शिवराज सिंह चौहान के साथ क्या लौटेगा कृषि मंत्रालय का रुतबा

पिछले दस साल में कृषि मंत्रालय के साथ किसान कल्याण का नाम तो जुड़ा लेकिन खेती-किसानी से जुड़े कई महत्वपूर्ण विभागों को अलग कर उसका आकार काफी छोटा कर दिया। नीतिगत निर्णयों में कृषि मंत्रालय का रुतबा घटा। अब उम्मीद है कि शिवराज सिंह चौहान अपने राजनीतिक कद और अनुभव का उपयोग करते हुए कृषि मंत्रालय को एक बार फिर दूसरे अहम मंत्रालयों के समकक्ष खड़ा करने में कामयाब होंगे।  

लोकसभा चुनावों के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी को अगर सबसे बड़ा सबक दिया है तो वह है कि ग्रामीण आबादी और किसान अपने हालात से बहुत खुश नहीं हैं। ग्रामीण भारत में भाजपा की लोकप्रियता घटी है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार बनी एनडीए गठबंधन सरकार के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती है इस धारणा को बदलना है। इसके लिए एक मजबूत कृषि मंत्री की दरकार थी जिसे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का जिम्मा देकर पूरा करने की कोशिश की गई है। कृषि के साथ ही उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रालय का जिम्मा भी दिया गया है।

पिछले दस साल में कृषि मंत्रालय के साथ किसान कल्याण का नाम तो जुड़ा लेकिन खेती-किसानी से जुड़े कई महत्वपूर्ण विभागों को अलग कर उसका आकार काफी छोटा कर दिया। खाद्य, उर्वरक और खाद्य प्रसंस्करण जैसे मंत्रालय कृषि से पहले ही अलग थे जबकि कृषि निर्यात से जुड़े फैसले वाणिज्य मंत्रालय लेता है। इससे केंद्रीय कैबिनेट में कृषि मंत्रालय की अहमियत कम होती गई और सरकार के नीतिगत निर्णयों में कृषि मंत्री का रुतबा घटा है। 

देश की सबसे बड़ी आबादी को रोजगार मुहैया कराने के साथ ही कृषि क्षेत्र राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के रूप में एक रणनीतिक अहमियत रखता है। वहीं महंगाई पर काबू पाने के लिए भी कृषि मंत्रालय की अहम भूमिका है। लेकिन कई बार किसानों के हितों, उपभोक्ताओं के हितों और राजकोषीय स्थिति के बीच विरोधाभास की स्थिति बन जाती है। ऐसे में अगर कृषि मंत्रालय राजनीतिक रूप से कद्दावर नेता के पास नहीं रहेगा तो किसानों और कृषि से जुड़े फैसले उस तरह नहीं हो सकेंगे जो वित्त, वाणिज्य और सड़क परिवहन जैसे मंत्रालयों में होते रहे हैं। 

कृषि मंत्रालय की राजनीतिक अहमियत के चलते डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी. सुब्रमण्यम, जगजीवनराम, चौधरी देवीलाल, प्रकाश सिंह बादल, बलराम जाखड़, अजित सिंह और शरद पवार जैसे कद्दावर राजनीतिज्ञों के पास यह मंत्रालय रहा है। हम जिस हरित क्रांति और श्वेत क्रांति के फायदे देख रहे हैं, वह इन बड़े नेताओं के बिना संभव नहीं था जिन्होंने बड़े फैसलों के लिए दूसरे मंत्रालय का मुंह नहीं ताका। यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहली 13 माह की सरकार में उन्होंने खुद अपने पास कृषि मंत्रालय रखा था और उनके साथ कृषि राज्य मंत्री सोमपाल शास्त्री थे। उसी कार्यकाल में पहली कृषि नीति लाई गई थी और फसल बीमा योजना पर काम शुरू हुआ था।

जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले दो कार्यकाल की बात है तो उसमें कृषि मंत्रालय में कोई कद्दावर नेता मंत्री के रूप में नहीं रहा है। यही नहीं इस दौरान कृषि मंत्रालय से मत्स्य पालन, डेयरी और पशुपालन विभाग और सहकारिता विभाग को अलग कर नए मंत्रालय बनाए गये। जबकि सही मायने में कृषि मंत्रालय एक सुपर मंत्रालय होना चाहिए जिसमें कृषि के साथ खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, उर्वरक मंत्रालय, डेयरी और पशुपालन मंत्रालय इसका हिस्सा होने चाहिए। गौरतलब है की यूपीए सरकार में कृषि और खाद्य मंत्रालय शरद पवार के पास थे। ऐसे में कृषि और किसानों से जुड़े फैसलों में बेहतर समन्वय संभव है।

अब शिवराज सिंह चौहान को कृषि मंत्रालय का जिम्मा दिया गया है तो उससे लगता है कि कृषि मंत्रालय का रुतबा लौट सकेगा। वह 17 साल मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे हैं और भाजपा की मौजूदा टीम के सबसे वरिष्ठ नेताओं की श्रेणी में आते हैं। मध्य प्रदेश में उनके कार्यकाल में कृषि क्षेत्र ने ऊंची विकास दर हासिल की। वहां पिछले दस साल 2014-15 से 2023-24 के दौरान कृषि क्षेत्र की औसत विकास दर 6.5 फीसदी रही जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 3.7 फीसदी रही। इसी दौरान मध्यप्रदेश उत्तर प्रदेश के बाद देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य भी बना। साल 2019-20 में मध्य प्रदेश ने गेहूं की सरकारी खऱीद में पंजाब को भी पीछे छोड़ दिया था।

यह सब शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में हुआ। राज्य में सिंचाई सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए हुए निवेश और मार्केटिंग इनफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के चलते यह संभव हुआ। ऐसे में कृषि विकास में शिवराज सिंह चौहान की अपनी साख और अनुभव है जो उनके केंद्र में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री के रूप में काम आएगा। साथ ही सरकार में वह नीतिगत फैसलों को किसानों और कृषि मंत्रालय के पक्ष में प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। वहीं, उनके लिए केंद्र में अपनी भूमिका साबित करने का भी यह एक बड़ा मौका है क्योंकि कृषि मंत्रालय मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों वाला मंत्रालय है।

जहां तक नीतिगत मामलों की बात है तो उनके लिए पहला काम किसानों की आय बढ़ोतरी को केंद्र में रखकर काम करना होगा। फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग कायम है और एमएसपी एक राष्ट्रव्यापी मुद्दा बन चुका है। यह देश भर में किसानों की सबसे बड़ी आकांक्षा बन चुका है।

बड़ी चुनौती कृषि नीतियों के आयात-निर्यात और घरेलू बाजार में प्रतिबंधों से जुड़े फैसले भी हैं जहां पर उनको किसानों के हित में खड़ा होना होगा। पिछले कुछ वर्षों में उपभोक्ता हित अधिक प्रभावी रहे हैं जिसके चलते किसानों को तो नुकसान हुआ ही है, साथ ही दालों ओर खाद्य तेलों के मामले में आयात निर्भरता बढ़ी और आत्मनिर्भरता को झटका लगा है। 

कृषि में निवेश की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। इसके लिए केवल मंत्रालय के बजट के आकार से आकलन नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि उसका अधिकांश हिस्सा सब्सिडी और डायरेक्ट ट्रांसफर में जा रहा है। वहीं सरकार के पास ऐसी कारगर नीति भी नहीं है जो सार्वजनिक निवेश के अलावा निजी निवेश को कृषि में आकर्षित करती हो। यही वजह है कि फसलों की उत्पादकता के मामले में बेहतर वैश्विक रिकार्ड से हम अधिकांश फसलों में पिछड़े हुए हैं। नई टेक्नोलॉजी को लेकर स्थिति अस्पष्ट है। नई टेक्नोलॉजी नए बीजों के विकास और फसलों की सुरक्षा से जुड़ी हैं। ऐसे में शिवराज चौहान के सामने चुनौती होगी इस संबंध में अटके फैसलों पर आगे कैसे बढ़ें।

किसानों की आय के अलावा एक बड़ा चैलेंज क्लाइमेट चेंज है। गरम होते मौसम और एक्ट्रीम वैदर की घटनाओं के चलते भारतीय कृषि पर इसका सीधा प्रभाव दिखने लगा है। यही नहीं किसान भी क्लाइमेंट चेंज की आंच महसूस करने लगे हैं। इसलिए अभी भी बड़ी पहल नहीं हो रही है और न ही इससे निपटने के लिए कोई पुख्ता रणनीति है। आने वाले बरसों में जलवायु के मोर्चे पर मुश्किलें बढ़ेंगी और उससे निपटने के लिए बड़े नीतिगत फैसलों की दरकार है।

इन परिस्थितियों में कृषि मंत्रालय राजनीतिक जोखिम वाला मंत्रालय भी है। अगले कुछ माह में किसानों और कृषि के महत्व वाले तीन राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधान सभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में शिवराज सिंह के सामने पहला राजनीतिक इम्तिहान भी करीब है। उम्मीद है कि वह अपने राजनीतिक कद और अनुभव का उपयोग करते हुए कृषि मंत्रालय को एक बार फिर दूसरे अहम मंत्रालयों के समकक्ष खड़ा करने में कामयाब होंगे।