पिछले लेख में हमने वैश्विक खाद्य सुरक्षा में समुद्री खाद्य पदार्थ यानी सीफूड तथा एक्वाकल्चर की अहम भूमिका के बारे में चर्चा की थी। इस सेक्टर को अधिक उत्पादक तथा सक्षम बनाने में टेक्नोलॉजी आधारित समाधानों की आवश्यकता की भी बात की गई थी। साथ ही अफोर्डेबिलिटी और कस्टमाइजेशन जैसी व्यावहारिक चुनौतियों को दूर करने के महत्व को भी रेखांकित किया गया था ताकि जागरूकता बढ़ाई जा सके और इन समाधानों पर अधिक से अधिक लोग अमल कर सकें।
टेक्नोलॉजी आधारित समाधान को अपनाकर और पारदर्शिता तथा क्षमता बढ़ाकर हम इस सेक्टर के आगे बढ़ने की गति को त्वरित सकते हैं। ऐसा सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर नहीं बल्कि पूरे सेक्टर के स्तर पर करने की जरूरत है। हालांकि ऐसा कहना आसान है, करना मुश्किल। हम करीब 2000 साल पुरानी इंडस्ट्री की बात कर रहे हैं। यह सबसे पारंपरिक सेक्टर में एक है जहां डिजिटाइजेशन अभी तक पूरी तरह नहीं पहुंचा है। यहां डिजिटाइजेशन को बढ़ावा देने में कई चुनौतियां हैं, खासकर भौगोलिक विविधता और ग्रामीण तथा तटीय क्षेत्रों में लोगों में टेक्नोलॉजी को अपनाने की अलग-अलग क्षमता को देखते हुए।
एक्वाकल्चर के बारे में होने वाली चर्चाएं अक्सर इंडस्ट्री की खामियों, विस्तार योजनाओं और विकास की रणनीतियों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। लेकिन क्या हमारे पास सही समस्या को पहचानने की व्यवस्था है? सिर्फ डाटा सही जवाब दे सकता है। इसलिए डिजिटाइजेशन लाने की दिशा में पहला कदम उत्पादन और हार्वेस्टिंग के बाद वैल्यू चेन के विभिन्न स्तरों पर डाटा तैयार करना है। समस्या की जड़ को पहचानने तथा यह समझने में कि क्या हम सही मुद्दों पर गौर कर रहे हैं, डाटा आधारित अप्रोच बेहद अहम हो जाता है।
ग्रामीण और तटीय क्षेत्रों से सूचनाएं जुटाने की व्यवस्था तैयार करना और भविष्य में कल्चर डाटा के आंकड़े जुटाने का ऑटोमेटिक तरीका बनाना जरूरी है। इसके लिए किसानों के विशाल नेटवर्क को एनरोल करना एक जटिल कार्य है। चुनौतियों के बावजूद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा एक्वाकल्चर उत्पादक होने के नाते भारत को आगे रहना चाहिए और हर मोर्चे पर अगली क्रांति का नेतृत्व करना चाहिए। भारतीय फिशरीज सेक्टर में हाल के वर्षों में जो आधुनिकीकरण तथा टेक्नालॉजी को अपनाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल हुई, वह काफी उत्साहजनक है।
उदाहरण के लिए एक एक्वाकल्चर टेक स्टार्टअप के तौर पर हमने ऐसा मोबाइल ऐप लॉन्च किया जो उत्पादन के आंकड़े जुटाने तथा रोजमर्रा के कल्चर कार्यों में किसानों को गाइडेंस उपलब्ध कराने में एक एडवाइजरी टूल के तौर पर काम करता है। इस ऐप ने हमें अलग-अलग पैरामीटर, फीडिंग और विकास के पैटर्न के बीच संबंधों को समझने में मदद की। लेकिन ऐसा करते समय हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि इसका कितने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा सकता है, जमीनी चुनौतियों को देखते हुए भारत के हर कोने तथा शेष विश्व से हम आंकड़े किस तरह जुटा सकते हैं।
आदर्श जवाब तो यह है कि हर किसान के पास एक स्मार्टफोन और बेहतर कनेक्टिविटी होनी चाहिए, मोबाइल ऐप के बारे में जागरूकता होनी चाहिए और अंत में, उसे प्रतिदिन डाटा की एंट्री करनी चाहिए। दूसरे तरीके से कहें तो हर खेत आईओटी डिवाइस के साथ ऑटोमेटेड होना चाहिए जो पानी की क्वालिटी से लेकर फीडिंग, ग्रोथ की निगरानी और हमारे एपीआई के साथ रियल टाइम में डाटा साझा कर सके।
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लेकिन यह परिदृश्य सच्चाई से बहुत दूर है। इसी बिंदु को लेकर हमने अपना काम शुरू किया। हमने महसूस किया कि एक्वाकल्चर के लिए सेटेलाइट रिमोट सेंसिंग किस तरह गेम चेंजर बन सकता है। ऐसे समाधान पर फोकस करके जिनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो सकता है तथा जिनसे सेक्टर की प्रमुख चुनौतियों को दूर किया जा सकता है, हमने अपना ध्यान सेटेलाइट रिमोट सेंसिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल पर फोकस किया। सेटेलाइट रिमोट सेंसिंग का प्रयोग करके हमने एक तरफ से आसमान में नजर (आई इन द स्काई) बिठा दी। इससे भौगोलिक सीमाएं टूट गईं। इस तरह हम व्यक्तिगत तालाबों से बढ़कर राष्ट्रीय स्तर पर काम करने योग्य हो गए। इसमें कोई भौतिक समस्या नहीं रही।
अब हमें ऐसे समाधानों पर गौर करना चाहिए जिनसे सीफूड वैल्यू चेन में पारदर्शिता लाने के मिशन का लक्ष्य हासिल किया जा सके। हमारा शुरुआती कदम मछली अथवा श्रिंप के तालाबों की पहचान करना तथा डीप लर्निंग एल्गोरिदम के प्रयोग से सीमाओं का निर्धारण करना था। यह बड़ा आश्चर्यजनक है कि हमने जिस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल को प्रशिक्षित किया है वे ट्रेनिंग टाटा में हमारी गलतियों को बता रहे हैं। स्मार्ट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल ने इसी तरह देश के किसी भी कोने में तालाबों की पहचान करने की क्षमता हासिल की है।
हां, अब हम बड़े पैमाने पर इसका प्रयोग भी कर सकते हैं। एक बार तालाब की पहचान हो जाने पर हमें यह देखना चाहिए कि तालाब किस तरह का है। एक्वाकल्चर में मछली और श्रिंप के तालाब ही प्रमुख श्रेणी के होते हैं। इसलिए उनका वर्गीकरण करना महत्वपूर्ण है। हमने अतिरिक्त आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल तैयार किए जिनसे श्रिंप तथा मछलियों के तालाब के बीच विभिन्न पैरामीटर के आधार पर भेद किया जा सकता है। इसका अगला महत्वपूर्ण कदम कल्चर के दिन (डीओसी) का अनुमान लगाना है जिससे तालाब के स्टेटस को समझने में मदद मिलती है।
सबसे पहले हमें यह देखना होता है कि तालाब किस अवस्था में है। उदाहरण के लिए वे सक्रिय हैं अथवा सूखे हैं, तैयारी के चरण, स्टॉकिंग के चरण या विकास के चरण में है, हार्वेस्टिंग के लिए तैयार हैं या उनमें हार्वेस्टिंग की जा चुकी है। इस तरह एक क्रम में रियल टाइम में क्रॉप रिव्यू किया जा सकता है।
कल्पना कीजिए कि इस तरह का इंटेलिजेंस लगभग रियल टाइम में सिर्फ तालाब के स्तर पर नहीं, बल्कि गांव, तालुका, जिला अथवा राज्य के स्तर पर तैयार किया जा रहा है। यह सब खेत में कदम रखे बगैर हो रहा है। यह वास्तव में एक बड़ी उपलब्धि है। हम जमीनी इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल करते हैं जिसे 'बूट्स ऑन द ग्राउंड' कहा जाता है। सेटेलाइट रिमोट सेंसिंग के पूरक के तौर पर जब भी जरूरत पड़ती है, हम इसका इस्तेमाल करते हैं। इस तरह 'बूट्स ऑन द ग्राउंड' और 'आई इन द स्काई' का मिलाजुला रूप डिजिटाइजेशन और क्वांटिफिकेशन के माध्यम से सीफूड वैल्यू चेन में पारदर्शिता और बेहतर क्षमता लाने का प्रयास कर रहा है।
एक्वाकल्चर सेक्टर में पारदर्शिता लाकर इस उद्योग में क्रांति लाई जा सकती है। लगभग रियल टाइम में क्रॉप की समीक्षा जैसे इनोवेटिव टूल हमें चुनौतियों को पहचानने के लिए बेहतर तरीके से सक्षम बनाते हैं।
उत्पादन के मौजूदा ट्रेंड, हार्वेस्ट पैटर्न और समय से पहले हार्वेस्टिंग के बारे में अध्ययन से हमें बेहतर मूल्यांकन में मदद मिलती है। इससे रोग प्रबंधन क्षेत्र की पहचान करने, लक्षित कदम उठाने और बड़े पैमाने पर बीमारी फैलने से रोकने में भी सहायता मिलती है। इतने बड़े स्तर पर जानकारी मिलने से कम दोहन वाले संसाधनों की पहचान करने के साथ इंडस्ट्री को उन क्षमताओं को समझने में भी मदद मिलती है जिनका अभी तक प्रयोग नहीं किया गया है।
इस जानकारी के साथ हम इस सेक्टर में मौजूद अलग तरह की चुनौतियों तथा अवसरों से निपटने की रणनीति तैयार कर सकते हैं। बेहतर जानकारी के आधार पर निर्णय लेने की क्षमता से संसाधनों का बेहतर आवंटन हो सकेगा, उत्पादन की प्लानिंग बेहतर होगी तथा अति सक्रिय तरीके से जोखिम प्रबंधन के कदम उठाए जा सकेंगे। इस तरह इसके जरिए इस सेक्टर की दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित की जा सकेगी।
ऐसे समय जब एक्वाकल्चर इंडस्ट्री विकसित हो रही है, डेटा आधारित निर्णय लेने में मददगार सॉल्यूशन इस सेक्टर की जटिल चुनौतियों को पहचानने तथा विकास की गति तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस तरह हम यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह सेक्टर वैश्विक खाद्य सुरक्षा के साथ करोड़ों लोगों की आजीविका में निरंतर मददगार बना रहे।
(मुरुगन चिदंबरम चेन्नई स्थित स्टार्टअप एक्वाकनेक्ट के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन एवं मार्केटिंग प्रमुख हैं)