एनिमल फीड क्षेत्र की अग्रणी कंपनी अनमोल फीड्स के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित सरावगी का मानना है कि कृषि क्षेत्र में फीड आधारित मछली पालन आज सबसे अधिक मुनाफे का धंधा है। इसमें निवेश पर छह महीने में 60 फीसदी तक रिटर्न मिलता है। उनका मानना है कि राज्य सरकारों को सब्सिडी देकर या अन्य तरीके से किसानों के बीच इसे प्रमोट करना चाहिए। उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी ने जनवरी में दुनिया का पहला फीड ईकॉमर्स पोर्टल शुरू किया है। इसमें किसानों को मैटेरियल के साथ टेक्निकल सेवा भी मुहैया कराई जाती है। सरावगी ने रूरल वॉयस के संपादक हरवीर सिंह से बातचीत में फीड इंडस्ट्री की चुनौतियों और संभावनाओं के बारे में भी बताया। बातचीत के मुख्य अंशः
-आप एनिमल फीड सेगमेंट में मार्केट लीडर हैं। अभी आपका टर्नओवर कितना है? आप कौन-कौन सा फीड बनाते हैं?
वित्त वर्ष 2021-22 में हमारा टर्नओवर 600 करोड़ रुपए था। हम मुख्य रूप से ब्रॉयलर का फीड बनाते हैं, जिसे चिकन फीड भी कहते हैं। इसके अलावा फ्लोटिंग फिश फीड, श्रिंप (झींगा) फीड, लेयर फीड और कैटल (मवेशी) फीड बनाते हैं। हाल में पिग फार्मिंग का चलन बढ़ा है, तो हमने पिग फीड बनाने का काम शुरू किया है। श्रिंप फीड की घरेलू बाजार में खपत नहीं है, इसका निर्यात किया जाता है।
-आपके कुल उत्पादन में किस फीड का कितना हिस्सा है?
हमारे कुल बिजनेस में ब्रॉयलर फीड का हिस्सा करीब 65 फीसदी है। बाकी में दूसरी फीड हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर में वर्ष 2000 में एनिमल फीड बनाने का बिजनेस शुरू किया। वर्ष 2006 तक हम सिर्फ ब्रॉयलर फीड बनाते रहे। करीब एक दर्जन राज्यों में बेचते थे। 2006 में कैटल फीड लांच किया। फिर, 2017 में कोलकाता में फ्लोटिंग फिश फीड का प्लांट लगाया। अभी बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और हरियाणा में कंपनी के फीड बनाने के आठ प्लांट हैं। सभी प्लांट की कुल उत्पादन क्षमता 1,300 टन प्रतिदिन है जिनकी 20 राज्यों में सप्लाई की जाती है। हमारा फिश फीड या पोल्ट्री फीड रेडी टू यूज होता है। कैटल फीड में हरा चारा या भूसा आदि मिलाना पड़ता है।
-इस सेक्टर में ग्रोथ की कैसी संभावना दिख रही है?
फिश फीड में ग्रोथ की बहुत संभावना है, लेकिन वास्तव में ग्रोथ हो नहीं रही। चार साल से बिहार का मार्केट 20 हजार टन का, उत्तर प्रदेश का 30 से 35 हजार टन का, पश्चिम बंगाल का 70 से 80 हजार टन का है। यह बढ़ नहीं रहा। मछली पालन के लिए पैसा चाहिए और किसान के पास पैसा नहीं है।
-आगे ग्रोथ के लिए आपकी क्या रणनीति है?
हमने दुनिया का पहला फीड ईकॉमर्स पोर्टल शुरू किया है। अभी हर महीने लगभग 100 ट्रांजैक्शन हो रहे हैं। हम किसान को मैटेरियल के साथ टेक्निकल सर्विस भी देते हैं। प्लांट या कंपनी के डिपो से 100 किमी की दूरी तक हम सप्लाई करते हैं। यह किसानों को भी सस्ता पड़ता है।
-इस बिजनेस में मुनाफा कैसा है?
मेरे विचार से आज फीड आधारित मछली पालन सबसे अधिक मुनाफे का धंधा है। इसमें निवेश पर रिटर्न छह महीने में 60 फीसदी है। राज्य सरकारों को सब्सिडी देकर या अन्य तरीके से किसानों के बीच इसे प्रमोट करना चाहिए।
-प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में 60 फीसदी तक सब्सिडी मिलती तो है।
यह सेक्टर जितना बड़ा है, उसे देखते हुए योजना बहुत छोटी है। जो सब्सिडी मिलती भी है वह तालाब और बाजार विकसित करने जैसे कामों के लिए है। फीड प्लांट के लिए सिर्फ छह करोड़ रुपए का प्रावधान है, जबकि आज फ्लोटिंग फिश फीड प्लांट लगाने का खर्च कम से कम 30 करोड़ रुपए है।
-अभी इंडस्ट्री के सामने क्या चुनौतियां हैं?
कॉन्ट्रैक्ट ब्रॉयलर फार्मिंग बढ़ने से स्वतंत्र रूप से फीड बनाने वालों के लिए समस्या आ रही है। दूसरी समस्या कच्चे माल की है जिससे पूरी इंडस्ट्री जूझ रही है। दो प्रमुख कमोडिटी मक्का और सोयाबीन की कीमत बहुत ज्यादा है। निर्यात नहीं होने के कारण सोयाबीन घरेलू बाजार में उपलब्ध है। एक महीने पहले तक पिछली फसल का आधा ही बाजार में आया था। नई फसल अक्टूबर में आ जाएगी। फिर भी अभी दाम बहुत ज्यादा हैं। इसी तरह, मक्के की नई फसल आए एक महीना हो गया है। ऐसा पहली बार हुआ कि नई फसल आने के बाद भी दाम कम नहीं हुए हैं। फैक्टरी तक पहुंच कीमत लगभग 24 रुपए किलो है। मार्च में भी यही कीमत थी। यह हमारे लिए चिंता की बात है।
-कीमतों में कितना अंतर है? इस बार तो सोयाबीन एमएसपी से काफी ऊपर बिका।
हमने अक्टूबर 2020 तक 28 से 35 रुपए किलो के औसत भाव पर सोयामील खरीदा। आज औसत कीमत 65 रुपए है। आयातित सोयामील ड्यूटी चुकाने के बाद भी सस्ता पड़ता है।
-कच्चा माल महंगा होने पर आपने फीड के दाम कितने बढ़ाए?
पूरी लागत वृद्धि का पूरा बोझ किसानों पर नहीं डाल सकते। हमें अपना मार्जिन कम करना पड़ता है। मान लीजिए कच्चा माल 50 फीसदी महंगा हुआ तो हमने प्रोडक्ट के दाम 40-45 फीसदी ही बढ़ाए।
-दाम बढ़ने से क्या बिक्री पर भी असर पड़ा है?
बिल्कुल पड़ा है। पहले जितने काम के लिए किसानों को 100 रुपए खर्च करने पड़ते थे अब उसके लिए 170 रुपए देने पड़ते हैं। दाम बढ़ने से हमारा टर्नओवर तो बढ़ा लेकिन मात्रा के लिहाज से बिक्री उतनी ही है।
-2022-23 में कैसी संभावना देखते हैं?
हम एक्वा फीड पर फोकस कर रहे हैं। हमें फिश और श्रिंप फीड में अच्छे नतीजे मिल रहे हैं। हम बांग्लादेश, नेपाल और भूटान को इनका निर्यात भी कर रहे हैं। दो साल तक महामारी के कारण बिजनेस में कोई ग्रोथ नहीं थी। मौजूदा वित्त वर्ष में अच्छी ग्रोथ मिलने की उम्मीद है। इस साल और लॉकडाउन नहीं हुआ तो हम महामारी से पहले की तुलना में काफी बेहतर स्थिति में होंगे।