आप चाहें या ना चाहें, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रिलायंस जियो और भारती एयरटेल जैसे टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर के पास आज हमारे नागरिकों के जीवन की कुंजी है। यह बात गांवों की तुलना में शहरों के लिए ज्यादा मुफीद है। उनकी सेवाओं के बिना जीवन ठहर जाएगा।
हमारे जीवन में यह महत्वपूर्ण भूमिका निजी क्षेत्र निभा रहा है। ऐसा उस अर्थव्यवस्था में हो रहा है जो अन्य बातों के अलावा बाजार पर ज्यादा निर्भर है। सरकार भी ऐसा कहने में संकोच नहीं करती। वह बिना किसी लाग-लपेट के कहती है कि बिजनेस में सरकार का कोई काम नहीं है। सरकार की अवधारणा तब और पुष्ट हुई जब उसने राष्ट्रीय एयरलाइन एयर इंडिया को टाटा को बेच दिया। टेलीकॉम सेक्टर को सक्सेस स्टोरी के मॉडल के तौर पर दिखाते हुए किसी भी सेक्टर को नहीं छोड़ा गया।
इसलिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने आर्थिक तंगी में फंसी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के लिए 1.64 लाख करोड़ रुपए के बेलआउट पैकेज को मंजूरी दी तो खुशनुमा आश्चर्य का एहसास हुआ। इस सार्वजनिक कंपनी का आधार अब मूलतः ग्रामीण क्षेत्र में रह गया है। बेलआउट पैकेज की घोषणा करते हुए सरकार ने जो विज्ञप्ति जारी की उसकी शुरुआत कुछ इस तरह थी, “टेलीकॉम एक रणनीतिक क्षेत्र है। इस सेक्टर में बीएसएनएल की मौजूदगी बाजार को संतुलित करने का काम करती है।”
सरकार की घोषणा उन लोगों के लिए खुशी की बात है जो ग्रामीण क्षेत्रों में खराब कनेक्टिविटी की शिकायत करते हैं। कोविड-19 संकट के दौरान इसकी जरूरत अधिक महसूस की गई। जब स्कूल-कॉलेज में नियमित पढ़ाई नहीं हो रही थी उस दौरान वही बच्चे ठीक से पढ़ सके जिनके पास ब्रॉडबैंड कनेक्शन या 4जी डाटा कनेक्शन था। उन दिनों इसके अलावा पढ़ाई का और कोई विकल्प भी नहीं था।
यह कोई नीतिगत बदलाव है या सरकार को इस बात का एहसास हुआ है कि सब कुछ निजी क्षेत्र पर नहीं छोड़ा जा सकता है? खासतौर से ग्रामीण क्षेत्र में जहां बिजनेस के नियम वैसे नहीं होते जैसे शहरों में होते हैं। बीएसएनएल को ग्रामीण क्षेत्र में टेलीडेंसिटी सुधारने का जिम्मा दिया गया है। यह सिर्फ वॉयस यानी कॉल के लिए नहीं बल्कि डाटा पैकेज के मामले में भी है जो वॉयस टेलिफोनी की तुलना में अधिक आवश्यक हो गया है। जैसा कि दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने वादा किया है, बीएसएनल को गांवों और छोटे शहरों में 4जी और ब्रॉडबैंड वायर लाइन यानी वाईफाई सुधारने के लिए अलग-अलग मदों में पैसे दिए जाएंगे। माना जा सकता है कि इससे कंपनी प्रोफेशनल और प्रतिस्पर्धी बन सकेगी।
बीएसएनल का पैकेज काफी महत्वाकांक्षी लगता है। ऐसे समय जब दूसरे टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर शहरों में 5जी सेवा देने के लिए ऊंची बोली लगा रहे हैं, देश के हजारों गांव अभी तक 2जी या बहुत हुआ तो 3जी की सुविधा ही ले पा रहे हैं। सरकार ने जो 1.64 लाख करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की है उसके तहत कंपनी को 4जी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे।
उसे 900/1800 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम दिया जाएगा जिसकी कीमत 44993 करोड़ रुपए होगी। इसके बदले कंपनी में सरकार इक्विटी लेगी। विज्ञप्ति के अनुसार, “इक्विटी के जरिए निवेश का मतलब है कि कंपनी के मालिक के तौर पर सरकार पैसे देगी और उस रकम को कंपनी की बैलेंस शीट में कर्ज के तौर पर नहीं माना जाएगा। यह स्पेक्ट्रम मिलने पर बीएसएनल बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकेगी और अपने विशाल नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए हाई स्पीड डाटा उपलब्ध करा सकेगी।” उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार की योजना बिना किसी खास अड़चन के लागू होगी।
बेहतर टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस के जरिए ग्रामीण और दूरदराज इलाकों में सेवाएं देने वाली बीएसएनएल 4जी टेक्नोलॉजी का इंफ्रास्ट्रक्चर भी खड़ा कर सकेगी। सरकार ने पूंजीगत खर्च के लिए 22,471 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।
बेहतर सामंजस्य के लिए भारतनेट और भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड का बीएसएनएल में विलय किया जाएगा। हालांकि सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारतनेट के तहत जो इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया गया है वह राष्ट्रीय संपत्ति होगी, जो सभी टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स को बिना किसी भेदभाव के उपलब्ध होगी। यह ग्रामीण इलाकों के ग्राहकों के लिए अच्छी बात है।
यह घटनाक्रम कितना महत्वपूर्ण है, दूरसंचार रेगुलेटर ट्राई के डाटा से इसका आकलन किया जा सकता है। गांवों में भले ही शहरों की तुलना में अधिक लोग रहते हो लेकिन टेलीडेंसिटी इसके विपरीत है। ट्राई के अनुसार 30 अप्रैल 2022 को देश में 117 करोड़ टेलीफोन ग्राहक थे, जिनमें शहरी क्षेत्र में 65 करोड़ और ग्रामीण क्षेत्र में 52 करोड़ थे। शहरों में टेलीडेंसिटी 135% है जबकि ग्रामीण इलाकों में यह सिर्फ 58% है। वाईफाई के मामले में तो स्थिति और भी खराब है जबकि गवर्नेंस, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं गांवों तक पहुंचाने के लिए यह जरूरी है। देश में कुल 25 करोड़ वाईफाई कनेक्शन हैं जिनमें ग्रामीण इलाकों में सिर्फ दो करोड़ हैं।
ग्रामीण इलाकों में कनेक्टिविटी के मामले में समस्या दोहरी हो जाती है। निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों का एकमात्र मकसद मुनाफा होता है। उनके बिजनेस का आधार सिर्फ ग्राहकों की संख्या नहीं बल्कि प्रति यूजर औसत रेवेन्यू (आरपू) भी होता है। उनके लिए शहरों में आरपू तो 130 से 140 रुपए है जबकि गांवों में यह सिर्फ 50 रुपए है। ये कंपनियां प्रति यूजर औसत रेवेन्यू 200 रुपए तक ले जाना चाहती हैं। ऐसे में वे ग्रामीण इलाकों में निवेश करने में क्यों रुचि दिखाएंगी। इसका बोझ तो बीएसएनल को ही उठाना पड़ेगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह संसाधन की पूरी हकदार है।
(प्रकाश चावला सीनियर इकोनॉमिक जर्नलिस्ट है और आर्थिक नीतियों पर लिखते हैं)