केंद्र की नई सरकार में शिवराज सिंह चौहान कृषि मंत्री बने हैं, जिनके मुख्यमंत्री काल में मध्य प्रदेश में कृषि की ग्रोथ काफी अच्छी रही है। मेरा मानना है कि कृषि मंत्री को सबसे पहले देश के कृषि उत्पादन के अनुमानों की समीक्षा करनी चाहिए, क्योंकि लगातार रिकॉर्ड उत्पादन के अनुमानों के बीच खाद्यान्न और खाद्य उत्पादों की कीमतें बढ़ रही हैं।
सरकार ने पिछले साल रिकार्ड गेहूं उत्पादन का दावा किया, लेकिन 13 जून, 2023 को गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगा दी। उसके बाद सरकारी अनुमानों में इस साल 11.29 करोड़ टन के साथ गेहूं उत्पादन का एक और रिकार्ड बना, लेकिन सरकार ने 24 जून को फिर गेहूं पर स्टॉक लिमिट लागू कर दी। सवाल यह है कि रिकार्ड उत्पादन और घरेलू बाजार के नियंत्रण के कदम जैसी दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती हैं। बात केवल गेहूं की नहीं, ज्यादातर उत्पादों के मामले में ऐसा हो रहा है।
जीडीपी के पिछले साल (2023-24) के अनुमानों में कृषि क्षेत्र का जीवीए 1.4 फीसदी बढ़ा जबकि कुल अर्थव्यवस्था का जीवीए 7.2 फीसदी बढ़ा है। हालांकि पहले अग्रिम अनुमानों में कृषि का जीवीए 0.7 फीसदी रहा था। एक वर्ग ताजा अनुमानों को इनफ्लेटेड मान रहा है। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद जून में खाद्य महंगाई बढ़ कर 9.36 फीसदी हो गई जो मई में 8.83 फीसदी थी।
हम कृषि उपज के मामले में वाकई सरप्लस हैं या डेफिसिट में, इसे समझने के लिए कुछ बातों पर नजर डालने की जरूरत है। चालू साल के लिए सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और दूसरी अन्य योजनाओं के लिए 590 लाख टन खाद्यान्न का आवंटन किया है। इसमें 184.1 लाख टन गेहूं और 419 लाख टन चावल है। गेहूं की मात्रा कम रखने का साफ मतलब इसकी उपलब्धता कम होना है।
सरकार ने तीसरे अग्रिम अनुमानों में 11.29 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान जताया है, जो रिकार्ड है। लेकिन चालू रबी मार्केटिंग सीजन (2024-25) में सरकारी खरीद में 266 लाख टन गेहूं ही मिला। पिछले साल भी 262 लाख टन की ही सरकारी खरीद हो पाई थी। बाजार में गेहूं की कीमतें 2275 रुपये प्रति क्विटंल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के ऊपर चल रही हैं। देश से गेहूं का निर्यात भी प्रतिबंधित है। केंद्रीय पूल में 1 जून, 2024 को 299.5 लाख टन गेहूं था जो पिछले साल के 313.8 लाख टन से कम है।
यही नहीं 1 अप्रैल, 2024 को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 75.02 लाख टन था। यह 74.6 लाख टन के बफर मानक से मामूली अधिक तो था लेकिन यह 2008 के बाद, 16 साल का सबसे कम स्तर था। पिछले साल सरकार ने रिकार्ड गेहूं उत्पादन के अनुमानों के बीच 13 जून, 2023 को गेहूं पर स्टॉक लिमिट लागू कर दी थी। इस साल भी रिकॉर्ड उत्पादन के दावे के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने के लिए 24 जून को स्टॉक लिमिट लागू कर दी है। कीमतें नियंत्रित करने के लिए अब ओपन सेल स्कीम में 2325 रुपये क्विंटल के भाव पर गेहूं बेचने का फैसला किया है। लगता है सरकार इस हकीकत को समझना नहीं चाहती कि इस साल मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में फसल को नुकसान हुआ है।
दूसरा उदाहरण चना का है। सरकार का अनुमान है कि देश में चना उत्पादन 121 लाख टन है जबकि बाजार का अनुमान 105 लाख टन के आसपास का है। सरकार ने बफर के लिए चना खरीदने की कोशिश की लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी के चलते उसे करीब 45 हजार टन चना ही मिला। पिछले साल सरकार के पास बफर में 37 लाख टन चना था लेकिन दाम नियंत्रित करने के लिए सरकार ने अधिकांश चना बेच दिया। अब उसके पास करीब चार लाख टन चना ही मौजूद है। ऐसे में आस्ट्रेलिया से चना आयात बढ़ गया है। यह स्थिति तब है जब सरकार दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए उठाये जा रहे कदमों को गिनाती नहीं थकती है।
चीनी उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 9.65 लाख टन कम रहा है क्योंकि गन्ना उत्पादन गिर गया था। चीनी निर्यात पर भी रोक है। सरकारी अनुमान के मुताबिक इस साल 13.67 करोड़ टन के साथ चावल उत्पादन 9.5 लाख टन अधिक रहा है। लेकिन दाम बढ़ने पर सरकार ने पहले 20 जुलाई, 2023 को व्हाइट राइस के निर्यात पर रोक लगाई, उसके बाद 25 अगस्त 2023 को सेला चावल पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगा दिया गया था। यही नहीं बासमती निर्यात पर भी 1200 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगा दिया गया था जिसे बाद में घटाकर 850 डॉलर प्रति टन किया गया। इससे पहले 2022-23 में 200 लाख टन से अधिक निर्यात के साथ भारत ने दुनिया के चावल निर्यात बाजार में 40 फीसदी हिस्सेदारी हासिल कर ली थी।
अब सरकार के सामने मुश्किलें कई हैं। दाम कम रखने के लिए घरेलू बाजार नियंत्रित करने के दोहरे राजनीतिक नुकसान भी हैं। जैसा प्याज निर्यात प्रतिबंधित करने से महाराष्ट्र में हुआ। अब प्याज के दाम फिर बढ़ रहे हैं और आने वाले विधानसभा चुनावों तक दाम ऊंचे रहने की संभावना है, क्योंकि प्याज की अगली फसल अब अक्तूबर में ही आएगी।
अधिकांश दालों का उत्पादन घटा है और उनके दाम 30 फीसदी तक बढ़े हैं। खाद्य तेलों की कम कीमतों का दौर भी समाप्त हो गया है। मई में आयात में 45 फीसदी बढ़ोतरी के बावजूद कीमतें छह फीसदी से अधिक बढ़ी हैं जबकि यह बात भी सच है कि देश में सबसे बड़े तिलहन सरसों के किसानों को रबी सीजन में 5650 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर अपनी फसल बेचनी पड़ी।
इस साल मानसून सामान्य है या नहीं उसके लिए पूरा सीजन देखना होगा। लेकिन यह कृषि क्षेत्र को लेकर सरकार की नीतियों और फैसलों की कमजोरी को बार-बार सामने ला रहा है। जब एनएसएसओ का ताजा सर्वे बता रहा है कि देश में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न खपत घट रही है तो रिकार्ड उत्पादन के बावजूद कीमत नियंत्रण के कड़े उपाय करने की नौबत इसलिए आ रही है क्योंकि वास्तविक उत्पादन अनुमानों से मेल नहीं खाता है। कृषि क्षेत्र के लिए नई तकनीक और बड़े नीतिगत फैसलों का इंतजार लंबा होता जा रहा है। उचित नीति के अभाव में सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं जो पहले ही खाद्य महंगाई को काबू करने के लिए जूझ रही है।