नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा है कि भारत में कृषि में तीन तरह के निवेश होते हैं। पहला निवेश किसान करता है। कृषि में 80 से 82% निवेश किसान खुद या कर्ज लेकर करता है। उसके बाद 15 से 16% निवेश सरकार करती है। यह नहरों के रूप में, गांव में बिजली उपलब्ध कराने के तौर पर, वेयरहाउस बनवाकर आदि के रूप में होता है। तीसरा निवेश कॉरपोरेट सेक्टर का है। अपेक्षा तो की जाती है कि कॉरपोरेट सेक्टर कृषि क्षेत्र में निवेश करेगा लेकिन अभी यह ज्यादा मार्केटिंग तक सीमित है। उत्पादन के क्षेत्र में उनका निवेश सिर्फ 0.5% है। जहां भी कॉरपोरेट सेक्टर ने अच्छा निवेश किया है उसके नतीजे भी बेहतर आए हैं। उसका एक उदाहरण महाराष्ट्र का जलगांव है जहां जैन इरिगेशन कंपनी के क्रियाकलापों की वजह से जलगांव दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा केला उत्पादक क्षेत्र बन गया है। यह कॉरपोरेट सेक्टर के निवेश का बेहतरीन उदाहरण है।
प्रो. रमेश चंद रूरल वॉयस के तीन साल पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस कार्यक्रम के पहले सत्र का विषय था ग्रामीण क्षेत्र में निवेश और जॉब के अवसर। उन्होंने कहा कि निवेश करना और उसमें एफिशिएंसी ना देखना पैसे को बर्बाद करने के समान है। सिंचाई पर बीते वर्षों में हजारों करोड़ रुपए खर्च हुए, लेकिन इसका फायदा नहीं हुआ। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल भी नहीं बढ़ा। पिछले कई वर्षों में देखें तो सिंचित भूमि का क्षेत्रफल 47 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत हुआ है।
खाद्य महंगाई की जगह फूड प्रॉस्पेरिटी इंडेक्स की जरूरतः आर.एस. सोढ़ी
इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसीडेंट डॉ. आर. एस सोढ़ी ने कहा कि जब भी किसान और शहरी उपभोक्ता के बीच किसी एक को चुनने की बारी आती है तो नीति निर्माता अक्सर उपभोक्ता की ओर झुक जाते हैं। शेयर बाजार का सेंसेक्स बढ़ता है तो उसे खुशहाली के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है, लेकिन जब सब्जियों के या खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ते हैं तो उसे खाद्य महंगाई करार दे दिया जाता है। मेरे विचार से इसकी जगह फूड प्रॉस्पेरिटी इंडेक्स आए। इसके लिए माइंडसेट बदलने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि कृषि बाजार अभी लगभग 50 लाख करोड़ रुपए का है। इसमें संगठित क्षेत्र 7 लाख करोड़ रुपए का है। इसमें भी आधा, 3.5 लाख करोड़ रुपए का संगठित बाजार दूध का है। वर्ष 2030 तक खाने के समान का बाजार 170 लाख करोड़ रुपए का हो जाएगा।
दूध के बारे में उन्होंने कहा कि 50 साल पहले देश में 24 मिलियन टन दूध उत्पादन होता था, आज 231 मिलियन टन पहुंच गया है। 2047 तक इसके 628 मिलियन टन तक पहुंच जाने का अनुमान है। अभी प्रति व्यक्ति दूध की की खपत 460 ग्राम है इसके 2047 में 850 ग्राम तक पहुंचाने का अनुमान है।
उन्होंने कहा कि दुग्ध क्षेत्र का विकास इसलिए हुआ क्योंकि इसमें किसान और उपभोक्ता दोनों फायदे की स्थिति में थे। किसान उत्पादन बढ़ाता रहा उसे इस बात की चिंता नहीं थी कि उसका प्रोडक्ट कहां बिकेगा। उपभोक्ता भी खुश था क्योंकि उसे अच्छा ब्रांडेड प्रोडक्ट मिल रहा था। ब्रांडेड फूड मार्केट महानगरों में ही नहीं, बल्कि टियर 2 और टियर 3 शहरों में भी फैल रहा है, खासकर छोटे पैक में। लेकिन यहां यह देखने की बात है कि उपभोक्ता अच्छी क्वालिटी के लिए 10 से 20% प्रीमियम तो दे देता है, लेकिन उससे अधिक प्रीमियम होने पर प्रोडक्ट में वैल्यू तलाशता है।
उन्होंने बताया कि अभी संगठित क्षेत्र में रोजाना 12 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है। अगले 7 वर्षों में यह 24 करोड़ लीटर हो जाएगा। इस तरह देखें तो अगले 7 से 8 वर्षों के दौरान दूध क्षेत्र में एक लाख करोड़ रुपए का निवेश होगा। जहां तक नौकरियों की बात है तो संगठित क्षेत्र में जब एक लाख लीटर दूध का उत्पादन होता है तो उससे 6000 लोगों को काम मिलता है। इस तरह देखें तो 12 करोड़ लीटर दूध उत्पादन बढ़ेगा तो साथ-साथ में 72 लाख नौकरियां निकलेंगी। सोढ़ी ने किसानों तथा कृषि के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि क्रॉस ब्रीड की गायें 8.5 लीटर दूध देती हैं, जबकि स्थानीय नस्ल की गाय 3.5 से 4 लीटर दूध देती है। किसान को सोचना होगा कि कौन सी ब्रीड की गाय रखें।
उन्होंने कहा, एक और चुनौती सस्टेनेबिलिटी की है। उन्होंने कहा कि इन दिनों कृषि क्षेत्र में सस्टेनेबिलिटी को लेकर काफी बातें कहे जा रही हैं। हकीकत तो यह है कि जलवायु परिवर्तन का इस्तेमाल विकसित देश विकासशील देशों को रोकने के लिए कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सस्टेनेबिलिटी तभी सफल होगी जब व्यक्ति का पेट भरा होगा।
गांवों तक अच्छी कनेक्टिविटी की जरूरतः हर्ष भनवाला
एमसीएक्स के चेयरमैन तथा नाबार्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ. हर्ष कुमार भनवाला ने कहा कि आज हम कृषि को सिर्फ कृषि के तौर पर नहीं देख सकते। कृषि को विकसित करने के लिए कई तरह कार्य करने पड़ेंगे। 2047 तक कृषि को अच्छी सड़कें, बिजली, मार्केट, डिजिटल प्लेटफॉर्म और इंटरनेट की जरूरत है। आज युवा इंटरनेट पर हर चीज का आर्डर देते हैं। इंटरनेट के माध्यम से फूड कंजप्शन बढ़ रहा है। यह ऐसा क्षेत्र है जो रोजगार दे सकता है। अनेक ग्रामीण इलाकों में कनेक्टिविटी की समस्या है। गांव तक अच्छी कनेक्टिविटी हो गांव तक इंटरव्यू 2047 तक विकसित भारत का सपना पूरा होगा।
जमीन के कंसोलिडेशन का मसला उठाते हुए उन्होंने कहा कि अभी 30% किसान ऐसे हैं जिनका खेत अपना नहीं है, वे क्यों निवेश करेंगे। इस स्थिति को बदलने के लिए उन्होंने राज्यों को कानून बनाने का सुझाव दिया ताकि खेत के मालिक का हक बना रहे और किसान को भी फायदा हो। उन्होंने कहा कि कृषि में मशीनरी का प्रयोग बढ़ा है। किसान छोटा है जबकि नई मशीनरी महंगी है। मैकेनाइज्ड सर्विस में रोजगार के अवसर हैं। इसमें कॉरपोरेट को निवेश करना चाहिए। आने वाले दिनों में श्रमिकों की कमी पड़ेगी इसलिए मैकेनाइज्ड सर्विस में मांग बढ़ने की पूरी संभावना है।
उन्होंने यह भी कहा कि हमें पर्यावरण को बचाना भी जरूरी है। आज शहरों को तो छोड़िए गांव में भी सांस लेना मुश्किल हो जाता है। कृषि से जुड़े पर्यावरण में निवेश करना जरूरी है। जब निवेश होगा तो अवसर भी मिलेंगे। उन्होंने कहा कि कृषि के बारे में एटीट्यूड, ओरिएंटेशन और संस्थानों में बदलाव लाने की जरूरत है।
एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने की जरूरतः रोशन लाल टमक
डीसीएम श्रीराम लिमिटेड में शुगर बिजनेस के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर एवं सीईओ रोशन लाल टामक ने कहा कि बिना मार्केट लिंकेज के विकास नहीं हो सकता है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि डेयरी क्षेत्र ऐसा है जिसमें बिना बिचौलिए के प्रभावी विकास हुआ है। उन्होंने कृषि के पूरे इकोसिस्टम के समर्थन की बात कही। उन्होंने कहा कि इसमें पॉलिसी का भी बड़ा योगदान है। जैसे अभी एथेनॉल ब्लेंडिंग 12% तक पहुंची है तो यह नीतिगत समर्थन से ही संभव हो सका है।
निवेश के बारे में उन्होंने कहा कि कंप्रेस्ड बायो सीएनजी में चीनी उद्योग बड़ी भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि सतत कार्यक्रम सरकार का बहुत ही प्रोग्रेसिव कार्यक्रम है। अगर सरकार की तरफ से ऑफटेक की गारंटी हो तो बायोमास आधारित सीबीजी प्लांट चीनी उद्योग लगा सकता है। उन्होंने मॉडल लैंड सीलिंग एक्ट को देश की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि अगर आज युवाओं को हम कृषि से नहीं जोड़ेंगे तो आने वाले दिनों में कौन खेती करेगा। उन्होंने कृषि से जुड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम का समर्थन किया और कहा कि इससे अनेक संभावनाएं हैं। एगटेक यानी एग्रीकल्चरल टेक्नोलॉजी तथा एग्रीगेशन जैसे क्षेत्रों में काफी संभावना है। उन्होंने कहा कि एगटेक को कैसे मदद दी जाए हमें यह देखना होगा।