कृषि क्षेत्र की स्थिति सुधारने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार को तेलंगाना मॉडल पर फोकस करना चाहिए। तेलंगाना ने न केवल बजट में कृषि क्षेत्र के लिए प्रावधान को बढ़ाकर 22 फीसदी कर दिया है, बल्कि किसानों को 24 घंटे बिजली देने, 80 फीसदी खेतों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने और किसानों की पूंजी की समस्या दूर करने के लिए रायथु बंधु योजना के तहत आर्थिक मदद देने जैसे कदम उठाए हैं। भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस) के लोकसभा में नेता नम्मा नागेश्वर राव ने बजट पर आयोजित एक चर्चा कार्यक्रम में यह बात कही है।
रूरल वॉयस और सॉक्रेटस फाउंडेशन द्वारा नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मंगलवार को आयोजित ‘बजट चर्चा’ कार्यक्रम में नागेश्वर राव ने कहा कि तेलंगाना की केसीआर सरकार ने वन भूमि को छोड़कर 80 फीसदी खेतिहर जमीन को सिंचाई की सुविधा मुहैया करा दी है। इसके लिए सरकार ने अब तक 1 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं और गोदावरी नदी के जल स्तर को बढ़ाकर हर खेत को पानी उपलब्ध कराया है। इसके अलावा सिंचाई के लिए किसानों को 24 घंटे बिजली दी जा रही है। साथ ही रायथु योजना के तहत प्रति एकड़ सालाना 10 हजार रुपये की आर्थिक सहायता किसानों को दी जाती है। यह सहायता रबी और खरीफ सीजन में दो किस्तों में दी जाती है।
नागेश्वर राव ने कहा कि राज्य सरकार ने कृषि के बजट को बढ़ाकर 22 फीसदी कर दिया है, जबकि केंद्रीय बजट में कृषि के लिए सिर्फ 6 फीसदी ही प्रावधान किया जाता है। राज्य का कृषि बजट करीब 60 हजार करोड़ रुपये का है जिसमें से 26,885 करोड़ रुपये सिंचाई का बजट है। सिंचाई की सुविधा बढ़ने से तेलंगाना ने धान उत्पादन में पंजाब को पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पाम की खेती को बढ़ावा दे रही है। अभी 5 लाख हेक्टेयर में पाम की खेती हो रही है जिसे बढ़ाकर 20 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा गया है। इससे न सिर्फ घरेलू स्तर पर पाम ऑयल का उत्पादन बढ़ेगा बल्कि पाम ऑयल के आयात पर होने वाले विदेशी मुद्रा के भारी भरकम खर्च में भी बचत होगी।
जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने बजट चर्चा कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे देशभर के किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि 2023-24 के केंद्रीय बजट में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के लिए किए गए प्रावधानों में कटौती किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं है। ग्रामीण बजट में 13 फीसदी की कटौती की गई है। मनरेगा के बजट में की गई भारी भरकम कटौती ग्रामीण इलाकों में रोजगार की दिक्कत पैदा करेगी। उन्होंने आंकड़ों के हवाले से बताया कि मनरेगा लागू होने से पहले देश के करीब 110 जिले नक्सलवाद प्रभावित थे। मनरेगा लागू होने के बाद 58 जिलों में नक्सलवाद खत्म हो गया क्योंकि वहां के लोगों को निश्चित रोजगार मिलने लगा। इसी तरह, कृषि के बजट में की गई कटौती से किसानों की मुश्किलें और बढ़ेंगी। यह सिलसिला लगातार जारी है। उन्होंने बताया कि 1952 में बजट में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 35 फीसदी और उद्योगों की 15 फीसदी थी। यह अब घटकर करीब 6.5 फीसदी पर आ गई है।
उन्होंने याद दिलाया कि प्रधानमंत्री ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था जो उनके अन्य जुमलों की तरह ही एक और जुमला साबित हुआ। जबकि हकीकत यह है कि 2018-19 के आकंड़ों के मुताबिक, प्रति किसान परिवार औसत आमदनी सिर्फ 10 हजार रुपये है। जबकि प्रति किसान परिवार औसत कर्ज 7,400 रुपये का है। देश के 52 फीसदी किसान परिवार कर्ज में डूबे हुए हैं। उन्होंने मांग की कि जिस तरह उद्योगपतियों के लाखों-करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिए जाते हैं उसी तरह किसानों के कर्ज भी माफ किए जाने चाहिए ताकि उन्हें कर्ज से मुक्ति मिले और थोड़ी राहत मिले।
बसपा सांसद दानिश अली ने इस दौरान प्याज और आलू किसानों की बदहाली का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अन्य सामानों के दाम उसे बेचने वाला तय करता है, जबकि कृषि उपज ही एकमात्र ऐसी चीज है जिसकी कीमत उसे खरीदने वाला तय करता है। उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब फसल की कटाई शुरू हो जाती है और चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति होने लगती है तब तक किसानों को पता ही नहीं होता है कि उनकी फसल का भाव क्या मिलेगा। इसके अलावा उनका भुगतान भी काफी देर से होता है। मौजूदा सरकार ने छह साल में अब तक गन्ने की कीमत दो बार में सिर्फ 35 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाई है जबकि इसकी तुलना में लागत में काफी बढ़ोतरी हो गई है। यही हाल इस बार आलू किसानों का हो रहा है। किसान तो देश को बंपर पैदावार दे रहे हैं लेकिन उन्हें उनकी उपज की सही कीमत नहीं मिल पा रही है। उन्होंने आवारा पशुओं की समस्या भी उठाते हुए कहा कि किसानों को इनसे छुटकारा दिलाने के सरकार को उपाय करने चाहिए।