंचने का अनुमान है।
उन्होंने बताया कि कृषि बाजार अभी लगभग 50 लाख करोड़ रुपये का है। इसमें संगठित क्षेत्र 7 लाख करोड़ रुपये का है। इसमें भी आधा करीब 3.5 लाख करोड़ रुपये का संगठित बाजार दूध का है। वर्ष 2030 तक खाने के समान का बाजार 170 लाख करोड़ रुपए का हो जाएगा। उन्होंने कहा कि दुग्ध क्षेत्र का विकास इसलिए हुआ क्योंकि इसमें किसान और उपभोक्ता दोनों फायदे की स्थिति में थे। आज ब्रांडेड फूड मार्केट महानगरों में ही नहीं, बल्कि टियर 2 और टियर 3 शहरों में भी फैल रहा है, खासकर छोटे पैक में। यहां यह देखने की बात है कि उपभोक्ता अच्छी क्वालिटी के लिए 10 से 20% प्रीमियम तो दे देता है, लेकिन उससे अधिक प्रीमियम होने पर प्रॉडक्ट में वैल्यू तलाशता है।
उन्होंने कहा कि आज ग्राहकों में ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन, फैट और एनीमल सोर्स वाले उत्पादों की मांग बढ़ रही है। इसलिए किसानों को उसका उत्पादन बढ़ाना चाहिए जिसकी बाजार में मांग हो। उन्होंने कहा कि अगर आपके उत्पाद में टेस्ट एवं न्यूट्रिशन होगा और वह बजट में रहेगा, तो उनकी मांग हमेशा बनी रहेगी। यह बाजार की सालों पुरानी परंपरा है जो आज भी कायम है और आने वाले समय में भी रहेगी।
सोढ़ी ने किसानों तथा कृषि के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि क्रॉस ब्रीड की गायें 8.5 लीटर दूध देती हैं, जबकि स्थानीय नस्ल की गाय 3.5 से 4 लीटर दूध देती है। किसान को सोचना होगा कि वह कौन सी नस्ल की गाय रखें।
उन्होंने कहा कि एक और चुनौती सस्टेनेबिलिटी की है। इन दिनों कृषि क्षेत्र में सस्टेनेबिलिटी को लेकर काफी बातें की जा रही हैं। हकीकत यह है कि जलवायु परिवर्तन का इस्तेमाल विकसित देश विकासशील देशों को रोकने के लिए कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सस्टेनेबिलिटी तभी सफल होगी जब व्यक्ति का पेट भरा होगा।