कृषि और ग्रामीण विकास के बजट में कटौती ठीक नहीं, रूरल वॉयस-सॉक्रेटस के ‘बजट चर्चा’ में किसानों और राजनेताओं ने जताई नाराजगी

बसपा के लोकसभा सांसद दानिश अली, लोकसभा में बीआरएस (भारतीय राष्ट्र समिति- पूर्व में टीआरएस) के नेता नम्मा नागेश्वर राव और जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि 2023-24 के बजट में किसानों के लिए और ज्यादा प्रावधान किए जाने चाहिए थे। जो प्रावधान किए गए हैं वे कम हैं। दानिश अली ने उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की दुर्दशा के मुद्दे को उठाया और सरकार पर किसानों से ज्यादा बिचौलियों की मदद करने का आरोप लगाया। नागेश्वर राव ने कृषि क्षेत्र के लिए और अधिक आवंटन की मांग की।

बजट चर्चा कार्यक्रम में हिस्सा लेते जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी (बायें से दूसरे), बसपा सांसद दानिश अली (दायें से दूसरे) और बीआरएस के लोकसभा में नेता नम्मा नागेश्वर राव (दायें)।

वित्त वर्ष 2023-24 के आम बजट में कृषि क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए किए गए प्रावधानों पर आयोजित एकदिवसीय चर्चा में देश भर के किसानों ने फसलों को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय मुद्दों को उठाया और खेती को सुविधाजनक बनाने के लिए सरकार से कृषि क्षेत्र को और अधिक समर्थन देने की मांग की। किसानों से सीधे संवाद, कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए किए जाने वाले उपायों को लेकर उनकी आपसी चर्चा और बजट को लेकर उनकी समझ और जरूरतों पर केंद्रित “बजट चर्चा” कार्यक्रम का आयोजन रूरल वॉयस और सॉक्रेटस फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से किया था।

एक महीने से ज्यादा समय के लंबे अवकाश के बाद संसद के बजट सत्र के दूसरे हिस्से की शुरुआत सोमवार से हो चुकी है। यह सत्र 6 अप्रैल तक चलेगा। इस दौरान 2023-24 के प्रस्तावित बजट पर चर्चा होगी और संसद के दोनों सदन इसे पारित करेंगे। इसे देखते हुए ही इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित 'बजट चर्चा' में देश भर से आए किसानों के अलावा राजनीति से जुड़े लोगों और सांसदों ने भी हिस्सा लिया। इस चर्चा में ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कृषि के डिजिटलीकरण और प्राकृतिक खेती जैसे विषयों पर सभी ने अपने-अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन सॉक्रेटस के अध्यक्ष प्रचुर गोयल ने किया।

बसपा के लोकसभा सांसद दानिश अली, लोकसभा में बीआरएस (भारतीय राष्ट्र समिति- पूर्व में टीआरएस) के नेता नम्मा नागेश्वर राव और जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि 2023-24 के बजट में किसानों के लिए और ज्यादा प्रावधान किए जाने चाहिए थे। जो प्रावधान किए गए हैं वे कम हैं। दानिश अली ने उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की दुर्दशा के मुद्दे को उठाया और सरकार पर किसानों से ज्यादा बिचौलियों की मदद करने का आरोप लगाया।

नागेश्वर राव ने कृषि क्षेत्र के लिए और अधिक आवंटन की मांग की, जबकि केसी त्यागी ने लंबे समय से किसानों द्वारा की जा रही मांगों का जिक्र करते हुए कहा कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मनरेगा के बजट में की गई कटौती से ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और रोजगार घटेंगे।

भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही ने कहा कि कृषि को अधिक लाभकारी बनाने के लिए सरकार की मूल्य नीति की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। भारतीय आर्थिक सेवा के पूर्व अधिकारी, ग्रामीण विकास मंत्रालय के पूर्व डायरेक्टर, कृषि क्षेत्र से संबंधित किताबों के जानेमाने लेखक और करपा फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. माहिपाल ने कार्यक्रम की शुरुआत में कृषि और ग्रामीण भारत के लिए बजट में किए गए प्रावधानों के प्रमुख पहलुओं पर अपने विचार रखें। सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कृषि और ग्रामीण विकास के बजटीय आवंटन को लगातार कम किया जा रहा है और इसे दूसरे क्षेत्रों में डायवर्ट किया जा रहा है। उन्होंने किसानों से इसके खिलाफ आवाज उठाने का आह्वान करते हुए कहा कि ऐसा नहीं किया गया तो एक दिन आएगा जब ग्रामीण विकास मंत्रालय या पंचायती राज मंत्रालय बंद हो जाएगा या फिर एक छोटा सा विभाग बन कर रह जाएगा।

ओडिशा की आदिवासी महिला किसान अनीमा मिंज ने चर्चा के दौरान कहा कि मोटे अनाज, जिसे सरकार 'श्री अन्न' के रूप में बढ़ावा दे रही है, के मार्केटिंग और प्रसंस्करण में सुधार की आवश्यकता है।  मिंज रागी की खेती करती हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि रागी की खेती से उनकी आमदनी परंपरागत फसलों की खेती की तुलना में बढ़ी है। राज्य सरकार के मिलेट मिशन से उन्हें फायदा हो रहा है।

रूरल वॉयस के एडिटर इन-चीफ हरवीर सिंह ने उर्वरक पर सब्सिडी में कटौती और फसल बीमा योजना के लिए बजट में किए गए कम आवंटन पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक अनिश्चितताओं के खिलाफ किसानों के लिए बीमा योजना ही एकमात्र ढाल है। वर्तमान में इसका प्रीमियम बढ़ गया है। गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्य यह कहते हुए योजना से बाहर हो गए हैं कि वे अपनी खुद की योजना तैयार कर रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को सभी किसानों के लिए इसे लागू करना चाहिए और इसके पूरे प्रीमियम का भुगतान करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों की कीमत काफी कम हो गई है जिससे विदेशी मुद्रा के रूप में सरकार को काफी बचत हो रही है। इस राशि का इस्तेमाल प्रीमियम भुगतान में किया जा सकता है।

हरियाणा के किसान श्याम सिंह मान ने बेहतर गुणवत्ता वाले उर्वरक की आपूर्ति करने की मांग करते हुए दावा किया कि एनएफएल के उत्पाद गुणवत्ता के मुताबिक नहीं हैं। विदिशा (मध्य प्रदेश) के किसान दीपक पांडे ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा कि सरकार की ओर से जो उर्वरक दिए जा रहे हैं वो खराब गुणवत्ता के हैं। एक अन्य किसान ने अफसोस जताते हुए कहा कि सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के प्रति गंभीर नहीं है। उन्होंने मांग की कि जैविक खेती को और अधिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। वहीं एक अन्य किसान ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि जब सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कर रही है तो जीएम (आनुवंशिक रूप से संशोधित) बीजों को बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है।

हिमाचल प्रदेश की सेब किसान त्वारको देवी जैविक रूप से मटर और अन्य बागवानी फसलों की भी खेती करती हैं। उनकी शिकायत थी की कि जैविक खेती को सरकार का समर्थन नहीं मिलने से किसानों को जैविक और गैर-जैविक फसलों की समान कीमत बाजार में मिलती है। मटर की जैविक खेती से उन्हें पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल रहा है। कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे कई किसानों ने जैविक उर्वरकों के महत्व का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन, नीम की पत्ती और दही का उपयोग जैविक खाद बनाने के लिए किया जा सकता है।

इस एकदिवसीय कार्यक्रम में बागवानी, डेयरी और मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए किए गए बजटीय प्रावधानों पर भी गहन चर्चा हुई। प्रतिभागियों ने कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने में एफपीओ की भूमिका पर भी प्रकाश डाला।